शैतान की मौत – हिंदी कविता

सीता राम चौहान पथिक दिल्ली की कलम से लिखी हिंदी कविता

शैतान की मौत 


देख कर जलती चिता को ,
एक उठता है  सवाल  ।
क्या यही इनसान  है    ॽ
जिसने  मचाया था बवाल ।
क्या  यही  औकात  है  ,
इनसान  के  तामीर की ।
खुद  पे  इतराता   रहा  ,
आवाज़  सुन  ज़मीर की ।
जब तलक  जिन्दा  रहा ,
ना खुद जिया – जीने दिया ।
नफ़रतो के  बीज  बोए  ,
ज़हर   पीने  को   दिया  ।
क्या  नहीं  ये  जानता  था ,
है ये  दौलत   बे वफ़ा  ॽ
खाने  पीने  में  मिलावट ,
जिन्दगी  कर  दी  तबाह ।
अब  ना  दौलत – हैकडी  ,
बस ख़ाक है इसका बिछौना ।
नेक नामी  की   नहीं   ,
अब तो  दामन  भी  घिनौना ।
अब  भी  ये  इनसान ,
क्यों  अंजाम  से है  बे-खबर ।
  बे -तहाशा  लूटता  है ,
लूट कर  भी  बे – सबर   ।
अब  तो  बन्दे ,  होश कर ,
 कुछ  नेकनामी  तो  कमा ।
सच्ची  दौलत  है  यही  ,
 खाते   में  इसको  कर  जमा ।
वरना तेरी  शान – शौकत  ,
धूल में  मिल  जाएगी  ।
 काफिला  लेकर  चला  है ,
शाम  कब  ढल  जाएगी  ।
अपनी बद – नियत से ,
अपने  पाक – दामन को बचा ।
आखिरी  ताकीद   है   ,
 खुद  को  बचा  या  पा  सज़ा ।
तेरे  हाथों में  खुदा  ने ,
ज़हर  – अमॄत  है  थमाए  ।
फैसला  तूझको  है  करना ,
पथिक अक्ल तुझको  आ जाए ।
  सीता राम चौहान पथिक दिल्ली