लघुकथा : बेटियाँ बनी घर का चिराग
नंदनी आज बहुत खुश थी, पाँच बेटियों के बाद बेटा जो हुआ था। घर के बाहर ढोल नगाड़े की कानफोड़ू, परन्तु खुशियों के कारण वही मधुर आवाज़ें, तो अंदर से तरह-तरह के पकवानों की खुशबू आ रही थी। पास-पड़ोस की सभी औरतों और रिश्तेदारों की बधाईयों का तांता लगा हुआ था। मैंने भी सोचा कि मैं भी बधाई दे आऊँ, सो चली गई। नंदनी बेटे को गोद में लिये खूब चूम और दुलरा रही थी।
पाँचों बेटियां घर के काम में इधर-उधर दौड़ रही थी। चार तो काफी बड़ी, लेकिन इतनी भी बड़ी नहीं, कि घर के सारे दैनिक कार्यों के बाद भी प्यार नदारद रहे। मैं ये सब इसलिए कह रही हूँ कि अभी मेरी मौजूदगी नंदनी के घर में ही थी, तभी उसकी छोटी बेटी जो पाँच साल की थी, वो गिलास में सबको आधा जमीन पर लुढ़काते हुए पानी भर-भर के दे रही थी। कुछ देर बाद वो अपनी माँ के पास आयी और बैठ गयी। अपनी माँ के चुम्बन की तरफ जैसे ही बढ़ी कि माँ ने रोकते हुए कहा – ‘ये लाड़ प्यार बाद में कर लेना। जा, जो लोग आ रहे हैं, उनको पानी दे भरकर।’ वो बिना कुछ बोले उठी और चली गई। उम्र में भले ही छोटी लेकिन अपनी माँ को अच्छे से समझती जरूर होगी, तभी तो बिना मुँह खोले वहाँ से जाकर काम में जुटी। बड़ी दीदी का दुपट्टा पकड़कर सिसक पड़ी। बड़ी दीदी ने जरूर लाड़-प्यार किया और फिर काम में लग गयी।
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हर तरफ खुशियों की बहार। नंदिनी का पति राम प्रकाश शर्मा खेती-किसानी और मजदूरी करता था। शिक्षा उनके लिए जरूरी न थी, अन्यथा पाँच बेटियों के बाद छठवीं सन्तान की उम्मीद न करता। मदिरा सेवन प्रतिदिन करता था, बाद में गुस्सा अपनी बीवी पर उतरता था। बीवी भी क्यों पीछे रहे, वो अपना गुस्सा बेटियों पर उतारती थी। संतानें बड़ी होने लगी। किसी तरह से बेटियों ने घर संभालना शुरू किया। बेटियों के नन्हें कंधे पर बड़ी जिम्मेदारी रख दी गयी। वहीं धीरे-धीरे पाँचों बेटियां घर को रोशन कर रही थी। सबका विवाह भी मध्यमवर्गीय परिवार में कर दिया। सभी बेटियां अपनी अपनी ससुराल में खुश थी। लड़के का भी विवाह कर दिया गया।
कुछ ही वर्षों में बेटा अपनी अर्धांगिनी के साथ अलग दूर शहर में फैक्ट्री में नौकरी करने लगा।
बेटे की चिंता में नंदनी और उनके पति बीमार रहने लगे। घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने की वजह से दवाई तक के पैसे नहीं जुटा पाते। बीमारी और समय दोनों ने रफ्तार पकड़ी। एक रात नंदनी सो नहीं पायी। पति को खांसी का दौरा जो पड़ा कि नंदनी की नींद ही छीन ली। अगली सुबह नंदनी ने बेटे से फोन करके कहा- बेटा तेरा बाप बहुत बीमार है..। दवाई करा दे, नहीं तो मर जायेगा। बेटा- क्या है? बीमार हैं तो क्या करूँ ? तुम लोगों ने तो अपनी जिंदगी जी ली। हमें चैन से रहने दो और अब अस्सी बरस के हो ही गये होंगे। मर ही जायेंगे तो क्या ? कहते हुए बेटे फोन रख दिया। नंदनी ने अब अपनी बेटियों को संकोच करते हुए फोन किया और कहा बिटिया तेरा बाप बहुत बीमार है। आ देख जा, कहते हुए रोने लगी।
नंदनी ने सिर्फ एक बेटी को फोन किया लेकिन शाम तक पांचों बेटियां मौजूद। एक अस्पताल लेकर, तो दूसरी वहाँ दवाई की व्यस्था, तीसरी घर में खाने पीने की व्यवस्था, अंत तक पांचों बेटियां माँ-बाप की सेवा में लगी रहीं। राम प्रकाश के मुंह से अन्तिम समय में बेटियों के लिए दो शब्द निकले- ‘धन्य हो बेटी, तुम धन्य हो।’
अशोक कुमार गौतम
असिस्टेंट प्रोफेसर,
शिवा जी नगर, रायबरेली।
मो० 9415951459