लघुकथा : बेटियाँ बनी घर का चिराग

लघुकथा : बेटियाँ बनी घर का चिराग

नंदनी आज बहुत खुश थी, पाँच बेटियों के बाद बेटा जो हुआ था। घर के बाहर ढोल नगाड़े की कानफोड़ू, परन्तु खुशियों के कारण वही मधुर आवाज़ें, तो अंदर से तरह-तरह के पकवानों की खुशबू आ रही थी। पास-पड़ोस की सभी औरतों और रिश्तेदारों की बधाईयों का तांता लगा हुआ था। मैंने भी सोचा कि मैं भी बधाई दे आऊँ, सो चली गई। नंदनी बेटे को गोद में लिये खूब चूम और दुलरा रही थी।

पाँचों बेटियां घर के काम में इधर-उधर दौड़ रही थी। चार तो काफी बड़ी, लेकिन इतनी भी बड़ी नहीं, कि घर के सारे दैनिक कार्यों के बाद भी प्यार नदारद रहे। मैं ये सब इसलिए कह रही हूँ कि अभी मेरी मौजूदगी नंदनी के घर में ही थी, तभी उसकी छोटी बेटी जो पाँच साल की थी, वो गिलास में सबको आधा जमीन पर लुढ़काते हुए पानी भर-भर के दे रही थी। कुछ देर बाद वो अपनी माँ के पास आयी और बैठ गयी। अपनी माँ के चुम्बन की तरफ जैसे ही बढ़ी कि माँ ने रोकते हुए कहा – ‘ये लाड़ प्यार बाद में कर लेना। जा, जो लोग आ रहे हैं, उनको पानी दे भरकर।’ वो बिना कुछ बोले उठी और चली गई। उम्र में भले ही छोटी लेकिन अपनी माँ को अच्छे से समझती जरूर होगी, तभी तो बिना मुँह खोले वहाँ से जाकर काम में जुटी। बड़ी दीदी का दुपट्टा पकड़कर सिसक पड़ी। बड़ी दीदी ने जरूर लाड़-प्यार किया और फिर काम में लग गयी।

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हर तरफ खुशियों की बहार। नंदिनी का पति राम प्रकाश शर्मा खेती-किसानी और मजदूरी करता था। शिक्षा उनके लिए जरूरी न थी, अन्यथा पाँच बेटियों के बाद छठवीं सन्तान की उम्मीद न करता। मदिरा सेवन प्रतिदिन करता था, बाद में गुस्सा अपनी बीवी पर उतरता था। बीवी भी क्यों पीछे रहे, वो अपना गुस्सा बेटियों पर उतारती थी। संतानें बड़ी होने लगी। किसी तरह से बेटियों ने घर संभालना शुरू किया। बेटियों के नन्हें कंधे पर बड़ी जिम्मेदारी रख दी गयी। वहीं धीरे-धीरे पाँचों बेटियां घर को रोशन कर रही थी। सबका विवाह भी मध्यमवर्गीय परिवार में कर दिया। सभी बेटियां अपनी अपनी ससुराल में खुश थी। लड़के का भी विवाह कर दिया गया।

कुछ ही वर्षों में बेटा अपनी अर्धांगिनी के साथ अलग दूर शहर में फैक्ट्री में नौकरी करने लगा।
बेटे की चिंता में नंदनी और उनके पति बीमार रहने लगे। घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने की वजह से दवाई तक के पैसे नहीं जुटा पाते। बीमारी और समय दोनों ने रफ्तार पकड़ी। एक रात नंदनी सो नहीं पायी। पति को खांसी का दौरा जो पड़ा कि नंदनी की नींद ही छीन ली। अगली सुबह नंदनी ने बेटे से फोन करके कहा- बेटा तेरा बाप बहुत बीमार है..। दवाई करा दे, नहीं तो मर जायेगा। बेटा- क्या है? बीमार हैं तो क्या करूँ ? तुम लोगों ने तो अपनी जिंदगी जी ली। हमें चैन से रहने दो और अब अस्सी बरस के हो ही गये होंगे। मर ही जायेंगे तो क्या ? कहते हुए बेटे फोन रख दिया। नंदनी ने अब अपनी बेटियों को संकोच करते हुए फोन किया और कहा बिटिया तेरा बाप बहुत बीमार है। आ देख जा, कहते हुए रोने लगी।

नंदनी ने सिर्फ एक बेटी को फोन किया लेकिन शाम तक पांचों बेटियां मौजूद। एक अस्पताल लेकर, तो दूसरी वहाँ दवाई की व्यस्था, तीसरी घर में खाने पीने की व्यवस्था, अंत तक पांचों बेटियां माँ-बाप की सेवा में लगी रहीं। राम प्रकाश के मुंह से अन्तिम समय में बेटियों के लिए दो शब्द निकले- ‘धन्य हो बेटी, तुम धन्य हो।’

