अन्तर्चिन्तन:राम घर आते हैं | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’ | क्यों हिन्दी दिवस मनाते हो?

अन्तर्चिन्तन::राम घर आते हैं।

दिव्य राम छवि धाम सुघर मुसकाते हैं,
जन-जन पावन दृष्टि कृपा बरसाते हैं।
युग-युग से अवध निहार रहा कब आयेंगे-
कण-कण हुआ निहाल राम घर आते हैं।1।

बर्बर नीच लुटेरों ने ऐसे दिन दिखलाया है,
कालखण्ड यह देख मुखर मुसकाया है।
जीत सदा सच की होती संघर्ष करो-,
सुदिन देख धरती पर त्रेता फिर आया है।2।

हे राम सभी निष्काम कर्म करते जायें,
उर-मर्यादित भाव धर्म के बढ़ते जायें।
खा कर शबरी-बेर,नई इक रीति बनाओ-
नवल सृजन-पथ लोग सदा चलते जायें।3।

मोक्ष दायिनी सरयू की जल धारा हो जाये,
उत्सर्गित कण-कण अवध दुबारा हो जाये।
ध्वजा सनातन पुनि अम्बर अशेष फहरे-,
अब विश्व-पूज्य यह भारत प्यारा हो जाये।4।

जैसा चाहो राम कराओ हम तो दास तुम्हारे,
अनभिज्ञ सदा छल-छद्मों से मेरी कौन सवॉरे।
निष्कपट हृदय अनुसरण तुम्हारा करता निशि दिन-,
तेरी चरण-शरण में आया तू ही मुझे उबारे।5।

रघुनाथ तुम्हारे आने की हलचल यहॉ बहुत है,
निठुर पातकी जन की धरती खलल यहॉ बहुत है।
चाह रहे हैं लोग सभी लिये त्राण की अभिलाषा-,
कब धर्म-ध्वजा फहराये उत्कंठा प्रबल बहुत है।6।

पड़ा तुम्हारे चरण में इसे शरण दो नाथ,
जब तक करुणा न मिले नहीं उठेगा माथ।
युग की प्यास बुझाई है तुमने ही आकर-,
मातु जानकी पवनसुत सहित मिलो रघुनाथ।7।

2 .क्यों हिन्दी दिवस मनाते हो?

भारत की प्रिय प्यारी हिन्दी,
यथा सुहागन की हो बिन्दी।1।
जन्म जात अपनी यह बोली,
दीप जलाये खेले होली।2।
अधर-अधर मुस्कान बिखेरे,
वरद गान कवि चतुर चितेरे।3।
सुधा-वृष्टि-तर करती रहती,
अंजन बनकर नयन सवॅरती।4।
सबको प्रिय मन भाती हिन्दी,
विश्व-कुटुम्ब बनाती हिन्दी।5।
तुम भी गाओ मैं भी गाऊॅ,
हिन्दी का परचम लहराऊॅ।6।
धर्म – ध्वजा अम्बर लहराये,
वीणावादिनि पथ दिखलाये।7।
हिन्दी पढ़ें , पढ़ायें हिन्दी,
दुनिया को सिखलायें हिन्दी।8।
निज में शर्म , सुधार करो,
फिर हिन्दी – ऋंगार करो।9।
निज बालक कहॉ पढ़ाते हो?
क्यों हिन्दी दिवस मनाते हो?10।
नौकरशाह और सरकारी-
सेवक से प्रिय हिन्दी हारी।11।
शपथ सोच कर लेना होगा,
भरत-भूमि-ऋण देना होगा।12।
आओ लें संकल्प आज हम,
हिन्दी में ही करें काम हम।13।
प्रिय राम हमारे हिन्दी में,
हर काम सवॉरें हिन्दी में।14।
विश्व पूज्य यह हिन्दी होगी,
द्वेष-मुक्त प्रिय हिन्दी होगी।15।