घूमता दिमाग | Laghukatha | Hindi Short Story

घूमता दिमाग | Laghukatha | Hindi Short Story

दिमाग भी कहां- कहां घुमाता रहता है? कुछ पता ही नहीं चलता , देखो न अब मुम्बई पहुचा दिया। शरीर दिल्ली में दिमाग मुम्बई कितना अजीब कितनी देर से इसे मुम्बई से दिल्ली लाने की कोशिश कर रही हूं लेकिन नहीं वहीं जमा बैठा है।जानती हूं मुम्बई बड़ा शहर , बड़ा पैसा। लेकिन दिल्ली भी क्या कम है? कभी -कभी बड़े पैसे के चक्कर में ही हमें मात खानी पड़ती है फिर भी —। हमारे साथ पढने वाली रेशमा जो सिर्फ पढ़ाई में ही नहीं खेल कूद में हमेशा अव्वल रहती ।

हम दोनों ने कालेज एक साथ खत्म किया और एम बी ए किया । रेशमा नौकरी के सिलसिले में मुंबई चली गई और मैं दिल्ली। मैंने कहा भी उससे कि वो भी दिल्ली आ जाये लेकिन उसने नहीं सुनी उसका आशिक रवि जो मुम्बई में था । अभी पन्द्रह दिन ही हुए थे मुम्बई गये कि कल रेशमा ने बताया कि यार मुम्बई आकर बहुत बड़ी गलती कर दी। तेरे साथ दिल्ली में ही रहती तो कितना अच्छा रहता। क्यों रेशमा क्या हुआ?पता चला कि रवि ने अभी एक महीने पहले ही शादी की है उसकी पहली बीबी मल्टीनेशनल कंपनी में काम करती है। इसने उसको बताया कि ये दो महीने के लिए आफिस के काम से बाहर जा रहा है और यहां हमारे पास आ गया।

तुझे ये बात पता कैसे चली ? मैंने पूछा! कल सुबह जब वो बाथरूम में था तब उसने कहा कि उसका फोन चार्ज पर लगा दूं उसकी बीबी का मैसेज था,” यार जानू तुम जबसे गये फोन मैसेज कुछ नहीं किया रात को तो काम नहीं होता होगा”। बता यार क्या कसूर है? जो इसने ऐसा किया । सिर्फ प्यार ही तो किया । प्यार करना इतना गलत है जिसकी इतनी बड़ी सजा। बता क्या करूं? तू भी वैसा ही कर जैसा उसने किया और देखना कभी धोखा नहीं खायेगी ।

देखना रवि धोखा जरुर खायेगा। मैंने कहा! रेशमा की सहमी आवाज कुछ समझी नहीं। बस उसने प्यार किया तो भी कर ले । रेशमा लेकिन किससे? किताबों से। मैं तो नौकरी के बाद किताबों में व्यस्त रहती हूं। ठीक है कोशिश रहती हूं। रेशमा ने धीरे -धीरे किताबें पढ़ना शुरू कर दिया और अब उसका ध्यान उतना रवि पर नहीं जाता। हां लेकिन उस दिन जरूर गया जिस दिन नशे में धुत्त रवि ने लड़खड़ाते हुए दरवाजे की घंटी बजाई । दरवाजा खोलते ही रवि लड़खड़ाते हुए अंदर आया और रेशमा से कहने लगा वो छोड़कर चली गई जैसा किया वैसा भरना पड़ेगा लेकिन तुम आजकल कैसे —-?रेशमा ने बस हमने भी किसी से दोस्ती कर ली है जैसे —। आपकी तो छोड़कर चली गई लेकिन ये कभी नहीं –। रेशमा ने जब ये बात बताई थी तो मेरे मुंह से इतना ही निकला वाह ! अपने आप में ही शाबाशी देने लगी मैं ‌ । तबसे ये दिमाग भी वहीं घूम रहा है।