आंखें लघुकथा | प्रदीप सिंह | Hindi Short Story

आंखें ( लघुकथा )

एक लड़की थी , बचपन से ही अंधी थी। उसके बॉयफ्रैंड को छोड़कर , शायद सभी उससे नफरत करते थे। वह हमेशा कहा करती कि अगर मैं देख सकती तो तुमसे जरूर शादी कर लेती।

एक दिन अचानक किसी ने उसे अपनी आंखें दान कर दीं। उसने अपने बॉयफ्रैंड को देखना चाहा। वह उसे देखकर काफी हैरान हुई कि उसने जिसे चाहा वह भी अंधा ही है। लड़के ने पूछा कि अब तो तुम्हें आंखें मिल गई है , अब मुझसे शादी करोगी न ?

लड़की ने अपने पुराने रिश्ते को भुलाकर इस शादी से साफ-साफ इन्कार कर दिया। लड़का ये कहकर वहां से हमेशा के लिए चला गला कि मेरी आंखों का ख़्याल रखना।

पंडित राम प्रसाद बिस्मिल : शौर्य का पर्याय

पं० राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म उत्तर प्रदेश (तत्कालीन संयुक्त प्रांत) के शाहजहांपुर जनपद के छोटे से गांव खिरगीबाग में 11 जून सन 1897 को एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। पिता मुरलीधर और माता फूलमती किसी तरह से परिवार की गाड़ी चला रहे थे। आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। राम प्रसाद बिस्मिल अपने माता-पिता की दूसरी संतान थे। रामप्रसाद जी हर धर्म का बराबर सम्मान करते थे। उनके उपनाम ‘राम, बिस्मिल औऱ अज्ञात’ थे।


रामप्रसाद बिस्मिल प्रतिभा संपन्न युवा थे, उन्हें कई भाषाओं का ज्ञान था, जिसके कारण अनुवादक व साहित्यकार बन गए थे। बाद में वे इसी लेखन कौशल से अपनी जीविका चला रहे थे। राम प्रसाद बिस्मिल द्वारा लिखा गया गीत- सरफरोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है.. पूरे भारत में विख्यात हुआ और आज भी 26 जनवरी, 15 अगस्त, 2 अक्टूबर जैसे राष्ट्रीय पर्वों पर यह गीत अवश्य गया जाता है।


स्वाधीनता संग्राम आंदोलन में उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और ‘हिंदुस्तान पब्लिक संगठन’ से जुड़े रहे। राम प्रसाद बिस्मिल बचपन से ही शरारती थे। गलत संगत के कारण की आदत भी गलत पड़ गई थी। राम प्रसाद बिस्मिल अपने पिता के संदूक से रुपए चुराकर सिगरेट, तंबाकू, भांग आदि खरीदते थे, रुपये बच जाने पर उपन्यास खरीद लिया करते थे।


राम प्रसाद ने अपने वरिष्ठ साथियों के दिशा निर्देशन में “मातृ देवी’ नामक संगठन बनाया था, जिसके लिए समय-समय पर धन की आवश्यकता पड़ती थी। किसी की भी आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि, अपने पास से कोई व्यक्ति संगठन के लिए धन दे सके। तब राम प्रसाद बिस्मिल ने तीन डकैतियां डाली थी। भारत का मशहूर काकोरी कांड की चर्चा आज भी होती है। काकोरी कांड की घटना से ब्रिटिश सरकार बैकफुट पर आ गई थी और फिरंगियों को भारत से सत्ता समाप्ति की आहट सुनाई देने लगी थी।


सरकारी धन को लूटने के लिए राम प्रसाद बिस्मिल ने अपने घर (शाहजहांपुर) में 7 अगस्त सन 1925 को आपातकालीन बैठक बुलाई। जिसमें सर्वसम्मति से तय हुआ कि सहारनपुर से लखनऊ आने वाली पैसेंजर रेलगाड़ी को लूट जाएगा। पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, चंद्रशेखर आजाद आदि लगभग 10 वीर सपूत शाहजहांपुर स्टेशन पर रेलगाड़ी में सवार हो गए। भाप इंजन से छुक-छुक चलने वाली गाड़ी धीरे-धीरे लखनऊ पहुंच रहे थी। जैसे रेलगाड़ी जंगलों को चीरते हुए काकोरी रेलवे स्टेशन पर रुक कर, आगे बढ़ ही रही थी, कि बसंती चोले वाले क्रांतिकारियों ने सरकारी खजाने से भरे बक्से रेलगाड़ी से नीचे फेंक दिया। बाद में मजबूत बक्सा को हथौड़ा से तोड़कर सोना चांदी लूट ले गए। जल्दबाजी में सोना चांदी से भरे कुछ पैकेट वही छूट गए थे।

