Old Age Home in Hindi | वृद्धाश्रम – डॉ0 सोनिका अम्बाला
Old Age Home in Hindi | वृद्धाश्रम – डॉ0 सोनिका अम्बाला
वृद्धाश्रम
गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का अद्भुत संगम, तंबुओं का शहर, कुंभ मेला, शिक्षा का केंद्र, मुगल कालीन शासक अकबर का साम्राज्य, अक्षय वट, स्वाधीनता संग्राम का केंद्र अल्फ्रेड पार्क, राजनीतिक केंद्र, त्रेतायुग में भगवान श्री राम का विश्राम स्थल जैसे तमाम विशेषणों को समेटे है- आध्यात्मिक भूमि प्रयागराज। यहां की सभ्यता, संस्कृति और शिक्षा व्यवस्था आज भी अद्भुत व निराली है। इसी शहर में नामी-गिरामी डॉक्टर वीर प्रताप रहते थे। नाम के अनुरूप ऑपरेशन, दवा-इलाज करने में निपुण थे। उनके परिवार में पत्नी, छोटा बेटा और वृद्ध पिता जी थे। डॉक्टर की ख्याति दिनों दिन बढ़ती जा रही थी। जिनकी चर्चा भारत के कोने-कोने में होने लगी थी। महाशय ने खूब धन कमाया और तत्पश्चात हाईटेक, फिल्मी सितारों का शहर एवं भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई में अपना चिकित्सालय खोल लिया। वहां तो मानो धन-वर्षा ही होने लगी, क्योंकि ‘वीर प्रताप’ नाम ही काफी है। कुछ समय बाद वीर ने पत्नी, बेटा और पिता को भी मुंबई बुला लिया।
प्रयागराज-भारत की प्राचीन संस्कृति और मुंबई की पाश्चात्य संस्कृति में वृद्ध पिता जी समन्वय स्थापित नहीं कर पा रहे थे। पिता की यह विचारधारा वीर प्रताप को चुभने लगी थी। पिता जी वीर प्रताप को समझाते हुए कहते थे- अस्पताल के कर्मचारियों और नौकरों के साथ भी मानवता का व्यवहार करो। प्यार और सम्मान का भूखा हर व्यक्ति है। यह संस्कारी बातें अब तो डॉक्टर वीर प्रताप को इतना चुभी कि पिता को अपने साथ रखना ही नहीं चाहते थे। समय बीतता गया मानसिक तनाव कोरोना की तरह परिवार में फैल चुका था। कुछ दिन बाद डॉक्टर वीर अपने पिता को प्रयागराज घुमाने के बहाने ले गए। वहीं हमेशा के लिए दूरी बनाते हुए वृद्धाश्रम में पिता को छोड़कर वापस मुंबई लौट आए।
अब डॉक्टर का संपूर्ण ध्यान धन कमाने में लगा हुआ था। कोई रोकने-टोकने वाला नहीं था, पत्नी भी स्वयं को असहाय पाती थी। वीर प्रताप की पत्नी अपने ससुर जी को पिता की तरह मान-सम्मान देती थी। धनाड्य परिवार के बेटे का रुतबा तो सातवें आसमान पर था। बेटे की स्कूल में ग्रीष्मकालीन छुट्टियां हो चुकी थी।समय निकालकर डॉक्टर साहब सपरिवार महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन दर्शन करने गए थे। उज्जैन में चर्चा फैली हुई थी कि यहाँ पर सिद्ध पुरुष ज्योतिषी बाबा आए हुए हैं। उनकी वाणी में मानो साक्षात सरस्वती विद्यमान हैं। बाबा जो भी कहते हैं, वह बात सत्य निकलती है। डॉक्टर वीर प्रताप अपनी उत्सुकता शांत करने के लिए ज्योतिषी बाबा के हाथ में 251 दक्षिणा स्वरूप अर्पित करते हुए पूछा- ‘गुरुदेव, मेरे पास धन, दौलत, गाड़ियां, बंगला, परिवार सब कुछ है। फिर भी इतना जानना चाहता हूं कि मेरी मृत्यु कब, कहां और किन परिस्थितियों में होगी?’ बाबा ने कड़ी नज़रें ऊपर उठाते हुए रुपये तुरन्त वापस करते हुए कहा कि मैं एक भी रुपया नहीं लेता हूँ, सिर्फ पेट भरने के लिए थोड़ा सा भोजन या अन्न ले लेता हूँ। इतना कहने के बाद मूलतः शांत स्वभाव के ज्योतिषी बाबा ने ध्यानपूर्वक वीर प्रताप की हस्त रेखाएं देखी और पढ़ी। रेखाएं देखने के बाद कुछ क्षण के लिए वीर प्रताप को निहारते रहे, फिर अपनी उंगलियों में कुछ जोड़-घटाना किया। तत्पश्चात लंबी सांस लेकर कहा- ‘वत्स वीर प्रताप, जिन परिस्थितियों में और जिस स्थान पर भविष्य में आप के पिता की मृत्यु होगी उसी परिस्थिति में आप की भी मृत्यु निश्चित है।’
यह सुनकर डॉक्टर वीर प्रताप एकदम से भयभीत होकर बाबा के चरणों में गिर पड़े। खुद को संभालते हुए पिताजी को वापस लाने सीधा प्रयागराज चले गए। वृद्धाश्रम में पहुंचकर पिता के श्री चरणों में अपना सिर रखते हुए अपनी अक्षम्य गलती के लिए माफी मांगी। स्वभाव वश कोमल हृदय वाले पिताजी ने अपने पुत्र को माफ कर दिया और सभी सदस्य एक साथ रहने लगे।
कहानी की सीख
डॉ. सोनिका, अम्बाला की स्वरचित रचना ‘वृद्धाश्रम’ हमको सीख देती है कि हमें अपने माता–पिता का सम्मान अंतिम साँस तक करना चाहिए क्योंकि उनके पालन -पोषण के बिना हम कुछ नहीं होते हैं। प्रस्तुत कहानी में वीर प्रताप प्रसिद्धि पाते ही अपने पिता को भूल गए , उन्होंने पिता को वृद्धाश्रम में छोड़ दिया। लेकिन एक यात्रा के दौरान स्वामी जी की भविष्यवाणी सुनकर जमीर जाग उठा, उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और वह तुरंत अपने पिता के पास जाकर माफ़ी मांगते हुए उनको अपने साथ घर ले आता है । कहने को यह एक कहानी है लेकिन आज वर्तमान भौतिकवादी युग का कटु सत्य है।
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