अशोक कुमार गौतम
असिस्टेंट प्रोफेसर,
शिवा जी नगर, रायबरेली।
मो० 9415951459

कलम की दुनिया | रत्ना सिंह | लघुकथा

कलम की दुनिया | रत्ना सिंह | लघुकथा

मैंने अपनी बात को सब तक पहुंचाने के लिए फोन नहीं कलम को पकड़ा और उसने फोन।उसकी रफ़्तार तेज थी ,मेरी धीमी ‌। उसका फोन रोज दौड़ता लेकिन मेरी कलम कभी- कभी ठस हो जाती तो कई- कई दिनों तक चलती नहीं। बात यह थी कि आज‌ से लगभग पांच साल पहले जब हम दोनों का बारहवीं में स्कूल में पहला स्थान आया। दोनों के घर वाले खूब प्रसन्न थे । लेकिन मेरे घर से मिठाई मिली और मेरे पापा ने एक कलम देते हुए कहा कि इसको हमेशा संभाल कर रखना बेटा इससे ज्यादा तेरा ये बाप कुछ नहीं दे सकता ।

ठीक है पापा इससे ज्यादा कुछ नहीं चाहिए मैंने भी कहा। एक दो दिन के बाद बारहवीं में पहला स्थान लाने वाला निखित उसने बताया कि उसे इतने अच्छे अंक हासिल करने पर एक स्मार्ट फोन मिला है और उसके पापा ने कहा है कि इसे संभाल कर रखना बहुत मंहगा है और तेरे पापा ने क्या दिया ?निखित के पूंछने पर मैंने बहुत ही प्रसन्नता से जवाब दिया ,मेरे पापा ने कलम संभालने के लिए कहा है। क्या यार ?और हो हो कर हंसने लगा। निखित की हंसी बिल्कुल बुरी नहीं लगी, बल्कि मैंने कलम कोऔर कसकर पकड़ लिया। मैं कलम की दुनिया में व्यस्त हो गया और निखित फोन की दुनिया में व्यस्त रहने लगा।

पांच साल बाद आज जब उसका एक वीडियो देखा तो आश्चर्यचकित रह गया। उसने मेरी कलम की दुनिया को अपनी फोन की दुनिया में समाहित कर लिया था। आज मैंने निखित को फोन करते हुए कहा क्या बात है दोस्त ? निखित फिर हंसा और बोला कि तू फोन की दुनिया में कैसे आया ?कलम की दुनिया ने फोन की दुनिया में ला दिया।लेकिन तू कैसे ?बस आ गया तेरी दुनिया ज्यादा अच्छी थी जिसमें तूने दोनों दुनिया खुद से देखी और मैं तो अपनी दुनिया के बाद भी टिक नहीं सका और तेरी दुनिया में आ गया। सच यार तू और तेरी कलम महान है.

रत्ना सिंह रायबरेली उत्तर प्रदेश

व्यंग से दोस्ती तक | रत्ना सिंह | Hindi Short Story

आज से लगभग पच्चीस साल पहले मैं मध्यमवर्गीय परिवार में पैदा हुई। बहुत ही साधारण मेरे जीवन व्यतीत हुआ। जिस तरह से जीवन में उतार चढाव आते रहे लेकिन मेरे लिए वो सब बातें भी बहुत ही साधारण रहीं ‌ यही कोई सातवीं या आठवीं कक्षा की बात है जब मैं एक सुबह स्कूल गयी आज यूनिफार्म कुछ ज्यादा ही सिकुड़ गयी (कुछ इस तरह जैसे तकिये से निकालकर पहना हो )आज मां की भी ग़लती थी या मेरी ।

मेरी ही ग़लती रही होगी क्योंकि आठवीं तक तो इतनी समझ आ ही जाती है कि कम से कम यूनिफॉर्म तो ठीक कर लूं। मां भी कितना ध्यान रखें और उन्होंने कहा तो था कि श्रद्धा कपड़े सूख गये उठाकर रखो फिर आकर ——। लेकिन मैं तो ऐसे ही बस—-। हां तो वो सुबह ऐसी कि स्कूल में प्रार्थना के बाद मुझे टीचर ने सब बच्चों के सामने खड़ा किया और कहा जरा इस लड़की को देखो इसका नाम है श्रद्धा। इसको समय नहीं मिला कि कपड़े प्रेस कर लें । ऐसा लग रहा है कि —-।

तब तक सब बच्चे ठहाका लगाकर हंसने लगे। टीचर ने भी दो डंडे कसकर लगाये और नालायक की संज्ञा देकर क्लास में जाने कह दिया। उस दिन मैं पूरा दिन बच्चों के व्यंग का शिकार रही । घर आकर मां को बताया तो मां ने नम आंखों से कहा -बेटा श्रद्धा रोज तुम्हारे कपड़े तह करके बिस्तर के नीचे रख देती हूं जिससे उनमें इतनी सिलवटें नहीं पड़ती कल जब कपड़े उठाकर लायी तो बता देती ध्यान से उतर गया। क्या करें पापा की तनख्वाह बहुत कम है सब फीस में चला जाता है खूब पढ़- लिखकर बड़े हो जाना नौकरी करना तो एक प्रेस जरुर खरीदना । ठीक है मां जरुर और मैं मां के लिपट गई। हर दिन स्कूल जाती बच्चों के व्यंग का शिकार होती ‌। समय के साथ -साथ सब बदला और एक दिन इनकम टैक्स में नौकरी मिल गयी। अब उन पुराने टीचर और बच्चों की दोस्ती का शिकार बन गयी हूं।

