राजा रावराम बख़्श सिंह (डौडियाखेड़ा) : सत्तावनी क्रांति के अमर नायक

राजा रावराम बख़्श सिंह (डौडियाखेड़ा) : सत्तावनी क्रांति के अमर नायक

जला अस्थियां बारी-बारी, फैलाई जिसने चिंगारी’
जो चढ़ गए पुण्यवेदी पर, लिए बिन गर्दन की मोल।
कलम आज उनकी जय बोल..।

(रामधारी सिंह दिनकर)

भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में भारत के अनेक राजा, महाराजा, ताल्लुकेदारों ने खुलकर हिस्सा लिया और अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। इसी श्रंखला में अवध के राजाओं और ताल्लुकेदारों के नाम अत्यंत आदरणीय हैं। अवध क्षेत्र के अंतर्गत बैसवारा स्थित डौडिया खेड़ा जनपद उन्नाव के राजा राव रामबख्श सिंह का नाम सर्वोपरि है। अंग्रेजों के विरोध में लड़ते हुए इन्होंने अपनी वीरता से अंग्रेजों को भारी क्षति पहुंचाई थी। कुछ देशीय गद्दारों की निशानदेही पर रावराम बख़्श सिंह को बनारस में अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया और इन्हें अंग्रेज सिपाहियों, अंग्रेजों की महिलाओं तथा उनके बच्चों के कत्ल के अपराध में बक्सर स्थित बरगद के पेड़ पर सरेआम फांसी दे दी गई। राजा राव राम बख़्श सिंह हमारे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के उन महानायकों में से एक हैं, जिन्होंने फांसी का फंदा स्वयं अपने गले में पहना। इस नर नाहर की शौर्य गाथाएं स्वर्णाक्षरों में लिखने योग्य हैं जिससे आने वाली पीढ़ी अमर सपूत पर सदैव गर्व करेगी। इनकी वीरता की कहानियां युगों-युगों तक सुनी जाएंगी।

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राजा राव राम बख़्श सिंह बैसवारा के ऐसे रणबांकुरे हैं, जिन्होंने अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए खागा-फतेहपुर रियासत के राजा दरियाव सिंह और शंकरपुर-रायबरेली रियासत के राजा राणा बेनीमाधव सिंह से हाँथ मिलाया था। कहा जाता है कि राव राम बख्श सिंह का जो वर्तमान किला गंगा नदी किनारे स्थित है, उसको छठी शताब्दी में चंद्रगुप्त ने बनवाया था। बाद में इस किले पर बाहुबली “भरों’ का शासन हो गया था।

कुतुबुद्दीन ऐबक ने कन्नौज के राजा जयचंद पर हमला किया

सन 1194 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने कन्नौज के राजा जयचंद पर हमला किया था। उस हमले में जयचंद के सेनापति केशव राय मारे गए थे। केशव राय के दो बेटे अभय चंद और निर्भय चंद थे। सन 1215 ईस्वी में यह दोनों भाई डौडिया खेड़ा उन्नाव आ गए थे। इससे पहले डौडिया खेड़ा को संग्रामपुर के नाम से रिकॉर्ड में जाना जाता था। अभय चंद और निर्भय चंद ने वंशज के रूप में अपने वंश की वीरता का मान सदैव बनाए रखा था।

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अभय चंद के पोते सेढू राय ने भरों का किला जीता

यहां पर “भर” जाति के लोग राज्य कर रहे थे। अभय चंद के पोते सेढू राय ने भरों का किला जीता। अभयचन्द बैस ने सन 1230 ई० में अपना साम्राज्य “बैसवारा” नाम से बसाया था। इसका उल्लेख अंग्रेज कलेक्टर इलियट की पुस्तक CRONICALS OF UNNAO में मिलता है। अभय चंद के वंशज महाराजा त्रिलोकचंद प्रतापी राजा हुए, जिन्होंने ही बैसवारा का विस्तार किया। त्रिलोकचंद मैनपुरी के राजा सुमेरशाह चौहान और बहलोल लोदी से जुड़े हुए थे।

सेढूराय ने किले के अंदर भी दो अभेद किलों का निर्माण कराया था। त्रिलोक चंद के 24वें वंशज राजा राव राम बख्श सिंह थे, जिन्होंने मात्र 8 वर्ष तक शासन किया और वीरगति को प्राप्त हुए।