अंग्रेजन में बहुत तनाव व्याप्त हो गया कि क्रांतिकारी जब रेलगाड़ी लूट सकते हैं तो आगे कुछ भी कर सकते हैं इस डर से अंग्रेजों ने काकोरी कांड की घटना को गंभीरता से लेते हुए ब्रिटिश सीआईडी अधिकारी आर ए होतम और स्कॉटलैंड की विश्वसनीय पुलिस को जांच सौंप गई जज ए हाई मिल्टन ने 6 अप्रैल 1927 को निर्णय देते हुए क्रांतिकारी पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि यह घटना भारत से ब्रिटिश साम्राज्य को उखाड़ फेंकने की साजिश है जिसके कारण सभी क्रांतिकारी दोषियों को फांसी की सजा सुनाई जाती है लगभग 6 मा ट्रायल कैसे चलने के बाद गोरखपुर की जेल में 18 दिसंबर 1927 को माता-पिता से अंतिम मुलाकात करने के अगले दिन 19 दिसंबर 1927 को सुबह फांसी दे दी गई है बाद में रामप्रसाद बिस्मिल के समाधि बाबा राघव दास आश्रम बरहज देवरिया में बनाई गई थी राम प्रसाद साहित्यकार अनुवादक होने के नाते अनेक पुस्तक भी लिखते थे उनकी लिखी प्रमुख पुस्तकें- मैनपुरी षडयंत्र, स्वदेशी रंग, अशफाक की याद में, आदि हैं।

अशोक कुमार गौतम
असिस्टेंट प्रोफेसर
रायबरेली यूपी
मो० 9415951459

मधुमास लौट फिर से आया | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’

पीत बसन धरती ने ओढ़ी,
यौवन फसलों का गदराया,
अंग-अंग में अंगड़ाई है,
मधुमास लौट फिर से आया।टेक।

नयनों में सतरंगी सपने,
आते-जाते लगते अपने,
सुधि की मोहक अमराई में,
चॉद लगा मन को चुभने।
धरा वधूटी सी सज-धज कर,
नव नेहिल वारिद मॅडराया।
पीत वसन धरती ने ओढ़ी,
यौवन फसलों का गदराया।1।

लूट लिया था पतझर ने कल,
तरु-तर उपवन रूप विमल,
कोंपल,किसलय,लतिका मचले-,
कलिका बिहॅसे मधुर धवल।
रोम-रोम में मादक सिहरन,
कुंज-निकुंज शलभ बौराया।
पीत वसन धरती ने ओढ़ी,
यौवन फसलों का गदराया।2।

कल आयेगी भोर सुहावन,
भर जायेगी डेहरी-ऑगन,
पुलक धिरकते खग-कुल देखो-,
नवल व्योम छवि रूप लुभावन।
भंग पिये बिन मस्त भृंग से,
मधु माधव ने फिर बिखराया।
पीत वसन धरती ने ओढ़ी,
यौवन फसलों का गदराया।3।

रचना मौलिक,अप्रकाशित,स्वरचित,सर्वाधिकार सुरक्षित है।

हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश;
रायबरेली

मुक्ति का द्वार है | सम्पूर्णानंद मिश्र

मुक्ति का द्वार है | सम्पूर्णानंद मिश्र

स्त्री
हाड़, मांस,
और लोथड़े से निर्मित
सिर्फ़ एक देह नहीं है

जिसके लोथड़े को
नोंच लिया जाय
जब चाहे
और उसकी हड्डियों को
गली के
अन्यान्य कुत्तों के लिए
छोड़ दिया जाय

