हमारा व्यवहार हमारे मानसिक संतुलन को अभिव्यक्त करता है- सविता चड्डा
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सविता चड्ढा

हमारा व्यवहार हमारे मानसिक संतुलन को अभिव्यक्त करता है। साधारण लोग इस बात की ओर भले ही ध्यान ना दें लेकिन आप यह जान लें कि हम जो भी करते हैं, कैसे उठते हैं, बैठते हैं, चलते हैं, बात करते समय हमारे चेहरे की भाव भ॔गिमांए  अगर कोई ध्यान से देखता है तो वह जान सकता है कि आपके हृदय में क्या चल रहा है, आपके मस्तिष्क की अवस्था कैसी हैं, जीवन के प्रति  आपका दृष्टिकोण क्या है ?

आप सोचेंगे ऐसा कैसे संभव है।  मैं आपको बहुत सारी बातें बता सकती हूं।  मेरी बताई गई बातें आपके मस्तिष्क को परिवर्तित नहीं कर सकती, आपकी सोच को भी बदल नहीं सकती ,हां उसे कुछ समय के लिए प्रकाशित कर सकती हैं और अगर आप निरंतर उस प्रकाश को महसूस करेंगे तो छोटे से छोटे कंकर से बचाव संभव हो सकेगा।

सबसे पहले तो यह जान लेना चाहिए,  संसार की सारी बातें सब व्यक्तियों के लिए नहीं होती। उदाहरण के लिए  यदि हम कला में स्नातक की डिग्री लेना चाहते हैं या कला में स्नातक की शिक्षा लेना चाहते हैं तो उसके लिए हमें अलग सब्जेक्ट पढ़ने होते हैं और यदि हम कॉमर्स विषय  लेते हैं तो उसके लिए हम अलग शिक्षा लेते हैं। इसी प्रकार चिकित्सा, विज्ञान या जीवन में शिक्षा के क्षेत्र में लिए जाने वाले सभी विषयों के लिए, हमें अलग अलग तरह से उसका  चयन करना पड़ता है।  इसी प्रकार  ईश्वर ने हमें हमारे मस्तिष्क को  जिस प्रकार बना दिया है हमें केवल वही बातें पसंद आती हैं और हम उसी के अनुसार ही अपना वातावरण चुनते हैं। अपने संगी साथी पसंद करते हैं।  हमें अपने ही सोच वाले व्यक्ति पसंद आते हैं। मस्तिष्क का निर्धारण कोई व्यक्ति नहीं कर सकता, इसे हम कुछ पल के लिए बदल सकते हैं। उदाहरण के लिए  अगर पानी को गर्म किया जाए तो वह कुछ समय के पश्चात शीतल हो जाता है अर्थात जो उसका वास्तविक स्वभाव है वह उसमें बदल ही जाता है।  इसी प्रकार ईश्वर द्वारा प्रदत्त मस्तिष्क में  बहुत अधिक परिवर्तन नहीं हो सकता लेकिन इसे धीरे धीरे नकारात्मकता से सकारात्मकता की और स्थाई रूप से लाया जा सकता है।

जैसे किसी ने पहले बी. ए. पास कोर्स में दाखिला लिया बाद में उसे  लगा कि कॉमर्स की शिक्षा अधिक उपयोगी है तो वह किसी दूसरे संस्थान में, अपनी दूसरी पुस्तकों के साथ उपस्थित होता है और लगातार उसीका अध्ययन करता है तो वह इस शिक्षा में भी उतीर्ण  हो सकता है अर्थात ईश्वर द्वारा प्रदत मस्तिष्क को पूर्ण रूप से बदलने के लिए हमें अपने हृदय का सहारा इसमें मिल सकता है। यह सहारा  कोई भी हो सकता है, पुस्तकें भी हो सकती हैं ,व्यक्ति भी हो सकता है।  उनका सहारा लेकर आप अपने जीवन में महत्वपूर्ण परिवर्तन ला सकते हैं बशर्ते आपका मस्तिष्क उसे स्वीकार करने के लिए उपस्थित हो। ये विषय बहुत विस्तृत है और इस पर बहुत कुछ लिखा जा सकता है।