ढूंढती बस | रत्ना सिंह

Hindi Short story: हैलो-हैलो.. मैडम आपसे ही बात कर रही हूँ। सुनो तो जरा, अपने आस-पास भी देख लिया करो। सामने ही सिर्फ क्यों देख रही हो? ज्योति ने जब अगल-बगल, पीछे मुड़कर देखा तो उसे कुछ समझ नहीं आया। वो थोड़ी परेशान सी होने लगी। रात के नौ बज गए हैं। दूर-दूर तक बस नजर नहीं आ रही है। ऊपर से ये आवाज़ अब उसको और ज्यादा चिंता सताने लगी, तभी जोर-जोर हंसने की आवाज आयी। ज्योति ने हिम्मत करते हुए पूछा- आखिर आप कौन हो प्लीज़ बता दो न? क्या चाहिए तुम्हें पैसे चाहिए? तो दे देती हूँ।

आवाज तेज हुई अरे !मैडम पैसे, पैसे का बहुत बड़ा चेक मिला है। माँ-बाप को उन्होंने बताया है कि मेरे जाने के बाद बहुत बड़ा चेक मिला, जिससे अगर‌ वो चाहें तो आराम से ज़िन्दगी काट सकते हैं। अगर आपको चाहिए तो लाकर दे दूँ। नहीं..नहीं मुझे नहीं चाहिए। आप मेहरबानी करके यहाँ से चली जाइये। ज्योति की इतनी सी बात सुनकर आवाज दुबारा से आयी लेकिन इस बार उसका स्वर बदला था। चली जाऊँगी मैडम लेकिन क्या तुम वो बस ढूंढ पाओगी? जिसमें सच में जाना‌ चाहती हो।

तुम्हारा मतलब क्या है और इस तरह से दिमाग क्यों खराब कर रही हो? ऐसे रोने-धोनें का नाटक कर लूटना चाहती हो? तुम लोगों को बहुत अच्छे से जानती हूँ। किसी रईश को देखा और नौटंकी शुरू कर दी । ज्योति की बात सुनकर रुंधे हुए गले से फिर आवाज़ आयी लूटा तो मुझे गया है। आज तक लूटा जा रहा है और कुछ —।ज्योति अंदर से तो डर रही थी लेकिन अपने आपको निडर बनाते हुए तेज लहजे में कहा- आखिर मतलब क्या है ? तुम्हारा जो भी है, साफ-साफ बोलो और कौन हो तुम इधर सामने आओ।

सामने ही तो हूँ मैडम। आप देख ही नहीं रही हैं, अच्छा छोड़ो नहीं देख रहीं हैं तो कोई बात नहीं।साफ-साफ बात की कह रही हो, तो बताती हूँ। आज से कोई तीन वर्ष पहले इसी बस स्टाप पर खड़ी थी, बस की प्रतीक्षा करते-करते रात के साढ़े नौ बज गये। तभी एक कार आयी और रुक गयी उसमें से एक महिला ने खिड़की से झांकते हुए पूछा- कहाँ जाओगी मैडम ?जी नवीन नगर मैंने जवाब दिया।

अरे हम लोग उधर ही जा रहे हैं छोड़ देंगे।रात काफी हो चली थी सर्दियों में तो नौ बजे सड़कें काफी सूनसान होती हैं। गाड़ी में जाकर बैठ गयी। कुछ दूर तक गाड़ी रास्ते पर चलती रही उसके बाद यू टर्न लेकर रास्ता बदल दिया। पूछने पर महिला ने कहा कि इधर से जल्दी पहुंच जायेंगे। दो पुरुष भी बैठे थे लेकिन महिला ही ज्यादा बोल रही थी। गाड़ी करीब एक किलोमीटर और चली फिर एक सूनसान जगह पर रुकी।मुझे अब डर सताने लगा, महिला के कान में धीरे से बोलते हुए कहा कुछ गड़बड़ है। ये गाड़ी आपकी है या आप भी यात्री हैं। वो मुस्कुराई और बोली अरे मैडम गाड़ी भी हमारी और अच्छी सर्विस भी हमारी। मतलब क्या है? आपका।बैठी रहो बैठी रहो… सब मतलब समझ आ जायेगा।

देखो जो पैसा चाहिए सब दे दूँगी। ये लो कार्ड भी रख लो। बस जाने दो पैदल चली जाऊँगी। छोड़ने भी मत जाना। अबकी बार सब के सब ठहाके लगा रहे थे। तभी एक और गाड़ी आकर रुक गयी। अरे ये तो हमारे यहॉं के विधायक जी हैं। उनकी तरफ बढ़ने की कोशिश जैसे ही किया, वैसे ही विधायक जी के शब्दों ने कांपा दिया। अभी तक ये टिप टिप कर रही है और तुम लोगों ने जो कहा था वो नहीं किया। सर बस —-। क्या बस– ? चलो गाड़ी से निकालकर — और फिर क्या लूट लिया गया। बार बार लूटा गया और मैं चिल्लाती रही।

चले जाने के बाद माँ-बाप ने बताया कि बहुत बड़ा चेक मिला है, लेकिन वो चेक नहीं मिला, जिसे मिलना चाहिए था। पैसों का चेक मिला, न्याय का नहीं। तब से माँ-बाप वहाँ चक्कर काट रहे हैं और मैं बस स्टाप पर कि शायद वो बस मिल जाये। जिस पर बैठकर न्याय का चेक लेने पहुंच जाऊं। बहन अगर तुम्हे वो बस मिल जाये तो जरूर वहां तक चली जाना या मुझे बुला लेना। इतना कहकर वो आवाज़ सिसकियां लेती रही । आओ पास आओ, गले लगाते हुए ज्योति ने कहा- बहन आज से एक नहीं हम दो मिलकर उस बस को ढूंढेंगे और फिर दोनों मुसकुराते हुए बस की खोज में लग गयी। देखते हैं आखिर कब ——— ?