Woman’s day 2022 kavita -इक नारी हूँ मैं
कल्पना अवस्थी की कलम से Woman’s day 2021 kavita इक नारी हूँ मैं हिंदी कविता हिंदुस्तान की महिलाओं को सम्पर्पित है आपको ये कविता अच्छी लगे तो शेयर करे सोशल मीडिया के द्वारा लेखिका की रचना देश की महिलाओं को एकजुट करती है।
इक नारी हूँ मैं।
(Woman’s day 2021 kavita)
ना कभी हारी थी,ना कभी हारी हूँ मैं,
हाँ इक नारी हूँ मैं।
बचपन के खिलौने हँसकर छोड़ आई हूँ,
माँ के आँचल का रास्ता, ससुराल की
समझदारी की तरफ मोड़ लाई हूँ।
सबको खुश रखने की कोशिश लगातार की है,
बिन गलती के भी गलती स्वीकार की है।
करते हो तारीफ़ की इक लाचारी हूँ मैं,
हाँ इक नारी हूँ मैं ।
न्योछावर कर दी अपनी खुशियाँ औरों पर,
आखिर खुद के लिए कब जीती हूँ
हाँ इक नारी हूँ मैं ।
महादेव की तरह कि
थोड़ा थोड़ा हलाहल रोज़ पीती हूँ,
पर इक पल में मापदंड बना के कहोगे कि बेचारी हूँ मैं
हाँ इक नारी हूँ मैं।
हर गम,हर कष्ट,हर कहर से लड़ सकती हूँ मैं,
जिस दिन आई अपने अस्तित्व पर ,बहुत कुछ कर सकती हूँ मैं ।
बलात्कार,दहेज प्रथा,संस्कार, चरित्रहीन इन सबसे जोड़ा गया ,
जब जरूरत थी सबके साथ की
वहीं लाकर अकेला छोड़ा गया मुझे ।
अब नहीं डरती इस खोखली दुनिया से,
जो रोता हुआ छोड़ देती है
लोगों की कड़वी बातें अंतरमन को झकझोर देती हैं
सुन लो,अब नहीं जरूरत है मुझे इन झूठे पायदानों की,
सच दिखाकर,झूठ बेचती इन दुकानों की ।
कयोंकि अभी तक हिम्मत हारी नहीं हूँ मैं,
हाँ इक नारी हूँ मैं।
मत सोचना कि हालातों से टूट जाऊँगी,
नाकामयाबी के काँच सी फूट जाऊँगी।
बन लक्ष्मीबाई दुश्मनों से लड़ जाऊँगी,
जो डिग ना पाए उस पत्थर सी अड़ जाऊँगी।
मेरे बिना अधूरे ही रहोगे सोच लेना,
झूठ फ़रेब से की गई अदाकारी नहीं हूँ मैं
हाँ इक नारी हूँ मैं।
हाथरस हो या अजमेर सियासत करना बंद करो,
घुटन भर गई जीवन में बस अब मुझको स्वच्छंद करो।
कल्पना कहती अहंकारी नहीं,सम्मान की अधिकारी हूँ मैं
हाँ इक नारी हूँ मैं।
कल्पना अवस्थी
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