पूरी गिनती |रत्ना सिंह | लघुकथा
पूरी गिनती | रत्ना सिंह | लघुकथा
वर्षों पहले अलग होने के बावजूद हम दोनों एक ही जगह पर पहुंचे और दोनों का स्वागत सत्कार बड़ी धूमधाम से ज़िले के मंत्री महोदय ने किया।हम वही लोग थे जिनके रास्ते कुछ सालों पहले एक थे लेकिन आज दोनों के रास्ते बेमेल खाते हुए बिल्कुल अलग थे। वषों पहले जब हम एक ही रास्ते पर चलते तो चाहे प्रेम की बात हो ,चाहे वस्तु की या फिर कारोबार करने की। समय गुजरा और वह राजनीति की दुनिया में चला गया और मैं कलम की दुनिया में चला गया।
आज मेरे बैठने के बावजूद उसकी नजर मेरी तरफ नहीं सभा में बैठे स्रोताओं की तरफ थी। मैं उसकी तरफ देख रहा था वो अपनी कुर्सी को कसकर पकड़े एक , दो ,पढ़ने जैसे हल्के हल्के होंठ हिल रहे थे। मैं भी नहीं समझ पाया कि आखिर गिन क्या रहा है समझ तो तब आया जब उसने मेरे पास आके सौ बोला और हंसकर कहने लगा मतलब सौ में से नब्बे तो पक्के। तब तक मंच से आवाज आई राम सिंह आयें और दो शब्द आशीर्वाद स्वरूप कहें राम सिंह। लेकिन वो तो अपनी सौ की गिनती पूरी होने की खुशी में मस्त हैं।