वह
एक आत्मा है
जो मुक्कमल शरीर में बसती है

जिस दिन
यह निकल जाय
पूरी गृहस्थी रोती है

ओढ़ती है जो
दु:खों की फटी चादर

लेकिन
अपने दु:खों के
आंसुओं के छींटों से
पुत्रों को नहीं भिगोती

उजड़ी
गृहस्थी की सिलाई
वह अपने
संतोष की सूई से करती है

लेकिन
अपनी पीड़ा की उल्टियां
करके
किसी की
दया के जल से अपना
और अपनी संतति का
मुंह नहीं धोती है

स्त्री देह नहीं है
हाड़- मांस का सिर्फ़
एक पुतला नहीं है

वह तो मुक्ति का
एक खुला द्वार है!

सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर वाराणसी
7458994874

विद्या प्रेम संस्कृति न्यास द्वारा डॉ सविता चडढा सुप्रसिद्ध साहित्यकार को मिला प्रेम रत्न सम्मान”

नयी दिल्ली : कार्यक्रम के प्रारंभ में विद्या प्रेम संस्कृति न्यास की ओर श्रीमती विद्या पांडेय ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। इस वर्ष का “प्रेम रत्न सम्मान” डॉ श्रीमती सविता चडढा, सुप्रतिष्ठित साहित्यकार को दिया गया। प्रेम-रत्न’ से सम्मानित डॉ. सविता चड्ढा ने सम्मान के प्रति आत्मीयता भरे शब्द कहे। उन्होंने कहा कि है ‘प्रेम रत्न’ सम्मान डॉ. कल्पना पांडेय के पिता श्री प्रेम किशोर पांडेय जी को समर्पित है इसलिए आज से इस वे भी डॉ कल्पना पांडेय के लिए पिता तुल्य हो गईं हैं । उन्होंने स्वर्गीय श्री प्रेम किशोर पांडेय की कविता “तुझको क्या हो गया बनारस “की कुछ पंक्तियां भी पढ़ीं-किसकी…..किसकी काली छाया पड़ी कि तू असहाय हो गया, अपनी संस्कृति की रक्षा में क्यूंकर तू निरुपाय हो गया।”

श्री अजीज सिद्दीकी, श्री अनिल जोशी, श्री एस जी एस सिसोदिया ,पंडित सुरेश नीरव ,श्री रामस्वरूप दीक्षित ,डॉ पुष्पा सिंह बिसेन की उपस्थिति ने कार्यक्रम को ऊंचाइयां प्रदान की ।

उल्लेखनीय है कि श्रीमती सविता चड्ढा वर्ष 1984 से लेखन कार्य कर कर रही है और विभिन्न विधाओं पर आप की अब तक 50 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हैं।

आपका लेखन बहुआयामी है आपके 17 कहानी संग्रह, 12 पत्रकारिता विषयक पुस्तकें प्रकाशित है जिनमें से चार विभिन्न संस्थानों में पाठ्यक्रम में संस्तुत हैं, 11 लेख संग्रह, 2 उपन्यास ,11 काव्य की पुस्तकें तो प्रकाशित हैं ही । समय-समय पर आप आपकी कहानियों पर टेली फिल्में बनी है ,नाटक मंचन हुए हैं, अनुवाद हुए हैं, आपकी कहानियों पर शोध कार्य संपन्न हो चुके हैं । राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आपके लेखन को समाजोपयोगी स्वीकार किया गया है । आपके साहित्यिक यात्राओं का उल्लेख किया जाए तो विभिन्न संस्थाओं में आपकी सक्रियता और उपस्थिति ने साहित्य को नई ऊंचाइयों प्रदान की है। आपकी निरंतर साहित्य साधना के लिए आपको विभिन्न संस्थाओं द्वारा समय-समय पर सम्मानित किया गया है और आप इन सभी सामानों के लिए ईश्वर का, पाठकों का आभार व्यक्त करती हैं। आपका कहना है मिलने वाले पुरस्कार और सम्मान आपको भविष्य में श्रेष्ठ और अच्छे लेखन के लिए उत्साहित करते हैं।
इस अवसर पर डॉ कल्पना पांडेय ‘नवग्रह ‘ द्वारा संपादित पुस्तक “तुझको क्या हो गया बनारस” के अनावरण का लोकार्पण भी हुआ । कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती शकुंतला मित्तल जी ने किया।