डौड़िया खेड़ा का पूर्व नाम द्रोणमुख है

राजा रावराम बख़्श सिंह ने किले के अंदर ऐतिहासिक शिव मंदिर बनवाया साथ ही एक कुएं का निर्माण कराया था। आज भी यह मंदिर माँ सुरसरि के उत्तरी तट पर सुशोभित हो रहा है। वास्तव में डौड़िया खेड़ा का पूर्व नाम द्रोणमुख है। चंद्रगुप्त के शासन काल में 500 गांव का क्षेत्र होता था। जिसे द्रोणमुख कहते थे और उस क्षेत्र को द्रोण क्षेत्र कहते थे। डौडिया खेड़ा इसी का बिगड़ा हुआ रूप है। शाब्दिक दृष्टि से डौडिया खेड़ा का अर्थ होता है- डौड़ी (डुग्गी) पीटने वालों का गांव।

राजा रावराम बक्श सिंह के अभेद किले की भौगोलिक स्थिति की बात करें तो किला जिला मुख्यालय उन्नाव से 38 किलोमीटर दूर बक्सर के समीप डौडिया खेड़ा स्थित है। यह किला 50 फीट ऊँचे टीले पर बना हुआ है। किले के दक्षिण-पश्चिम दिशा को स्पर्श करते हुए अविरल गंगा नदी बहती रहती है। इस किले का मुख्य द्वार पूर्व दिशा की तरफ था। किले का संपूर्ण क्षेत्रफल 192500 वर्गफीट तक फैला है। किले के ठीक सामने 500 मीटर दूर पूर्व दिशा की ओर रानी महल बना हुआ था, जिसका मुख्य द्वार आज भी अपने शौर्य गाथा लिए हुए खंडहर के रूप में खड़ा हुआ बदहाली के ऑंसू बहा रहा है।

सन 1857 में हर तरफ क्रांति की मशालें जल रही थी। अंग्रेजों के अत्याचार के कारण हर तरफ त्राहि-त्राहि मची हुई थी। पेशवा के राजा नाना साहब (घोघू पंत) गोरिल्ला युद्ध में माहिर थे। फिर भी परेशान रहते थे, क्योंकि उनका खजाना अंग्रेज लूटना चाहते थे। नाना साहब ने इस खबर की भनक लगते ही रातों-रात अपने खजाने को गंगा नदी के रास्ते डौडिया खेड़ा भेजवा दिया था। इससे राव राम बक्श सिंह की रियासत और अधिक समृद्ध तथा शक्तिशाली हो गई थी।

उन्नाव गजेटियर के अनुसार यह क्षेत्र हमेशा से सर्वाधिक लगान देने वाला रहा है 18 वीं शताब्दी में डौडिया खेड़ा अपने रियासत से 200 पाउंड लगा देता था, जो भारत के लिए एक मिसाल था। नाना साहब स्वयं राजा राव राम बक्श सिंह को अपना दाहिना हाथ और राजा दरियाव सिंह को बायाँ हाथ मानते थे।

सन 1857 की ग़दर के बाद राजा राव राम बक्श सिंह बनारस चले गए थे। इसी दौरान अवसर पाकर अंग्रेजों ने पहली बार जून 1857, दूसरी बार नवंबर 1857 में किला पर आक्रमण कर तहस-नहस कर दिया था, फिर भी अंग्रेज खजाना नहीं पा सके।

राजा रावराम बक्श सिंह की दो रानियां थी और दोनों के कोई पुत्र नहीं था। बड़ी रानी कालाकांकर प्रतापगढ़ रियासत की और छोटी रानी रायबरेली-प्रतापगढ़ के मध्य में स्थित नायन रियासत की रहने वाली थी। गदर की शुरुआत के बाद दोनों अपने-अपने मायके चली गई थी। वहीं दोनों रानियों की मृत्यु हो गई।

राव रामबख्श सिंह बनारस में सन्यासी हो गए थे। अंग्रेजों ने अवसर का लाभ उठाते हुए रियासत के दो टुकड़े कर दिया था। पहला हिस्सा मुरारमऊ के राजा दिग्विजय सिंह को और दूसरा हिस्सा मौरावां के खत्रियों को दे दिया था। इसी लालच में आकर इन दोनों राजाओं ने अंग्रेजों का साथ दिया और राजा राव साहब के साथ कुछ गद्दारी की थी।