ढूंढती बस | रत्ना सिंह

Hindi Short story: हैलो-हैलो.. मैडम आपसे ही बात कर रही हूँ। सुनो तो जरा, अपने आस-पास भी देख लिया करो। सामने ही सिर्फ क्यों देख रही हो? ज्योति ने जब अगल-बगल, पीछे मुड़कर देखा तो उसे कुछ समझ नहीं आया। वो थोड़ी परेशान सी होने लगी। रात के नौ बज गए हैं। दूर-दूर तक बस नजर नहीं आ रही है। ऊपर से ये आवाज़ अब उसको और ज्यादा चिंता सताने लगी, तभी जोर-जोर हंसने की आवाज आयी। ज्योति ने हिम्मत करते हुए पूछा- आखिर आप कौन हो प्लीज़ बता दो न? क्या चाहिए तुम्हें पैसे चाहिए? तो दे देती हूँ।

आवाज तेज हुई अरे !मैडम पैसे, पैसे का बहुत बड़ा चेक मिला है। माँ-बाप को उन्होंने बताया है कि मेरे जाने के बाद बहुत बड़ा चेक मिला, जिससे अगर‌ वो चाहें तो आराम से ज़िन्दगी काट सकते हैं। अगर आपको चाहिए तो लाकर दे दूँ। नहीं..नहीं मुझे नहीं चाहिए। आप मेहरबानी करके यहाँ से चली जाइये। ज्योति की इतनी सी बात सुनकर आवाज दुबारा से आयी लेकिन इस बार उसका स्वर बदला था। चली जाऊँगी मैडम लेकिन क्या तुम वो बस ढूंढ पाओगी? जिसमें सच में जाना‌ चाहती हो।

तुम्हारा मतलब क्या है और इस तरह से दिमाग क्यों खराब कर रही हो? ऐसे रोने-धोनें का नाटक कर लूटना चाहती हो? तुम लोगों को बहुत अच्छे से जानती हूँ। किसी रईश को देखा और नौटंकी शुरू कर दी । ज्योति की बात सुनकर रुंधे हुए गले से फिर आवाज़ आयी लूटा तो मुझे गया है। आज तक लूटा जा रहा है और कुछ —।ज्योति अंदर से तो डर रही थी लेकिन अपने आपको निडर बनाते हुए तेज लहजे में कहा- आखिर मतलब क्या है ? तुम्हारा जो भी है, साफ-साफ बोलो और कौन हो तुम इधर सामने आओ।

सामने ही तो हूँ मैडम। आप देख ही नहीं रही हैं, अच्छा छोड़ो नहीं देख रहीं हैं तो कोई बात नहीं।साफ-साफ बात की कह रही हो, तो बताती हूँ। आज से कोई तीन वर्ष पहले इसी बस स्टाप पर खड़ी थी, बस की प्रतीक्षा करते-करते रात के साढ़े नौ बज गये। तभी एक कार आयी और रुक गयी उसमें से एक महिला ने खिड़की से झांकते हुए पूछा- कहाँ जाओगी मैडम ?जी नवीन नगर मैंने जवाब दिया।

अरे हम लोग उधर ही जा रहे हैं छोड़ देंगे।रात काफी हो चली थी सर्दियों में तो नौ बजे सड़कें काफी सूनसान होती हैं। गाड़ी में जाकर बैठ गयी। कुछ दूर तक गाड़ी रास्ते पर चलती रही उसके बाद यू टर्न लेकर रास्ता बदल दिया। पूछने पर महिला ने कहा कि इधर से जल्दी पहुंच जायेंगे। दो पुरुष भी बैठे थे लेकिन महिला ही ज्यादा बोल रही थी। गाड़ी करीब एक किलोमीटर और चली फिर एक सूनसान जगह पर रुकी।मुझे अब डर सताने लगा, महिला के कान में धीरे से बोलते हुए कहा कुछ गड़बड़ है। ये गाड़ी आपकी है या आप भी यात्री हैं। वो मुस्कुराई और बोली अरे मैडम गाड़ी भी हमारी और अच्छी सर्विस भी हमारी। मतलब क्या है? आपका।बैठी रहो बैठी रहो… सब मतलब समझ आ जायेगा।

देखो जो पैसा चाहिए सब दे दूँगी। ये लो कार्ड भी रख लो। बस जाने दो पैदल चली जाऊँगी। छोड़ने भी मत जाना। अबकी बार सब के सब ठहाके लगा रहे थे। तभी एक और गाड़ी आकर रुक गयी। अरे ये तो हमारे यहॉं के विधायक जी हैं। उनकी तरफ बढ़ने की कोशिश जैसे ही किया, वैसे ही विधायक जी के शब्दों ने कांपा दिया। अभी तक ये टिप टिप कर रही है और तुम लोगों ने जो कहा था वो नहीं किया। सर बस —-। क्या बस– ? चलो गाड़ी से निकालकर — और फिर क्या लूट लिया गया। बार बार लूटा गया और मैं चिल्लाती रही।