सभा में उपस्थित सभी प्रबुद्ध जनों में श्री अतुल प्रभाकर, डॉ शारदा मिश्रा, श्रीमती स्मिता श्रीवास्तव , श्रीमती वीना अग्रवाल, श्रीमती चंचल वशिष्ठ श्रीमती निरंजन शर्मा, श्री सरोज जोशी, श्री संजय गर्ग, श्री कुमार सुबोध, ने उपस्थित होकर आज के कार्यक्रम की गरिमा को बढ़ाया। अंत में आयोजन में आए हुए सभी अतिथियों का दिल से धन्यवाद देते हुए विद्या-प्रेम संस्कृति न्यास के संरक्षक डॉ. आर. के. सिंह ने किया सभी का आभार व्यक्त किया।

दिल्ली में 11 मार्च को होगा भारतीय महिला शक्ति सम्मान समारोह
  • देशभर की पच्चीस महिलाएं होंगी सम्मानित
  • सविता चड्ढा का होगा सार्वजनिक अभिनंदन

नई दिल्ली : भारतीय महिला शक्ति सम्मान समारोह सावित्तीबाई सेवा फाउंडेशन पुणे अंग जन गण और मेरा गांव मेरा देश फाउंडेशन द्वारा 11 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के परिप्रेक्ष्य में और सावित्रीबाई फुले की पुण्यतिथि पर
नई दिल्ली स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान के सभागार में आयोजित किया जा रहा है।
यह जानकारी देते हुए सावित्रीबाई सेवा फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रसून लतांत , सचिव हेमलता म्हस्के और अंग जन गण के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा सुधीर मंडल ने कहा कि सावित्री बाई फुले की स्मृति में यह सम्मान इसलिए दिया जाता है क्योंकि वे भारतीय महिलाओं के लिए एक अति उज्ज्वल आदर्श है। उन्होंने देश में तब लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला जब लड़कियों को पढ़ाना पाप समझा जाता था। आज महिलाएं पढ़ लिख कर आगे बढ़ गई हैं लेकिन बहुत से मामलों में उनके साथ भेदभाव बरता जाता है। आज समाज को बार बार यह अहसास दिलाने की जरूरत है कि महिलाएं भी कम नहीं हैं। उन्हें भी उनके अधिकार दिए जाएं उनकी गुणवत्ता और कुशलता को मान सम्मान दिया जाना चाहिए।

यह सम्मान शिखर महिला और पदमश्री डा शीला झुनझुनवाला, के सान्निध्य में पंजाब केशरी न्यूज प्रा लिमिटेड की चेयर पर्सन और मुख्य अतिथि किरण चोपड़ा अतुल प्रभाकर, प्रसिद्ध समाज सेवी इंद्रजीत शर्मा , पदमश्री डा संजय , अज़ीज़ सिद्दिकी ,डा ममता ठाकुर मिल कर देंगें।
इस मौके पर वरिष्ठ लेखिका और समाजसेविका डा सविता चड्ढा का सार्वजनिक अभिनंदन किया जाएगा। अनेक सम्मानों और पुरुस्कारों से सम्मानित डा सविता चड्ढा का साहित्य और समाज में योगदान सराहनीय है। महिलाओं के लिए वे आदर्श हैं कि कैसे वे संघर्षों से जूझती हुई अपने मुकाम पर पहुंची। इस समारोह में जिनको भारतीय महिला शक्ति सम्मान से सम्मानित किया जाएगा उनके नाम इस प्रकार हैं।
1.नंदिनी जाधव – पुणे – महिला सशक्तिकरण
2.रत्ना भदौरिया – दिल्ली – साहित्य
3.सांत्वना श्रीकांत – दिल्ली – साहित्य
4.दीपिका तिर्की – जहारखंड – शिक्षा
5.मनीषा धुर्वे – मध्यप्रदेश – शराबबंदी
6.नूतन पांडेय – दिल्ली – पूर्वोत्तर साहित्य
7.शारदा बेन मगेरा – गुजरात – शिक्षा
8.कपना पांडे नवग्रह – दिल्ली – साहित्य
9.डा.श्र्वेता – बिहार – शिक्षा
10.सिनीवाली गोयल – छत्तीसगढ़ – समाज कल्याण
11.वसुधा कनुप्रिया – दिल्ली- साहित्य एवं समाज सेवा
12 डा.जुही बिरला- उत्तर प्रदेश – शिक्षा
13.पुष्पा राय – दिल्ली – समाज सेवा
14.दमयंती बेन गमेती – गुजरात – लोक गायन
15.डॉ.अनीता कपूर – अपेरिका – साहित्य
16.अंजु खरबंदा – दिल्ली – लेखन
17.डी.एम.एस.मधुभाषिणी कुलसिंह (सुगंधि) – श्रीलंका – हिंदी
18.कल्पना झा- दिल्ली – साहित्य
19.मधु बेरिया साह – उत्तराखंड – लोक गायन
20.बाल कीर्ति- दिल्ली – साहित्य
21.संध्या यादव, मुंबई – साहित्य
22.डॉ.पुष्पा जोशी – उत्तराखंड – महिला सुशक्तिकरण
23.स्मिता जिंदल – पंजाब – बाल शिक्षण
24 मिलन धुर्वे मध्य प्रदेश समाज सेवा
25 नाज़नीन अंसारी, साहित्य, दिल्ली