सन 1857 की क्रांति के तहत 2 जून को डिलेश्वर मंदिर में 12 अंग्रेजों को राजा रावराम बख़्श सिंह ने जिंदा जला दिया था। इसमें अंग्रेज अधिकारी डीलाफौस भी जलकर मर गए थे। राजा राव राम बक्श सिंह गंगा की गोद में विराजमान शक्तिपीठ माँ चंद्रिका देवी के अनन्य भक्त थे। राव साहब चंद्रिका देवी के दर्शन के पश्चात गले में गेंदा की माला पहनते थे और उसके बाद ही सिंहासन पर बैठते थे। अंग्रेजों को जिंदा जलाने के जुर्म में राव साहब को फांसी की सजा सुनाई गई थी तत्पश्चात उन्हें पुराने बक्सर में गंगा तट पर स्थित वटवृक्ष पर 3 बार लटकाया गया, किंतु राजा राव साहब के प्राण नहीं निकले। राव साहब ने अपने गले में पड़ी माला को पवित्र गंगा की गोद में विसर्जित करके माँ गंगा से अपने को आगोश में लेने की प्रार्थना की, उसके बाद अंग्रेजों ने पुनः बरगद के पेड़ पर लटकाकर मृत्यु दंड दिया। राव साहब 28 दिसंबर 1859 को मृत्युदंड पाते हुए फांसी पर लटक कर शहीद हो गए थे। 28 दिसंबर 1859 बैसवारा का यह सूर्य हमेशा हमेशा के लिए अस्त हो गया।

जनश्रुतियों में यह भी प्रचलित है कि राव साहब शालिग्राम की सिद्ध गुटिका मुँह में रख लेते थे। इससे फांसी ठीक प्रकार से न लगने के कारण उनके प्राण बच जाते थे। ऐसा दो बार हुआ किंतु मुरारमऊ के राजा दिग्विजय सिंह को यह रहस्य मालूम था। उन्होंने अंग्रेजों को गुटिका के बारे में बताया तो, राव साहब ने गुटिका को गंगा नदी में सम्मान पूर्वक फेंक दिया। जिसे अंग्रेजों ने बहुत खोजा को गुटिका नहीं मिली। तत्पश्चात अंग्रेजों ने राव साहब को फांसी दी थी। क्षेत्रीय जनता में अंग्रेजों के प्रति आक्रोश था, इसलिए जनमानस ने वट वृक्ष में आस्था प्रकट करते हुए उस पेड़ की पूजा करनी शुरू कर दी थी। तब अंग्रेजों ने डरकर उस पेड़ को ही कटवा दिया था कि कहीं जनता में बदले की आग भड़क उठे। पेड़ की पहचान बनाए रखने के लिए दूसरा बरगद का पेड़ लगाया गया है। उसी गंगा तट पर सुंदर पार्क बनवाया गया, जिसका नाम अमर शहीद राजा राव राम बक्श सिंह पार्क रखा गया है पार्क में राव साहब की विशाल मूर्ति लगाई गई है। पार्क में गुलाब वाटिका बहुत सुंदर और मनोहारी है।

राव साहब को फांसी देने के बाद अंग्रेज कोई भी निशानी डौडिया खेड़ा में नहीं छोड़ना चाहते थे, इसलिए डौडिया खेड़ा का किला गिरवाना शुरू किया, किंतु किले की छोटी सी दीवार तक मजदूर न गिरा सके, तत्पश्चात अंग्रेजों ने तोप के गोलों से किले को धराशाई कर दिया था। आज सिर्फ किला के अवशेष मात्र ही दिखाई पड़ते हैं। किले के बगल में भव्य शिव मंदिर विराजमान है, जिसको राव साहब ने बनवाया था। आक्रोश में अंग्रेजों ने अपनी बंदूक की गोलियों से मंदिर की बाहरी दीवारों पर नक्काशीदार प्रत्येक मूर्ति को कुछ न कुछ पहुंचाई थी। मंदिर के बाहर बने विशाल नंदी बैल के कान और मुँह भी अंग्रेजों ने तोड़ दिया था। यह सब आज भी जीवंत देखा जा सकता है। बैसवारा के महानायक अमर शहीद राजा राव राम बक्श सिंह का नाम सम्मान पूर्व सदियों तक सभी लोगों द्वारा लिया जाता रहेगा। राव साहब की वीरता और उनके स्मृतियों को चिरस्थाई बनाए रखने के लिए प्रतिवर्ष 28 दिसंबर को डौडिया खेड़ा में विशाल मेला और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
तब जगदंबिका पाल मिश्र ‘हितैषी‘ द्वारा सन 1916 में लिखी गयी काव्य-पंक्तियां सार्थक हो जाती है –

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले।
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा।
कभी वह दिन भी आएगा जब अपना राज देखेंगे।
जब अपनी ही ज़मीं होगी और अपना आसमाँ होगा।।

सरयू-भगवती कुंज
अशोक कुमार गौतम
असिस्टेंट प्रोफेसर, साहित्यकार)
शिवा जी नगर (वार्ड नं 10) – रायबरेली (उ०प्र०)
मो० 9415951459