मुक्ति का द्वार है | सम्पूर्णानंद मिश्र

मुक्ति का द्वार है | सम्पूर्णानंद मिश्र

स्त्री
हाड़, मांस,
और लोथड़े से निर्मित
सिर्फ़ एक देह नहीं है

जिसके लोथड़े को
नोंच लिया जाय
जब चाहे
और उसकी हड्डियों को
गली के
अन्यान्य कुत्तों के लिए
छोड़ दिया जाय

वह
एक आत्मा है
जो मुक्कमल शरीर में बसती है

जिस दिन
यह निकल जाय
पूरी गृहस्थी रोती है

ओढ़ती है जो
दु:खों की फटी चादर

लेकिन
अपने दु:खों के
आंसुओं के छींटों से
पुत्रों को नहीं भिगोती

उजड़ी
गृहस्थी की सिलाई
वह अपने
संतोष की सूई से करती है

लेकिन
अपनी पीड़ा की उल्टियां
करके
किसी की
दया के जल से अपना
और अपनी संतति का
मुंह नहीं धोती है

स्त्री देह नहीं है
हाड़- मांस का सिर्फ़
एक पुतला नहीं है

वह तो मुक्ति का
एक खुला द्वार है!

सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर वाराणसी
7458994874

मूर्तियों और फ्रेमों में | सम्पूर्णानंद मिश्र

मूर्तियों और फ्रेमों में | सम्पूर्णानंद मिश्र

पुराणों में पूजी जाती हैं
स्त्रियां
हम लोग पढ़ते और सुनते हैं अक्सर
लेकिन
पुराण के बाहर आते ही
परिदृश्य
बिल्कुल अलग होता है
पहियों के साथ
घसीटी जाती हैं
इक्कीसवीं सदी की स्त्रियां
रौंदी गई
एक स्त्री की आत्मा
सड़क पर
नववर्ष के पहले दिन
वैसे
साफ़ साफ़ दिखाई
देती है पुरुष की संवेदनशीलता
औरतों के प्रति
मूर्तियों और फ्रेमों में
सड़कों पर तो बिल्कुल नहीं
वही स्त्रियां दीर्घायु होती हैं
जिनकी ज़बान
सोई रहती है एक कोने में
जबड़े के भीतर
जैसे ही
अपने पैरों पर
जबड़े के बाहर
चलने लगती हैं
सड़कों पर
वह चमचमाती गाड़ियों से
पहुंचा दी जाती हैं
श्मशान घाट तक

सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर वाराणसी
7458994874

नया साल मुबारक हो | नववर्ष का स्वागत | सम्पूर्णानंद मिश्र

नया साल मुबारक हो

अपनी आत्मा पर
कितनी नृशंस
घटनाओं का बोझ
लादे
दिसंबर माह बीत रहा है
लूट-पाट, हत्या, बलात्कार
जैसे
जघन्य पाप का साक्षी
भले ही और महीना रहा हो
लेकिन
कसूरवार
दिसंबर ही होता है
जैसे
घर में
न कमाने वाले बेटे की
मेहर को
परिवार के
पापों की गठरी
बिना किसी प्रतिरोध के
उठानी पड़ती है
और
उसकी आंखों
के एक कोने में
पड़ा सुषुप्तावस्था में
उसका आक्रोश
उसकी नपुंसकता के
ख़िलाफ़ खड़ा होता है
लेकिन
फिर
वह
नामचीन
बनिए की तरह
नरम पड़ जाता है
क्योंकि
सौदे में
जब कीड़े
अपना आशियाना बनाने लगे
तो वह
न खाते बनता है
न फेंकते
यह समय की ही नियति है
कि
क्रम में जो
दिसंबर की तरह छोटा होता है
उसकी पीठ पर
बोझ रखने का
लाइसेंस
बड़ों को स्वयं मिल जाता है
नया साल एक
एक बार फिर
आ रहा है
सबको 2023 का
नया साल मुबारक हो !

सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर वाराणसी
7458994874

नववर्ष का स्वागत

पूरा देश
खड़ा है
नववर्ष के स्वागत में
दरअसल
अतीत के घाव
जो हमारी देह पर थे
कुछ सूख चुके हैं
कुछ सूख रहे हैं
ऐसे में
कड़वी स्मृतियों के उस्तरे
उस घाव को
फिर से ज़ख्मी कर दे
नहीं कोई चाहता
नववर्ष की ड्योढ़ी पर
पहुंचने से पूर्व
देश चपेट में है
शीतलहर के इस समय
भारत का परिदृश्य
बिल्कुल वैसा है
यह तो हम नहीं कह सकते
ठीक-ठीक
लेकिन हां
कोई विशेष बदलाव नहीं है
मंदिरों के सामने
नंग-धड़ंग बच्चे
शीत से घुघुवा रहे हैं
आने जाने वाले
भक्तों की
आंखों में उम्मीदों
का कंकड़ फेंककर
अपना भविष्य संवार रहे हैं
सिलिया
इस शीत में
बालपोथी की किताब लेकर
फटी कमीज़ पहने
मिड-डे मील के लिए
विद्यालय जा रही है
सब जन पढ़ें
सब जन बढ़े
के इस नारे को चरितार्थ कर रही है
इक्कीसवीं सदी
के भारत का भविष्य
आंकड़ों में तो उज्ज्वल है
लेकिन
हक़ीक़त में स्याह है
अपने आत्मीयजन
के खोने की पीड़ा
कोरोना में
उनसे पूछो
जो प्रतिदिन
अपनी आंखों के आंसू से नहा रहे हो
खैर
2023 में
सब सुखी और निरोग हों
सभी के उज्ज्वल भविष्य की सुखद कामना के साथ

सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर वाराणसी
7458994874

Hindi Kahani phaanken mein ek raat – फांकें में एक रात

Hindi Kahani phaanken mein ek raat – फांकें में एक रात

फांकें में एक रात कहानी


गुलफ़ाम महज़ तेरह साल का था, जब उसके अब्बू फ़िरोज़ अल्ला को प्यारे हो गए। प्रयागराज के एक छोटे से कस्बे में एक छोटी सी दुकान है, जहां फ़िरोज़ बाइक बनाने का काम करता था।चालीस साल की अवस्था थी। बेहद चुस्त-दुरुस्त, शरीर गठा हुआ, नीली आंखें, हिरण की तरह फुर्तीला। एक अलग ही सांचे में पकाकर अल्ला ताला ने उसको निकाला था। व्यवहार में विनम्रता। ईमानदारी तो उसके चेहरे के दर्पण से ही अपना प्रतिबिंब दिखा देती थी। उसके पूर्वज बिहार से बहुत पहले ही आकर बस गए थे। उन दिनों चंपारण में आज की तरह ही एक महामारी आई थी, जिसमें गुलफ़ाम के परदादा सब कुछ छोड़कर जान बचाकर यहां आ गए थे तब से यह परिवार यहीं रहने लगा। फ़िरोज अच्छा मैकेनिक था इसमें किसी तरह का कोई संशय नहीं था, मीठी ज़ुबान थी। किसी भी ग्राहक को निराश नहीं करता था। देर सबेर सभी का काम कर देता था, पैसा जो दे दो उसी में संतोष कर लेता था। संतोष जिसके मन में आ जाय बड़े से बड़ा प्रलोभन उसकी ईमान को नहीं डिगा सकता है। उस रात को गुलफ़ाम कभी भी नहीं भूल सकता जिस दिन महज़ दो सौ ग्राम दूध पीकर पेट सहलाते हुए निद्रा देवी को वह नींद के लिए पुकार रहा था। फ़िरोज को लाकडाउन की वज़ह से एक पैसा भी नहीं मिला।