चले जाने के बाद माँ-बाप ने बताया कि बहुत बड़ा चेक मिला है, लेकिन वो चेक नहीं मिला, जिसे मिलना चाहिए था। पैसों का चेक मिला, न्याय का नहीं। तब से माँ-बाप वहाँ चक्कर काट रहे हैं और मैं बस स्टाप पर कि शायद वो बस मिल जाये। जिस पर बैठकर न्याय का चेक लेने पहुंच जाऊं। बहन अगर तुम्हे वो बस मिल जाये तो जरूर वहां तक चली जाना या मुझे बुला लेना। इतना कहकर वो आवाज़ सिसकियां लेती रही । आओ पास आओ, गले लगाते हुए ज्योति ने कहा- बहन आज से एक नहीं हम दो मिलकर उस बस को ढूंढेंगे और फिर दोनों मुसकुराते हुए बस की खोज में लग गयी। देखते हैं आखिर कब ——— ?

शब्द दर शब्द | रत्ना सिंह

पिछले कई दिनों से ठस पड़ा दिमाग आज चला भी तो कहां पहुंच गया ? जहां मैं जीवन में कभी न जाना चाहूं। अब क्या बताऊं? दिमाग को घसीटती रही और ये दौड़ता रहा । अनंत में मैं ही हारी और इसे जाने दिया। वहां जाना चाहिए था, वो और बात कि मैं जाना नहीं चाहती । अब दिमाग चल पड़ा था तो मैंने भी दो चार जोड़ी कपड़े रख बसेड़ा गांव की तरफ चल पड़ी।

अरे रुको एक तो मैं जाना नहीं चाहती तुम्हारी वजह से चल रही हूं तो तुम पहले ही भाग रहे हो । मैंने दिमाग को रोकते हुए कहा। वो मुस्कुराया और कहने लगा ‘जितना दूर खड़े-खड़े सब कुछ मैं भांप जाऊंगा उतना तुम कभी नहीं ‘। मैं अभी पहुंची भी नहीं थी कि वो वापस लौटकर रास्ते में मिला। अरे ! लौट क्यों आये ? क्या करूं ? सोचा जल्दी जल्दी तुमको भी लिवा चलूं। अच्छा वहां कुछ सुना ‌।

दिमाग इस बार खिलखिला कर हंसने लगा और बोला अब चलो खुद ही चलकर देख लो । करीब पन्द्रह किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद बसेड़ा गांव पहुंची। उनके आस -पास घर के हर एक सदस्य की मौजूदगी देख मैंने पूछा – कुछ नहीं ऐसा तो कभी नहीं सुना न देखा है हां कहावतें जरुर सुनी है। क्या कहावतें सुनी है ?

कुछ नहीं कहकर पास खड़ी बुआ,भाभी , चाची सब वहां से चली गयी। दिमाग अभी भी धक्का दे रहा था और मैंने उनके बिस्तर की तरफ बढ़ी अरे इंफेक्शन हो जायेगा मत जाओ।

एक न सुनकर वहां पहुंच गयी देखा तो उनके ऊपर और आस पास सफेद -सफेद कोई चीज रेंग रही है। डरते -डरते हाथ उठाकर अपने हाथ में लिया उनकी आंखों से आंसू टपक रहे थे मेरे मुंह से इतना ही निकला आपके जल्दी ठीक होने की कामना करुंगी । सबसे ज्यादा आपने हौसला बढ़ाया है ये कहकर कि ये लड़की देखना एक दिन सबको —–?आज उसके विलोम बोल रही हूं क्योंकि विलोम शब्द का भी बहुत महत्व है इसलिए —-। मैं कुछ बोलने ही जा रही थी कि दिमाग बाहर घसीट लाया और कान में फुसफुसाया जो समझ नहीं पायी हां जब उसने जोर से बोला काश ये बात ——।

भटकती हुए नौकरी | रत्ना सिंह

भटकते हुए नौकरी | रत्ना सिंह

नौकरी कितने दिनों से चिल्ला रहा हूँ। साला कहीं नौकरी नहीं मिल रही। अरे साले बाद में चिल्लाना, आज तेरे शादी वाले आ रहे हैं और ये भी ध्यान रख कि तूने ही कहा था परीक्षा में सारे उत्तर दे आया। जो उत्तर आया वो भी, नहीं आया वो भी। तब मैंने डाँटते हुए कहा कि मतलब बेटा। तूने कहा था कि पापा आप नहीं समझेंगे। अभी बाप बेटे की बात खत्म नहीं हुई कि दरवाजे पर किसी के बुलाने की आवाज सुनाई दी। आता हूँ, पिता रामलाल ने कहा और दरवाज़ा खोला। अरे ! आप लोग आ गये । आइए -आइए बैठिए। कहते हुए रामलाल ने अपनी पत्नी फूल दुलारी को आवाज लगाई – सुनो देखो मेहमान आ गये, जरा पानी पीने को ले आओ।