Weekend Top

1

martyred shailendra pratap singh par kavita

जम्मू कश्मीर के सोपोर जिले मेँ आतंकी हमले मेँ शहीद सीआरपीएफ रायबरेली के जवान शैलेन्द्र प्रताप सिंह के लिए हिंदी विद्धान दयाशंकर जी की कविता martyred shailendra pratap singh par kavita

*शहीद सैनिक शैलेन्द्र सिंह को समर्पित*

बालक शैलेन्द्र का बाल्यकाल,

ग्रामांचल मध्य व्यतीत हुआ।

प्रारंभिक शिक्षा हेतु माता ने,

ननिहाल नगर को भेज दिया ।

अपने सीमित श्रम साधन से,

प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण किया।

चल पड़े कदम देश की सेवा को,
दायित्व भार जो मिला तुम्हे,

उसको पूरा करना होगा ।

है शत्रु खड़ा जो सीमा पर,
उसका रण-मद हरना होगा।

रण की वेदी पर कभी कभी,
कुछ पुष्प चढ़ाने पड़ते हैं।

कुछ महा वीर होते शहीद,
जो मातृभूमि हित लड़ते हैं।

वह मौन हो गया परमवीर,
अपने पीछें संदेश छोड़ गया ।

भावी    युवकों की  आंखों   को,
भारत की सीमा की ओर मोड़ गया।

स्वर गूंजा मत रोना मुझको तिरंगे में लिपटे होने पर,
मत     तर्पण     करना    आंखों   के   पानी   का।

करना है तो तर्पण करना,
सीमा पर प्रखर जवानी का ।

श्रद्धांजलि मुझको देते हो,
तो साथ शपथ लेनी होगी।

भारत की सीमा पर वीरों प्राणों की आहुति अपनी देनी होगी।
जो दीप जलाया है मैंने,
वह बुझे नहीं बरखा व तूफानों से।

उसकी लौ क्रीड़ा करती रहे सतत,

आजादी के परवानों से।
*दया शंकर*
राष्ट्रपति पुरस्कृत,साहित्यकार
पूर्व अध्यक्ष हिंदी परिषद रायबरेली

