सरल सुभाउ छुअत छल नाहीं : डॉ० ओम प्रकाश सिंह

यूँ तो नौकरी करके अपनी सेवा करते हुए अनगिनत लोग सेवानिवृत्त हो जाते हैं, किंतु वो अध्यापक-प्राध्यापक जो निःस्वार्थभाव से शिक्षा, साहित्य और समाज को अपना जीवन समर्पित कर देते हैं, ऐसे लोग ऊँगलियों पर गिने जा सकते हैं। ऐसे ही वरिष्ठ गुरुजनों की श्रेणी में शीर्षस्थ हैं – साहित्यकार, प्रोफेसर डॉ० ओम प्रकाश सिंह जी।

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डॉ ओम प्रकाश सिंह का व्यक्तित्व और उनके नवगीत, एकांकी, उपन्यास आदि पढ़कर के महाकवि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित महाकाव्य श्री रामचरित मानस की अर्धाली सरल सुभाउ छुअत छल नाहीं याद आती है, क्योंकि श्रीराम की तरह आपका सरल स्वभाव है, छल तो आपको छूता भी नहीं है।

आपके द्वारा लिखे गए नवगीतों की भाषा इतनी सरल और सहज है, कि प्रशासनिक पदों पर विराजमान व्यक्ति से लेकर गाँव-गवई का आम इंसान भी आसानी से समझ लेता है। इसलिए आपके नवगीत भारत ही नहीं, अपितु विदेशों में भी पढ़े जा रहे हैं।

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संवेदनात्मक आलोक समिति शामली (उ.प्र.) के अध्यक्ष सचिव के माध्यम से डॉ० महेंद्र नारायण जी द्वारा संकलित प्रोफेसर डॉ० ओम प्रकाश सिंह के नवगीत पढ़ने का अवसर मुझे प्राप्त हुआ, जिसके लिए मैं खुद को भाग्यशाली समझने के साथ ही प्रोफेसर महेंद्र नारायण जी का हृदय से आभारी हूँ। नवगीतों का सृजन 1950 के दशक से होने लगा था, किंतु उसको गुरु जी ने ही परिपुष्ट करते हुए पैनी धार दिया है।

भौतिकयुग में मानवीय संवेदनाओं को ग्रहण लग गया। रक्त के रिश्ते भी ताख पर रख दिये गए हैं, एक साथ पूरा परिवार बैठकर भी अपने मे ही मस्त और व्यस्त हो गया है, जिसकी पीड़ा को व्यक्त करते हुए रचनाकार ने बड़े ही मार्मिक शब्दों लिखा है–

चुभ रहे हैं
मन गुलाबों पर कहीं,
किंतु जीते लोग
ख्वाबों पर कहीं
और काँटों से
घिरे हैं रिश्ते
प्रीत के बौने हुए संबंध।

‘प्रेम’ का महत्व त्रेता, द्वापर युग से चला आ रहा है। कबीर, तुलसी, सूर, जायसी, मीराबाई आदि ने शुद्ध, सात्विक प्रेम की परिकल्पना को महत्व दिया था, जिसका मूल उद्देश्य परमब्रह्म की प्राप्ति था। आज प्रेम का उद्देश्य अर्थवादी, संकीर्ण मानसिकता वाला हो गया है, जिसकी अवनति और अनुभूति रचनाकार गुरु जी भलीभांति महसूस करते हैं। आपने नवगीतों में भी बड़ी चतुराई से मानवीकरण पिरो दिया है। नायिका के सौंदर्य का वर्णन करते हुए लिखा है–

सजी-धजी
चंपा आई है
सुर्ख चमेली नाचे।
श्वेत रंग
परिधान पहनकर
पत्र चांदनी बांचे
मंद हवा की
छेड़छाड़ को
लगी कुमुदनी सहने।

“अंधेरा और भी स्वच्छंद, गीत लिखे हैं, साँझ का सूरज, मैं वह गीत नहीं लिख पाया, नए संघर्ष के आगे” आदि अनगिनत गीत डॉ० ओम प्रकाश सिंह गुरु जी ने लिखा है, जिसका शीर्षक ही सब कुछ कह देता है।
नवगीत जैसी नई विधा में गीत लिखना आसान कार्य नहीं है, कम शब्दों में पूरी भावना व्यक्त करने के लिए चिंतन-मनन करना पड़ता है, जिसको डॉक्टर साहब गुरु जी ने नई दिशा और दशा प्रदान की है। गुरु जी ने साहित्यिक भाषा में नवगीत सृजित करके वरिष्ठ और नवोदित साहित्यकारों के लिए राह आसान कर दी है। अब तो नवगीत का प्रचलन देश के साहित्य समाज में इतना बढ़ गया है कि, इस पर शोधकार्य भी हो रहा है।
ऐसे गुरु के श्री चरणों मे बारम्बार सादर प्रणाम करता हूँ।

डॉ० अशोक कुमार
असिस्टेंट प्रोफेसर,
श्री महावीर सिंह स्नातकोत्तर महाविद्यालय रायबरेली।
मो० 9415951459