कलम की दुनिया | रत्ना सिंह | लघुकथा
कलम की दुनिया | रत्ना सिंह | लघुकथा
मैंने अपनी बात को सब तक पहुंचाने के लिए फोन नहीं कलम को पकड़ा और उसने फोन।उसकी रफ़्तार तेज थी ,मेरी धीमी । उसका फोन रोज दौड़ता लेकिन मेरी कलम कभी- कभी ठस हो जाती तो कई- कई दिनों तक चलती नहीं। बात यह थी कि आज से लगभग पांच साल पहले जब हम दोनों का बारहवीं में स्कूल में पहला स्थान आया। दोनों के घर वाले खूब प्रसन्न थे । लेकिन मेरे घर से मिठाई मिली और मेरे पापा ने एक कलम देते हुए कहा कि इसको हमेशा संभाल कर रखना बेटा इससे ज्यादा तेरा ये बाप कुछ नहीं दे सकता ।
ठीक है पापा इससे ज्यादा कुछ नहीं चाहिए मैंने भी कहा। एक दो दिन के बाद बारहवीं में पहला स्थान लाने वाला निखित उसने बताया कि उसे इतने अच्छे अंक हासिल करने पर एक स्मार्ट फोन मिला है और उसके पापा ने कहा है कि इसे संभाल कर रखना बहुत मंहगा है और तेरे पापा ने क्या दिया ?निखित के पूंछने पर मैंने बहुत ही प्रसन्नता से जवाब दिया ,मेरे पापा ने कलम संभालने के लिए कहा है। क्या यार ?और हो हो कर हंसने लगा। निखित की हंसी बिल्कुल बुरी नहीं लगी, बल्कि मैंने कलम कोऔर कसकर पकड़ लिया। मैं कलम की दुनिया में व्यस्त हो गया और निखित फोन की दुनिया में व्यस्त रहने लगा।
पांच साल बाद आज जब उसका एक वीडियो देखा तो आश्चर्यचकित रह गया। उसने मेरी कलम की दुनिया को अपनी फोन की दुनिया में समाहित कर लिया था। आज मैंने निखित को फोन करते हुए कहा क्या बात है दोस्त ? निखित फिर हंसा और बोला कि तू फोन की दुनिया में कैसे आया ?कलम की दुनिया ने फोन की दुनिया में ला दिया।लेकिन तू कैसे ?बस आ गया तेरी दुनिया ज्यादा अच्छी थी जिसमें तूने दोनों दुनिया खुद से देखी और मैं तो अपनी दुनिया के बाद भी टिक नहीं सका और तेरी दुनिया में आ गया। सच यार तू और तेरी कलम महान है.
रत्ना सिंह रायबरेली उत्तर प्रदेश