2

nahin thaharata hai vakt

नहीं ठहरता है वक्त

ए मुसाफ़िर सब बीत जायेगा
यह वक़्त कभी ठहरा ही नहीं !
रफ्त़ा- रफ़्ता निकल जायेगा
उजाले कब तलक क़ैद रहेंगे
देखना ! कल सुबह
अपनी रिहाई के
गीत ज़रूर गायेंगे
माना कि
आज सारे जुगनूं
तम से संधि कर
उजालों को चिढ़ा रहे हैं
जब अंधकार की छाती चीरकर
कल
रश्मियां विकीर्ण हो जायेंगी
तो इन्हीं में से कुछ जुगनूं
आफ़ताब से भी हाथ मिलायेंगे
ए मुसाफ़िर सब बीत जायेगा
ये वक्त कभी ठहरा ही नहीं!
आज आंजनेय के बध के लिए
बिसात बिछाई जा रही है
एक और सुरसा की ज़िंदगी
दांव पर लगाई जा रही है
लेकिन झूठ के वक्ष को चीरकर
जब
सत्य का सूर्य कल उदित होगा
तो देखना! यही अंधेरे
दिन में ही दिनकर
से हाथ मिलायेंगे
ए मुसाफ़िर सब बीत जायेगा
ये वक्त कभी ठहरा ही नहीं

संपूर्णानंद मिश्र
प्रयागराज फूलपुर

 

3

Dr rasik kishore singh neeraj ka rachna sansar

Dr rasik kishore singh neeraj ka rachna sansar
डॉ. रसिक किशोर सिंह ‘नीरज’ की इलाहाबाद से वर्ष 2003 में प्रकाशित पुस्तक ‘अभिलाषायें स्वर की’ काव्य संकलन में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त गीत कारों ,साहित्यकारों ने उनके साहित्य पर अपनी सम्मति प्रकट करते हुए कुछ इस प्रकार लिखे हैं

भूमिका

कविता अंतस की वह प्रतिध्वनि है जो शब्द बनकर हृदय से निकलती है। कविता वह उच्छ् वास है जो शब्दों को स्वयं यति- गति देता हुआ उनमें हृदय के भावों को भरना चाहता है क्योंकि कविता उच्छ् वास है और उच्छ् वास स्वर का ही पूर्णरूप है, अतः यदि स्वर की कुछ अभिलाषाएँ हैं तो वे एक प्रकार से हृदय की अभिलाषाएँ ही हैं जो काव्य का रूप लेकर विस्तृत हुई हैं ।’अभिलाषायें स्वर की’ काव्य संग्रह एक ऐसा ही संग्रह है इसमें कवि डॉ. रसिक किशोर सिंह ‘नीरज’ ने अपनी अभिलाषाओं के पहले स्वर दिए फिर शब्द।

 

कवि डॉ. रसिक किशोर ‘नीरज‘ ने इस संग्रह में कविता के विभिन्न रूप प्रस्तुत किए हैं। उदाहरणतया उन्होंने अतुकांत में भी कुछ कवितायें लिखी हैं एक प्रश्न तथा अस्मिता कविता इसी शैली की कविताएं हैं तथा पवन बिना क्षण एक नहीं….. वह तस्वीर जरूरी है…… किसी अजाने स्वप्नलोक में…… अनहद के रव भर जाता है…. पत्र तुम्हारा मुझे मिला….. खिलता हो अंतर्मन जिससे….
विश्व की सुंदर सुकृति पर….. मित्रता का मधुर गान……. चढ़ाने की कोशिश……. चूमते श्रृंगार को नयन…… बनाम घंटियां बजती रही बहुत…… जो भी कांटो में हंसते ……..जिंदगी थी पास दूर समझते ही रह गये…….. गीत लिखता और गाता ही रहा हूं……. श्रेष्ठ गीत हैं इन रचनाओं में कवि ने अपने अंतर की प्रति ध्वनियों को शब्द दिए हैं
डॉ. कुंंअर बैचेन गाज़ियाबाद
2. कविता के प्रति नीरज का अनुराग बचपन से ही रहा है बड़े होने पर इसी काव्य प्रेम ने उन्हें सक्रिय सृजनात्मक कर्म में प्रवृत्त कियाl यौवनोमष के साथ प्रणयानुभूति उनके जीवन में शिद्त से उभरी और कविता धारा से समस्वरित भी हुई ।वह अनेक मरुस्थलों से होकर गुजरी किन्तु तिरोहित नहीं हुई। संघर्षों से जूझते हुए भावुक मन के लिए कविता ही जीवन का प्रमुख सम्बल सिद्ध हुई
डॉ. शिव बहादुर सिंह भदौरिया