रामलाल मेहमानों को बैठका में बिठाकर वहीं बैठ गये। जब तक पत्नी नाश्ता लेकर आती, उससे पहले ही बातों का सिलसिला शुरू हुआ। शादी करने के लिए घर वर देखने आये लड़की के बाबा ने कहा- “लड़का कितना पढ़ा-लिखा है और आजकल क्या करता है ? पढ़ाई में नम्बर एक बेटा है।बी.ए. में पहला स्थान मिला था, उसके बाद उसने एम.ए का फार्म भर नौकरी के लिए बड़े शहर दिल्ली चला गया। अकेला कमाने वाला इसलिए नौकरी के लिए कह दिया। दिल्ली में एक नम्बर की कम्पनी में काम कर रहा है। अभी दो महीने हुए हैं, रामलाल ने कहा। अच्छी बात है लेकिन ये बताओ— तभी रामलाल की पत्नी चाय नाश्ता लेकर आ गयी। अरे ! बाकी बातें होती रहेंगी। लड़की के बाबा को बीच में ही रोकते हुए रामलाल सबको उठाकर चाय देने लगे, पत्नी भी ट्रे रखकर चली गई।
चाय की चुस्कियों के साथ बातें आगे बढ़ी और लड़की के बाबा ने दुबारा कहा- अच्छा ये बताईए, लेन देन में क्या-क्या रहेगा? हमारे चार बेटियाँ हैं। कमाने वाला एक ही है और अब हमारी कमाने की उम्र रही नहीं।


रामलाल ने उनकी बात बीच में काटकर कहा कि वैसे तो मैं दहेजप्रथा के खिलाफ हूँ, परन्तु ज्यादा कुछ नहीं, एक नये फ़ैशन वाली बाइक, बीच में इसने जिद्द की थी लेकिन कमाने वाला एक ही है कितना करेगा? इसलिए बाईक, दो लाख नगद, घर का सारा सामान, लड़के के लिए चैन, अँगूठी तो आम बात है और हाँ, बारात में आये हुए सभी लोगों का अच्छे से स्वागत सत्कार… बस इतना ही और कुछ नहीं चाहिए।हमें लड़की सुंदर, सुशील चाहिए, रामलाल ने कहा।


जी, लड़की घर के कामों, सिलाई-कढ़ाई में निपुण है । बारहवीं पढ़ी भी है। लड़की के बाबा के मुँह से इतना सुनते ही रामलाल बोल पड़े, बस इतना ही पढ़ी है। अरे! नौकरी नहीं करती तो पढ़ी-लिखी होती तो कम से कम जरूरत पड़ने पर काम कर सकती थी। अब एक दो चीजें और बढ़ानी पड़ेगी। चीजें बता देता हूँ एक तो —— अभी बात पूरी भी नहीं कर‌ पाये कि अन्दर से जोरदार आवाज सुनाई दी। हे भगवान ! क्या कर दिया? लटका दिया बीच में ही। अब नौकरी भी लटक गयी किनारे ही। कितनी बार कापी में लिखकर आया था तेरा नाम और उस मास्टरवा को भी लिखा था, पास कर देना । लेकिन दोनों ने नहीं सुनी। हे भगवान सुन लेता क्या जाता तेरा—–। क्या हुआ क्या हुआ शादी देखने आये लोगों ने पूछा तो रामलाल आता हूँ अंदर से देखकर। ये बेटे ने मोबाइल में कुछ बजा‌ रखा है। आजकल तरह -तरह के वीडियो भी कितना —–? रामलाल अंदर चले गए। बहुत देर तक बाहर न आने पर लड़की के पिता ने उठकर दरवाजे पर आवाज लगाई । अंदर से अभी भी वहीं आवाजें आ रही थी, फर्क इतना कि अब रामलाल की भी आवाज आ रही थी, “चुप हो जा यार बाद में बात कर लेंगे, अच्छा खासा काम क्यों खराब कर रहा है “? रामलाल का स्वर तो धीमा था। लेकिन बातों ने सब समझा दिया। इसलिए इधर से भी सभी लोगों ने एक स्वर में कहा- “रामलाल सब समझ गया, सब समझ गया, अब चलता हूँ। सब समझ गया ——। कहते हुए सभी लोग चलने लगे कि रामलाल अंदर से कहते हुए, अरे रुक जाईये … रुक जाईये दोनों पक्ष एक साथ बैठकर बात कर लेंगे सब हो जायेगा —। नहीं- नहीं समझ गया बस —–।

कौन हो तुम | Kaun Ho Tum Short Story in Hindi | Ratna Singh

कौन हो तुम | Kaun Ho Tum Short Story in Hindi | Ratna Singh

तुमसे कितनी बार पूछा कि कौन हो तुम? और इतना तंग क्यों करती हो ?बताया तो कि लिफ्ट बोल रही हूं लेकिन समझ पाती नहीं बस घर से निकल पड़ती हो। क्या करूं? बेटे से कहा तो उसने कहा रास्ते में सब समझा दूंगा । रास्ते में समझाने से पहले ही वो पता नहीं कहां चला गया ? तुम तो लिफ्ट हो चलती भी तेज हो पता लगा दो न बहुत एहसान रहेगा तुम्हारा।

