best hindi kavita- दया शंकर पाण्डेय

हिंदी रचनाकार के मंच पर best hindi kavita-डॉ. दया शंकर पाण्डेय की पांच कवितायें पढ़ेंगे जो आपको अपने पुराने दिनों की यादों मे प्रवेश कर देगा आपको पसंद आये तो अवश्य शेयर करे |
 

1.अनुभूति

प्रेम की अनुभूति हो तुम

किसलयों सी प्रणय की
संप्रीति हो तुम

विच्छुरित होती कहाँ हो
प्रेम-पथ से,

हृद-निलय में शोभती संगीत
हो तुम ।

अग्नि का अस्तित्व भी तुझमें अवस्थित,

तप्त उर में प्यार की इक
शीत हो तुम ।

अधर जो मधु-घट सदृश
बिंबित हुआ है,

किस अधर की रिक्तता की
धीति हो तुम ।

दग्ध हृद में प्रणय की
अनुभूति हो तुम ।


2.अमर प्रेम शबरी के जूठे बेरों में

श्रीराम नाम के जपते ही उजियारे हुये अंधेरों में,
देखा है हमने अमर प्रेम शबरी के जूठे बेरों में ।

करता है जो पालन-पोषण इस धरती का अदृश्य होकर,
जैसे है पालन करे पिता जगती में
राम सदृश बनकर,

पत्थर भी नारी हो जाये वह शक्ति है उसके पैरों में ।

अमीर-गरीब का भेद नहीं करता है
नील गगन से वह,
झाँकता बैठ कर ऊपर से अपने मधुरिम आँगन से वह,

भक्तों की है करता रक्षा वह जाकर उनके डेरों में ।

संसार के कण कण में वह है दिखता है
परम् भक्ति में वह,
जीवन के प्रतिपल सांसों में मानवता की उसशक्ति में वह,

वह बसा हुआ है सन्ध्या में जीवन के
सुखद सवेरों में,

देखा है हमने अमर प्रेम शबरी के जूठे
बेरों में ।


3. मैं नारी हूँ

नारी है कुसुमित पुष्प सदृश
स्वर्णिम-जीवन अरुणाचल में,

सब देव,पुरुष मधुरिम फल हैं उसके,
आच्छादित आँचल में।

हों रंजनकरी कथायें या पुष्पित वेदना की हो लतिका,

संसृति का हो जीवन-विराम या नभमण्डल की हो कृतिका,

तुम नारी हो एक प्रणय-पीठ जब नेह-निमन्त्रण देती हो,
हृदयस्थ भाव जग उठते हैं जब नयन के मधु-कण देती हो।

ऐसे ही तुम बन स्नेहमयी जीवन पथ पर चलते रहना,
जगती का बन कर शुभ विहान धरणी,
सुखकर करते रहना ।


4.अनुपम सवेरा

 

सीप के मोती सदृश सौन्दर्य तेरा,

लगता जैसे स्वर्ग का अनुपम सवेरा ।

 

स्वर्ण-मुख प्रणयाग्नि से जब धधकता है

देह पर हो चाँद का जैसे बसेरा ।

 

चाँदनी रूठी हुई सी लग रही है,

व्योम से ही देख करके रूप तेरा ।

 

व्यथित जीवन देख तुझको उठ खड़ा है,

सुखद आशा की किरन ने हृदय घेरा ।

 

उड़ता आँचल देख बादल उड़ रहा है,

अब कहाँ पड़ता अवनि पर पाँव तेरा ।

 

सुघर तन पर रूप की खिलती हैं कलियाँ

पारखी मधुकर ने आकर डाला डेरा ।

स्नेहिल सपने देखकर पथरायी आँखें,

सरस चितवन ने है जब सेमुँह को फेरा ।


5.अधूरा दर्द

एक नौकरीशुदा थे बलई
काका
सरकारी काम में इतने
मसरूफ़ थे
कि घर के काम
मुतासिर होने लगे
बच्चों की पढ़ाई
और लुगाई
काका की मशरूफियत
की भेंट चढ़ने लगी
माटी की भीति
की पुताई
ऐसा लगा कि
सदियों से नहीं
हुई है
धीरे-धीरे
घर खण्डहर
में तब्दील होने
लगा
लेकिन ग़रीबी
को खण्डहर में
ख़ूब नींद है
आती
वक़्त जब अमीरी खोजने
है निकलता
तब गऱीबी चौकन्नी
हो उठती है
खण्डहर बोलने
लगता है
मर्यादा की फेंट
ढीली होने लगती
है
अमीरी मुँह बिराती है
समाज इज़्ज़त तोपने
के बजाय
उघाड़ने है लगता
तब आती है
याद
परिवार की
हकीक़त है यह
की परिवार
संसार से होता है
बड़ा
लेकिन जब कौरव
की भाँति बड़ा होने
लगता है
तब पाँच लोग
सौ पर भारी
पड़ने लगते हैं
अंधा राजा जब
क़ानून से भी
बड़ा अंधा हो
जाय
तब समाज अंधेर नगरी
की भाषा बोलने
है लगता
ललनाएँ कुकृत्य
के विद्रूप रूप
से त्रस्त होने
लगती हैं
समाज
जिह्वा विहीन हो
उठता है
बड़े बड़े वीरों
की आँखों
के समक्ष
लुटने लगती
है
अस्मिता
पंचकन्याओं की
लेकिन
बलई काका
की आँखें
सरकारी काम
की मशरूफियत
में समाज को
भुला बैठती हैं
लेकिन
समाज धन्य है
फिर से कच्चा पक्का
करने लगता है
और उसे रामनामी से
बड़ी शराब की नीलामी
लगने लगती है

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दया शंकर पाण्डेय

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