इस प्रकार रायबरेली के ही सुप्रसिद्ध गीतकार पंडित बालकृष्ण मिश्र ने तथा डॉ. गिरजा शंकर त्रिवेदी संपादक नवगीत हिंदी मुंबई ने और डॉ. महाश्वेता चतुर्वेदी बरेली आदि ने अपनी शुभकामनाएं देते हुए डॉ. नीरज के गीतों की प्रशंसा की है

(1). पारब्रह्म परमेश्वर

पारब्रह्म परमेश्वर तेरी
जग में सारी माया है।
सभी प्राणियों का तू
नवसृजन सृष्टि करता
तेरी ही तूलिका से
नव रूप रंग भरता।
कुछ रखते सत् विचार
कुछ होते अत्याचारी
तरह तरह के लोग यहाँँ
आते, रहते बारी-बारी ।
जग के रंगमंच में थोड़ा
अभिनय सबका आया है।
कहीं किसी का भेद
खेद हो जाता मन में
नहीं किसी की प्रगति
कभी देखी जन-जन में ।
सदा सदा से द्वेष
पनपता क्यों जीवन में
माया के चक्कर में
मतवाले यौवन में।
‘नीरज’ रहती नहीं एक सी
कहीं धूप व छाया है।।

(2).राम हमारे ब्रह्म रूप हैंं

राम हमारे ब्रह्म रूप हैं ,राम हमारे दर्शन हैं ।
जीवन के हर क्षण में उनके, दर्शन ही आकर्षण हैं ।।
हुलसी सुत तुलसी ने उनका
दर्शन अद्भुत जब पाया ।
हुआ निनाँदित स्वर तुलसी का
‘रामचरितमानस’ गाया।।
वैदिक संस्कृति अनुरंजित हो
पुनः लोक में मुखर हुई ।
अवधपुरी की भाषा अवधी
भी शुचि स्वर में निखर गई।।
कोटि-कोटि मानव जीवन में, मानस मधु का वर्षण है ।
राम हमारे ब्रह्म रूप हैं राम, हमारे दर्शन हैं।।
ब्रह्म- रूप का रूपक सुंदर ,
राम निरंजन अखिलेश्वर ।
अन्यायी के वही विनाशक,
दीन दलित के परमेश्वर ।।
सभी गुणों के आगर सागर ,
नवधा भक्ति दिवाकर हैं।
मन मंदिर में भाव मनोहर
निशि में वही निशाकर है।
नीरज के मानस में प्रतिपल, राम विराट विलक्षण हैंं।
राम हमारे ब्रह्म रूप हैं , राम हमारे दर्शन हैं।

(3).शब्द स्वरों की अभिलाषायें

रात और दिन कैसे कटते
अब तो कुछ भी कहा ना जाये
उमड़ घुमड़ रह जाती पीड़ा
बरस न पाती सहा न जाये।
रह-रहकर सुधियाँ हैं आतीं
अन्तस मन विह्वल कर जातीं
संज्ञाहीन बनातीं पल भर
और शून्य से टकरा जातीं।
शब्द स्वरों की अभिलाषायें
अधरों तक ना कभी आ पायें
भावों की आवेशित ध्वनियाँ
‘ नीरज’ मन में ही रह जायें।

(4). समर्पण से हमारी चेतना

नई संवेदना ही तो
ह्रदय में भाव भरती है
नई संवेग की गति विधि
नई धारा में बहती है ।
कदाचित मैं कहूँँ तो क्या कि
वाणी मौन रहती है
बिखरते शब्द क्रम को अर्थ
धागों में पिरोती है ।
नई हर रश्मि अंतस की
नई आभा संजोती है
बदल हर रंग में जलती
सतत नव ज्योति देती है।
अगर दीपक नहीं जलते
बुझी सी शाम लगती है
मगर हर रात की घड़ियाँ
तुम्हारे नाम होती हैं।
नया आलोक ले ‘नीरज’
सरोवर मध्य खिलता है
समर्पण से हमारी चेतना
को ज्ञान मिलता है ।