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उस दिन वह बेहद निराश था। यह परिवार रोज़ कुआं खोदकर पानी पीता था। आज उसे चूल्हे की चिंता सर्पिणी की भांति रह- रह डंक मार रही थी। आज घर में क्या बनेगा ? घर पहुंचते ही छोटी बिटिया सकीना साइकिल पकड़ लेती थी। फ़िरोज उसके गालों को चूमने लगता था। इसके बाद उसे पांच रुपए वाला पारले बिस्कुट उसके हाथों में दे देता था। यह नित्य का काम था। कुछ समय तक वह वात्सल्य- सुख की सरिता में जी भर नहाता था। आज सकीना सोई हुई थी। घर में पहुंचते ही पत्नी अमीना का चेहरा बेहद निराश था; क्योंकि फ़िरोज़ के हाथ में कोई थैला नहीं था। घर में केवल आध पाव दाल बचा हुआ था। इसके अलावा सारे डिब्बे झांय- झांय कर रहे थे। अमीना ने फ़िरोज़ से कहा कि आज क्या खिलाएंगे बच्चों को! हम लोग तो पानी पीकर भी रात गुजार लेंगे। अमीना भी आठ तक पढ़ी थी। महामारी के प्रकोप से परिचित थी, समझ रही थी धंधा ऐसे समय में मंदा हो गया है। ऊपर से पुलिस वालों का आतंक। कई परिवार फूलपुर कस्बे से अपना मकान औने पौने दाम में बेचकर अपने- अपने गांव में ही कुछ करने के इरादे से चले गए थे, लेकिन फ़िरोज़ के कुल पांच बच्चे थे; सात लोगों का कुनबा लेकर कहां जाता वह! वैसे भी गांव में कौन सा पारिजात वृक्ष था, जो उसकी भूख मिटा देता।उस दिन घर में कुछ नहीं बन पाया।

पड़ोस से बड़ी मिन्नतें कर आध सेर दूध लेकर अमीना आई और उसमें आध सेर पानी मिलाकर किसी तरह बच्चों की भूख को शांत किया। आकाश में तारे टिमटिमा ही रहे थे कि फ़िरोज़ उठ गया। उसे नींद नहीं लगी,और सकीना के रोने की आवाज़ ने उसके भ्रम को पुष्ट कर दिया। वह समझ गया कि उसे भूख लगी है। अमीना ने उसे अपनी गोद में ले लिया ; कुछ देर तक तो वह शांत थी, लेकिन फिर वह रोने लगी। अमीना की छाती भी सूख चुकी थी। उसको कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। उसने उसे दूध की जगह पानी पिलाया। अमीना की आंखों से आंसू झरझर बहने लगे। इसी दुश्चिंताओं के स्वप्न के दरिया में फ़िरोज कब डूब गया। उसे नींद आ गई। सुबह के सात बज चुके थे। भगवान भुवन भास्कर अपनी अर्चियों से पूरी कायनात को नहला रहे थे, अमीना ने आवाज़ दी कि क्या आज दुकान नहीं जाओगे ? वह हड़बड़ा कर उठा और देखा कि दिन काफी चढ़ चुके हैं, वह आधे घण्टे के भीतर ही तैयार हो गया। अपनी साइकिल से चल पड़ा। रात का भयावह दृश्य उसके मस्तिष्क पर किसी मयूर की तरह नृत्य कर रहा था; वह जानता था कि फांकें में एक रात तो बीत गई, अगर आज कुछ बोहनी नहीं होगी तो कैसे चलेगा! इसी उधेड़बुन में लगभग पांच सौ मीटर ही चला होगा कि उसकी साइकिल असंतुलित हो गई और वह डिबाइडर से टकराते हुए गिर पड़ा। फूलपुर ब्रिज से तेज़ रफ़्तार से आ रही ट्रक उसे रौंदते हुए निकल चुकी थी, और वह वहीं इस असार संसार को छोड़कर अल्ला को प्यारा हो गया। उसके मुहल्ले का अख़्तर इफको टाउनशिप में सफाई का काम कांटैक्ट बेस पर करता था, वह उधर से जा रहा था; देखा कि बीसों लोगों की भीड़ इकट्ठी है।वह रुक गया, और उसने देखा कि यह तो फ़िरोज़ है; उसने अमीना के घर फ़ौरन सूचना भिजवायी कि फ़िरोज़ का एक्सीडेंट हो गया है अमीना भागते-भागते आ पहुंची और फ़िरोज़ को देखते ही बेहोश होकर गिर पड़ी। कुछ देर बाद ही पुलिस वाले आ गए और पंचनामा हेतु अपनी कार्रवाई करने लगे। उधर फ़िरोज़ के घर में मातम छा गया था।

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सम्पूर्णानंद मिश्र
प्रयागराज फूलपुर
7458994874

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