यही तो कर नहीं सकती क्योंकि एक सीमा में बांध दिया गया है, और देखो न सब कैसे ऊपर चढ़ चढ़कर चले जाते हैं ? जीवन की इस आपाधापी में किसी के पास समय नहीं कि दो मिनट ठहर जाये। जबकि सबका समय बचाकर फटाफट ऊपर नीचे पहुंचा देती हूं । लिफ्ट की बात सुनकर थोड़ी देर तक चुप‌ रहने के बाद जवाब दिया कि तुमको बनाने वाले को हमने बनाया जब उसके पास समय नहीं है कि हमारे लिए ठहर जाये तो भला —–?और देखो न कितनी खुश किस्मत हो कि मिलने के लिए सभी आते हैं ठहरते नहीं तो क्या ? यहां देखो बेटा लाकर छोड़ दिया ऊपर से लिफ्ट बहन तुम भी धौंस जमा रही हो।

यही तो समस्या है तुमको इतनी देर से समझा रही हूं और तुम समझती‌ नहीं हो कहते हुए लिफ्ट हंसने लगी कितनी ——? और बोली ज़रा पीछे देखो जब तक पीछे देखती तब तक लोगों की आवाजें जोर -जोर से आने लगी अरे !इसकी समझ में नहीं आता यहां कितनी देर हो रही है।किसी के आफिस के लिए तो किसी की ट्रेन छूट रही ‌। पता नहीं कहां -कहां से आ जाते हैं ? गंवार पता होता नहीं मुंह उठाया और चल पड़ी। एक ने धक्का देते हुए कहा -“ये बुढ़िया किनारे खड़ी हो जा जाने दे”। लिफ्ट दुबारा हंसी और लोगों का समय बचाने में जुट गई। वहां खड़ी- खड़ी कभी लोगों को तो कभी लिफ्ट को देख रही हूं —–।

सफर | Safar short story in hindi | Ratna Singh

सफर | Safar short story in hindi | Hindi story

पता नहीं क्यों मुझे घटना, घटना लगती है? चाहे पुरानी हो या नयी। मुझे अनेकों बार कहा गया , क्या वही घिसी-पिटी बात करती? कहे भी क्यों न। बात करीब चौबीस वर्ष पहले की है, जब आराध्या दो साल की थी। देश-दुनिया से कोसों दूर नाता, फिर भी उसे दुनिया जहांन की बातों में ऐसा लपेटा गया कि आज भी भूल नहीं पाती। आज शाम बालकनी में बैठकर चाय पी रही थी। आज भाई भी आफिस से देर में आयेगा। अस्पताल की नौकरी भी सुबह की आठ से दो करके आ गयी। इसलिए चाय में कोई हड़बड़ी नहीं, खाना वैसे भी दस के पहले कोई खायेगा नहीं। चाय की चुस्कियों के साथ-साथ एक कहानी पढ़ रही थी। तभी कहानी के एक पात्र की घटना आराध्या के जीवन की घटना से बिल्कुल मिलती-जुलती चल रही थी। आराध्या ने जबसे होश संभाला; तभी से उसे चारों तरफ यही सुनना पड़ता कि देखना ये अपनी कलूटी शक्ल के जैसे एक दिन सबका मुँह काला करेगी। गाँव और पड़ोसी तो सुनाते ही, घर के लोग उससे पहले सुना जाया करते। जब उसने पढ़ना शुरू किया तब कलेक्टर बनेगी। खा-खा कर इतनी मोटी हो रही है अब तो इसे ब्याह देना चाहिए। पता नहीं कब इसका —-बाप सुनता ही नहीं।


सबसे दिलचस्प बात तो ये कि आराध्या साइकिल लेकर स्कूल निकल जाती। घर आकर अपने कामों में लग जाती। किसी की बात का कोई असर नहीं और हो भी क्यों ? माँ-बाप का इतना साथ जो मिल रहा था। एक बात तो कभी नहीं भूल सकती, क्योंकि उसकी जिंदगी के शुरुआती दौर का जो साल था मैट्रिक की परीक्षा। कल उसका मैट्रिक अर्थात दसवीं का इम्तिहान और आज जोर-जोर से फिल्मी गानों और बीच-बीच में फब्तियों की आवाज़ –। वो फब्तियाँ कसी गयी थी जिंदगी मोड़ने के लिए, लेकिन आराध्या को ही बदल दिया और वो मैट्रिक में पहला स्थान ले आयी । सब लोग खड़े थे सिर्फ आराध्या और उसकी जिंदगी बैठी। शनैःशनैः समय व्यतीत हुआ, उसने पढाई पूरी कर ली। ईश्वर के आशीर्वाद से नौकरी भी लग गयी। अब वो नौकरी करने बाहर चली गयी, फिर भी बदलने वाले लोग पीछे लगे रहे