(5).नाम दाम के वे नेता हैं

कहलाते थे जन हितार्थ वह
नैतिकता की सुंदर मूर्ति
जन-जन की मन की अभिलाषा
नेता करते थे प्रतिपूर्ति।
बदले हैं आचरण सभी अब
लक्षित पग मानव के रोकें
राजनीति का पाठ पढ़ाकर
स्वार्थ नीति में सब कुछ झोंके।
दुहरा जीवन जीने वाले
पाखंडी लोगों से बचना
शासन सत्ता पर जो बैठे
देश की रक्षा उनसे करना।
पहले अपनी संस्कृति बेची
अब खुशहाली बेंच रहे हैं
देश से उनको मोह नहीं है
अपनी रोटी सेक रहे हैं।
देशभक्ति से दूर हैं वे ही
सच्चे देश भक्त कहलाते
कैसे आजादी आयी है
इस पर रंचक ध्यान न लाते।
कथनी करनी में अंतर है
सदा स्वार्थ में रहते लीन
नाम धाम के वे नेता हैं
स्वार्थ सिद्धि में सदा प्रवीन।

(6). आरक्षण

जिसको देखो सब ऐसे हैं
पैसे के ही सब पीछे हैं
नहीं चाहिए शांति ज्ञान अब
रसासिक्त होकर रूखे हैं।
शिक्षा दीक्षा लक्ष्य नहीं है
पैसे की है आपा धापी
भटक रहे बेरोजगार सब
कुंठा मन में इतनी व्यापी ।
आरक्षण बाधा बनती अब
प्रतिभाएं पीछे हो जातीं
भाग्य कोसते ‘नीरज’ जीते
जीवन को चिंतायें खातीं ।
व्यथा- कथा का अंत नहीं है
समाधान के अर्थ खो गये
आरक्षण के संरक्षण से
मेधावी यों व्यर्थ हो गये।
सत्ता पाने की लोलुपता ने
जाने क्या क्या है कर डाला
इस यथार्थ का अर्थ यही है
जलती जन-जीवन की ज्वाला।

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प्यार का गीत – बाबा कल्पनेश

प्यार का गीत – बाबा कल्पनेश
प्यार का गीत
मैं भी चाह रहा था लिखना वही प्यार का गीत,
जिसमें हार हुई हो मेरी और तुम्हारी जीत।
कई जन्म बीते हैं हमको करते-करते प्यार,
तन-मन छोड़े-पहने हमने आया नहीं उतार।
छूट न पाया बचपन लेकिन चढ़ने लगा खुमार,
कितने कंटक आए मग में अवरोधों के ज्वार।
हम दोनों का प्यार भला कब बनता अहो अतीत,
मैं भी चाह रहा था लिखना वही प्यार का गीत।
तुम आयी जब उस दिन सम्मुख फँसे नयन के डार,
छिप कर खेले खेल हुआ पर भारी हाहाकार।
कोई खेल देख पुरवासी लेते नहीं डकार,
खुले मंच से नीचे भू पर देते तुरत उतार।
करने वाले प्यार भला कब होते हैं भयभीत,
मैं भी चाह रहा था लिखना वही प्यार का गीत।
नदी भला कब टिक पायी है ऊँचे पर्वत शृंग,
और कली को देखे गुप-चुप रह पाता कब भृंग।
नयनों की भाषा कब कोई पढ़ पाता है अन्य,
पाठ प्यार का पढ़ते-पढ़ते जीवन होता धन्य।
जल बिन नदी नदी बिन मछली जीवन जाए रीत,
मैं भी चाह रहा था लिखना वही प्यार का गीत।
कभी मेनका बन तुम आयी विश्व गया तब हार,
हुई शकुंतला खो सरिता तट लाए दिए पवार।
कण्वाश्रम पर आया देखा सिर पर चढ़ा बुखार,
भरत सिंह से खेल खेलता वह किसका उद्गार।
वही भरत इस भारत भू पर हम दोनों की प्रीत,
मैं भी चाह रहा था लिखना वही प्यार का गीत।
श्रृद्धा मनु से शुरू कहानी फैली मानव वेलि,
अब भी तो यह चलता पथ पर करता सुख मय केलि।
इसे काम भौतिक जन कहते हरि चरणों में भक्ति,
आशय भले भिन्न हम कह लें दोनो ही अनुरक्ति।
कभी नहीं थमने वाली यह सत्य सनातन नीत,
मैं भी चाह रहा था लिखना वही प्यार का गीत।
बाबा कल्पनेश