सवाल | लघुकथा | रत्ना सिंह
सवाल | लघुकथा | रत्ना सिंह
सामने दो पेड़ बेहद शोभायमान थे।उस पर चढ़ रही लगभग दस साल की लड़की भी पेड़ों से कम शोभायमान नहीं थी। लेकिन मेरे दिमाग में एक सवाल बार बार आ रहा था कि आखिर वो लड़की एक ही पेड़ पर क्यों चढ़ रही है?आखिर दूसरे पेड़ पर भी तो चढ़ सकती है। अभी बुलाकर पूछती हूं और मैंने आवाज़ लगाई ज्ञानवती —-वो ज्ञानवती इधर आओ बेटा। वो दौड़कर पास आयी और बोली -हां दीदी का आये बताव ?
कुछ नहीं पहले तो तुम ये बताओ स्कूल नहीं जाती हो क्या ?अब तो छुट्टी खत्म हो गई, स्कूल खुल गये हैं। मेरी बात सुनकर वो बोली -जाईत हवै दीदी मुला आज काल्हि अम्मा बाप्पा हारै जात हंवै धान लगावै। तव बोकरीन कईहां चरावै वाला कऊ नहिन हवै यही बरे हम स्कूलै नहिन जाईत हवै।
अच्छा लेकिन आजकल तो स्कूल दोपहर तक ही रहता है चली जाया करो ,शाम को आकर बकरियों को चराया करो मैंने कहा।
नहीं दीदी घर केर खानव तव बनावये कईहां रहत हवै अम्मा -बाप्पा सुबेरेन निकरि जात हंवै उनका हार मईहां खाना दईके आईत हवै तव बोकरीन कईहां चरावै आईत हवै। ज्ञानवती की बातें सुनकर मज़बूरी साफ झलक रही थी। मैंने कहा सुबह अम्मा से कह दो खाना तो ले जाया करें।
नहीं दीदी येतना अम्मा से कहै केर बूत नहिंन हवै। अच्छा पढ़ाई के लिए कैसा डर ?मेरी बात पर ज्ञानवती फीकी सी मुस्कुराहट के साथ बोली नहीं दीदी बप्पा तव अबकिन बियाहे के बरे कहत रहें मुला अम्मा मना करि दाहिनी कि अबै ख्यात पात लगावै मईहां बरी मदद करत हवै परी रहै दियव अबै, अऊर बहस करबै तव पांचव तक्का न पढई हैं। अच्छा दीदी जाईत हवै सांझ होई गयीं रोटी बनावै कईहां हवै।
अच्छा चली जाना लेकिन जो पूंछने के लिए बुलाया वो तो पूंछा नहीं। ये बताओ तुम उतनी देर से एक ही पेड़ पर क्यों चढ़ रही थी?दूसरे पर क्यों नहीं चढ़ी ?जबकि दूसरा वाला बड़ा है। ज्ञानवती बोली दीदी वो पेड़ ज्यादा लदा है वहिमा ज्यादा फल लागी हंवै कबो टूटी सकत हवै मुला यहिमा फल बहुत कम है तव हमै चढै से वजन कम परी तव देर मईहां टूटी। मतलब ज्ञानवती मैं समझी नहीं।
दीदी अम्मा वहि दिन प्रधान के हियां गयीं रहै पइसन कईहां तव कहिन नहिन हवै अउर जब वोट मांगै आयें रहै तव कहिन की सब मदद करबै अउर जब ज्यादा ——। यही बरे अम्मा या बात कहिनि। अब तो आप समझि गईव होई हव नहीं तो ——–। कहते हुए ज्ञानवती भाग गयी। मैं कुछ समझी कुछ न समझी सी ज्ञानवती को देखती रह गयी ——-।