बंद आंखें | रत्ना सिंह | लघुकथा
बंद आंखें | रत्ना सिंह | लघुकथा
सारे समय झगड़ा,सारे समय झगड़ा उसके सिवाय तुम लोगों को कुछ नहीं सूझता। तंग आ गया हूं किसी दिन सब छोड़कर चला जाऊंगा,तब तुम दोनों को शान्ति मिल जायेगी अभिनव ने अपनी पत्नी करिश्मा और मां से कहा।
मां अभिनव से लिपटते हुए कहने लगी बेटा तुझे तो पता है कि तेरे बिना मैं कैसे रह सकती हूं तू आंखों का तारा है,तू एक मात्र सहारा है। कोई झगड़ा नहीं कर रही थी बस बहू को कहा कि घुटने में जोरों का दर्द है, थोड़ा तेल मल दे उतने में ही —–। बात पूरी भी नहीं होने दी कि करिश्मा बोल पड़ी, आखिर आप भी तो लगा सकती हैं अपने घुटनों में तेल घर का काम,बाहर का काम घर में घुसो नहीं कि दुनिया भर की बीमारी शुरू हो जाती हैं।जो अभिनव थोड़ी देर पहले मां और पत्नी दोनों को छोड़कर जाने की बात कह रहा था,वही पत्नी की तरफदारी करते हुए बोला -मां यार ठीक ही तो कह रही है करिश्मा अपने हाथ से तेल लगा लो हाथ पैर चलेंगे तो अच्छा होगा वरना जम जायेंगी हड्डियां। कोई बात नहीं बेटा आज के बाद नहीं कहूंगी लेकिन छोड़कर मत जाना कहते हुए मां की ममता भरे हाथों से बेटे और बहू को दुलराने लगीं। बहू झिड़कते हुए नौटंकी शुरू कर दी हटो उधर अभी घर में मरु चलकर इनसे तो बाहर का खाना भी नहीं खाया जाता । हर दिन वही दाल रोटी की फरमाइश रहती है पता नहीं कब छुटकारा मिलेगा और धप्प- धप्प करती हुई करिश्मा अंदर चली गई पीछे- पीछे अभिनव भी चला गया। मां भी जाकर कमरे में बैठ गयी ।
एक घंटा बीता दो घंटा बीता लेकिन कमरे का दरवाजा नहीं खुला तो मां ने कमरा खटखटाते हुए कहा बेटा बहू चाय बना रही हूं ले लेना। अंदर से बहू की आवाज अपने लिए बना लो हम लोग डिनर पर बाहर जा रहे हैं।
बेटा वो तो ठीक है लेकिन डिनर करने जायेगी देर रात लौटेगी नींद पूरी नहीं होगी कल आफिस भी है, रविवार को चली जाना । मां की बात सुनकर बहू ने भड़ाक से दरवाजा खोला,’अब आप बतायेंगी कब जाना है बस नहीं। बेटी होती तो कभी नहीं कहती बहू हूं इसलिए। जा रही हूं चलो अभिनव दोनों चलने लगे तो फिर मां ने टोका लेकिन बेटा ढेरों दवाई खानी है क्या खाऊंगी ये तो बतायें जा ? सब्जियां खत्म हो गई है फ्रिज में ब्रेड और मक्खन रखा है चाय बना ही रही हो खा लेना जितना मर्जी हो। चलो दरवाजा बंद करो और दोनों चले गए। मां ने चाय बनाई और ब्रेड गर्म किया साथ में दवाईयां भी गटक ली। दवाई रोज खटकती थी तो चैन की नींद नहीं ले पाती लेकिन आज की दवाई ने चैन की नींद दे दी। बहू बेटे कब घर में दाखिल हुए कितनी ?घंटियां बजाईं? सारी बातों से अनजान मां बस चैन की नींद सो रही थीं। एक बात उन्हें बराबर याद थी और बहू को पास बुलाकर कहा बहू तुम्हारी आंखें —-। अच्छा– अच्छा बहू हो इसलिए बेटी होती तो आंखें जरुर नम होती ऊपर जाकर भगवान से दुआ करूंगी कि तुम हमेशा बहू ही बनो मेरी। मां ने आंखें बंद कर ली बहू पथरायीं आंखों से उन्हें अभी भी देख रही है।
रत्ना भदौरिया
पहाड़पुर कासों गंगागंज रायबरेली उत्तर प्रदेश