। ये बातें तो बहुत साधारण सपाट और उबाऊ लगेंगी, लेकिन कहने का उद्देश्य मात्र ये है कि आज‌ जब उनकी तबियत खराब हुई तो सबसे पहला फोन आराध्या को लगाया कि बहुत बीमारी हूँ। आराध्या नौकरी की वजह से मीलों दूर थी फिर भी पूरी कोशिश की। उसकी सहेली वहीं पास में एक अस्पताल में काम करती है जिससे फोन करके बता दिया। फिर भी उनकी ऐंठन कम नहीं हुई। बेटी के आते ही किसी का एहसान नहीं चाहिए। जितना पैसा लगाना पड़ेगा लगाऊंगी, लेकिन आराध्या से क्यों कहा वो काली कलूटी क्या कर पायेगी। कुछ कर भी पाती तो अपनी शक्ल ही ठीक कर लेती।

आराध्या भी सहेली को मना कर अपनी नौकरी में लग गयी। दो-तीन दिन बीतने के बाद जब ऐंठन बेटी का फोन आया तो आराध्य आश्चर्यचकित- क्या हुआ ? कुछ नहीं! खाना पीना कुछ नहीं जा‌ रहा है। डाक्टर ने घर ले जाने कह दिया। यार आराध्या कुछ करो। ठीक है, परेशान मत हो कुछ करती हूँ। लेकिन सुनो इनके नाक में नली लगवा देती हूँ, जिससे शरीर में थोड़ा- थोड़ा खाना जायेगा और शरीर को ताकत मिलेगी, हो सकता है स्वास्थ्य में सुधार आ जाये।


आराध्या लेकिन डॉक्टर उसके लिए भी तैयार नहीं है। कोई बात नहीं, गाड़ी में बिठाकर संगम अस्पताल ले जाओ फोन कर रही हूँ, नम्बर भी भेज देती हूं। वहाँ जाकर कह देना आराध्या ने भेजा है। फोन लगा कह दिया सहेली को यार कर देना इतना काम पैसे कितने? सहेली की आवाज -पैसे क्या होते हैं? आराध्या तू भी पागल हो गई है। अच्छा सुन शायद उनका ही फोन है, तू रख बाद में बात करती हूँ। ठीक है ठीक है और फोन कट गया। करीब आधे घंटे के बाद आराध्या ने दोबारा फोन किया।

सहेली, काम कर दिया है। वो लोग घर भी पहुँच गये होंगे। सब समझा भी दिया है। धन्यवाद आराध्या ने कहा तो सहेली का जवाब तू अबकी बार आयेगी तो पिटेगी। अच्छा सुनो यार मरीज बहुत ज्यादा है बाद में बात करेंगे। ऐंठन बेटी को भी फोन करके पूछ लिया। हाँ आराध्या सब ठीक है। नली से खाना और दवाई दे दिया है। अभी सो रही हैं। जब भी कोई जरूरत हो फोन कर लेना। ठीक है आराध्या, लेकिन ऐंठन की लकीर अभी भी बातों से झलक रही थी। आराध्या को लग रहा था कि वो अब काली कलूटी के सफर से बाहर निकल रही है।

घूमता दिमाग | Laghukatha | Hindi Short Story

घूमता दिमाग | Laghukatha | Hindi Short Story

दिमाग भी कहां- कहां घुमाता रहता है? कुछ पता ही नहीं चलता , देखो न अब मुम्बई पहुचा दिया। शरीर दिल्ली में दिमाग मुम्बई कितना अजीब कितनी देर से इसे मुम्बई से दिल्ली लाने की कोशिश कर रही हूं लेकिन नहीं वहीं जमा बैठा है।जानती हूं मुम्बई बड़ा शहर , बड़ा पैसा। लेकिन दिल्ली भी क्या कम है? कभी -कभी बड़े पैसे के चक्कर में ही हमें मात खानी पड़ती है फिर भी —। हमारे साथ पढने वाली रेशमा जो सिर्फ पढ़ाई में ही नहीं खेल कूद में हमेशा अव्वल रहती ।

हम दोनों ने कालेज एक साथ खत्म किया और एम बी ए किया । रेशमा नौकरी के सिलसिले में मुंबई चली गई और मैं दिल्ली। मैंने कहा भी उससे कि वो भी दिल्ली आ जाये लेकिन उसने नहीं सुनी उसका आशिक रवि जो मुम्बई में था । अभी पन्द्रह दिन ही हुए थे मुम्बई गये कि कल रेशमा ने बताया कि यार मुम्बई आकर बहुत बड़ी गलती कर दी। तेरे साथ दिल्ली में ही रहती तो कितना अच्छा रहता। क्यों रेशमा क्या हुआ?पता चला कि रवि ने अभी एक महीने पहले ही शादी की है उसकी पहली बीबी मल्टीनेशनल कंपनी में काम करती है। इसने उसको बताया कि ये दो महीने के लिए आफिस के काम से बाहर जा रहा है और यहां हमारे पास आ गया।

तुझे ये बात पता कैसे चली ? मैंने पूछा! कल सुबह जब वो बाथरूम में था तब उसने कहा कि उसका फोन चार्ज पर लगा दूं उसकी बीबी का मैसेज था,” यार जानू तुम जबसे गये फोन मैसेज कुछ नहीं किया रात को तो काम नहीं होता होगा”। बता यार क्या कसूर है? जो इसने ऐसा किया । सिर्फ प्यार ही तो किया । प्यार करना इतना गलत है जिसकी इतनी बड़ी सजा। बता क्या करूं? तू भी वैसा ही कर जैसा उसने किया और देखना कभी धोखा नहीं खायेगी ।

देखना रवि धोखा जरुर खायेगा। मैंने कहा! रेशमा की सहमी आवाज कुछ समझी नहीं। बस उसने प्यार किया तो भी कर ले । रेशमा लेकिन किससे? किताबों से। मैं तो नौकरी के बाद किताबों में व्यस्त रहती हूं। ठीक है कोशिश रहती हूं। रेशमा ने धीरे -धीरे किताबें पढ़ना शुरू कर दिया और अब उसका ध्यान उतना रवि पर नहीं जाता। हां लेकिन उस दिन जरूर गया जिस दिन नशे में धुत्त रवि ने लड़खड़ाते हुए दरवाजे की घंटी बजाई । दरवाजा खोलते ही रवि लड़खड़ाते हुए अंदर आया और रेशमा से कहने लगा वो छोड़कर चली गई जैसा किया वैसा भरना पड़ेगा लेकिन तुम आजकल कैसे —-?रेशमा ने बस हमने भी किसी से दोस्ती कर ली है जैसे —। आपकी तो छोड़कर चली गई लेकिन ये कभी नहीं –। रेशमा ने जब ये बात बताई थी तो मेरे मुंह से इतना ही निकला वाह ! अपने आप में ही शाबाशी देने लगी मैं ‌ । तबसे ये दिमाग भी वहीं घूम रहा है।

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रुके हुए पांव | रत्ना सिंह | लघुकथा

रुके हुए पांव | रत्ना सिंह

जैसे ही कालेज से घर आयी तो देखा महतिन काकी बरामदे में ही बैठी हैं। देखते ही कउने दरजा मा पहुंच गईऊ बिटिया। तेरहवीं में हूं कहकर मैं अन्दर चली गई। महतिन काकी या का बोलिके चली गय कुछ समझ मा नहीं आवा। अच्छा छोड़ो ये बताओ यहिके खातिर लरिका देखेव की नहीं। अब तो बड़ी होई गय। पापा ने कहा नहीं महतिन काकी अभी शादी नहीं जब तक खूब पढ़ नहीं लेती । पापा की ये बात मुझे बहुत अच्छी लगी । महतिन काकी मुंह बिचकाते हुए कउन नौकरी करिके पईसा देई। पापा महतिन काकी का विरोध करते हुए -पैसे के लिए नहीं आत्मनिर्भर बनने के लिए पढ़ा रहा हूं। महतिन काकी -हूं -हूं करते हुए चली गई। ऐसे ही महतिन काकी रोज आती कहती मुंह बिचकाती और चली जाती ।

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धीरे -धीरे समय व्यतीत हुआ और मैंने एम ए की पढ़ाई पूरी कर ली। नेट की तैयारी के लिए दिल्ली आ गयी । कोचिंग के लिए जब भी कमरे से निकलती तो मैट्रो के पास कुछ किताबें मिला करती । रोज रोज विषय की किताब पढ -पढकर तक गयी तो‌ सोचा कि चलो कुछ नया पढ़ते हैं। एक उपन्यास ले आयी । उसे पढ़ा अच्छा लगा फिर दूसरा उपन्यास पढ़ने की इच्छा हुई। अब विषय से बाहर का पढ़ने में मन खूब लगता हर दूसरे दिन कुछ नया ले आती। धीरे -धीरे साहित्य की ओर झुकाव बढ़ने लगा। नतीजा ये की नेट की परीक्षा में फेल । ये बात घर में पता चली तो पहले पापा मम्मी गुस्सा हुए बाद में एक और मौका मिल गया । लेकिन मेरा हाल अब भी वही । पढ़ती फिर सोचती यार ये लिख कैसे लेते हैं?चलो मैं भी कोशिश करती हूं।

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कोशिश -कोशिश में मैंने कई कहानियां लिख ली फिर सोशल मीडिया के माध्यम से प्रकाशक तक पहुंच गई। तब तक घर में नहीं बताया । दुबारा नेट की परीक्षा दी फिर फेल। पापा ने इस बार बहुत डांट लगाई । मम्मी ने कहा -अब कोई मौका नहीं। अब इसके लिए कोई अच्छा लड़का देखकर शादी करवा देते हैं। पापा ने लड़का देखा। आज मुझे देखने के लिए लड़के के घर वाले आने वाले हैं घर में तैयारी चल रही है तब तक मेरा फ़ोन बजा मैंने फोन उठाया प्रकाशक का फोन -जी सर ! बहुत बहुत शुक्रिया आपका एक दो दिन में आकर मिलती हूं। कहकर फोन रख दिया।बाहर लड़का और उसके घरवाले आ चुके। मम्मी नाश्ते की प्लेट पर प्लेट ले जा रही है। तब तक लड़की की मां -ये सब ठीक है पहले लड़की दिखाओ। नाश्ता पानी तो चलता रहेगा। पापा मम्मी से कहते हैं रिया को लेआओ । मां मुझे लेकर जाती है। लड़के की मां देखते ही अरे इसका रंग तो सांवला है हमारे बेटे को देखो कितना सफेद चमक रहा है।