अशोक कुमार गौतम की लघुकथा विघटन | Laghukatha Vighatan

अशोक कुमार गौतम की लघुकथा विघटन | Laghukatha Vighatan

यमुना नदी की गोद में बसा देवकली गाँव इटावा जनपद में स्थित है। रमणीय और प्राकृतिक वातावरण, हरे-भरे पेड़ पौधे, कहीं पठार तो कहीं छोटी-छोटी घाटियां हर इंसान को अपनी ओर अनायास ही मोहित कर लेते हैं। इस क्षेत्र में कई दशकों से समय-असमय गोलियों की गड़गड़ाहट भी सुनाई देती रहती थी। यहाँ की राजनीति की धमक आज भी दिल्ली तक सुनाई देती है। देवकली गाँव में गिरजा शंकर चौधरी अपनी पत्नी प्रिया और अन्य तीन भाइयों के साथ रहते थे, जो मध्यमवर्गीय परिवार में गिने जाते थे। कभी-कभी गाँव की राजनीति और जंगल से आने वाली धमकियों का भी शिकार हो जाया करते थे। किंतु किसी के सामने सिर नहीं झुकाया। किसी भी प्रकार का बाहरी विवाद होने पर चारों भाई एकजुट होकर मुकाबला करते थे। गिरजा शंकर चौधरी के अन्य भाई गाँव से पलायन करने की बात सोचते थे, परंतु परिवार की एकता और खून के रिश्ते ने कभी किसी भाई को एक-दूसरे से अलग नहीं होने दिया।

गिरजा शंकर के तीन पुत्र मयंक, अंकित, दिलीप और एक पुत्री जिसका नाम सोनिका था। सभी देखने में सुंदर और हाव-भाव से कुशाग्र बुद्धि वाले लगते थे। जैसे-जैसे बच्चे बड़े हुए, सब का दाखिला भी सरकारी स्कूलों में करा दिया जाता था। जीवन के 57 वसन्त देख चुके गिरजा शंकर और उसकी पत्नी प्रिया को कभी-कभी भरपेट भोजन भी नहीं मिलता था। वह गृहस्थी चलाने और संतानों की पढ़ाई के लिए मजदूरी करता था, तो कभी कानपुर में आढ़तियों का कार्य करता था। गिरजा शंकर शहरी आब-ओ-हवा से अच्छी तरफ वाकिफ़ हो चुका था। इसलिये उसे डर सताया करता था कि मेरा घना वृक्ष रूपी परिवार की कोई डाली टूट कर अलग न हो जाये।

गिरजा शंकर की पढ़ाई तो न के बराबर थी पर राजनीतिक और साहित्यिक मंचों पर भाषण तथा रेडियो पर प्रसारित वार्ताओं में विभिन्न महापुरुषों के विषय में सुना करता था, जिसमें एक सुना था कि डॉ0 भीमराव अंबेडकर कहते थे- “शिक्षा उस शेरनी का दूध है, जो पियेगा दहाड़ेगा।” यही मूल मंत्र गिरजा शंकर के मन-मस्तिष्क में बसा हुआ था। बेटी सोनिका भी पढ़ने में तेज थी। गिरजा शंकर चौधरी अपनी पुत्री सोनिका का दहेज रहित विवाह अपने से श्रेष्ठ परिवार में कर देता है। सोनिका के ससुराल वाले भी उसे बेहद प्यार और सम्मान करते थे। सोनिका अपनी ससुराल में बहुत खुश थी, साथ ही मायके के भी सुख-दुःख में साथ खड़ी रहती थी। ससुराल वालों ने भी उसकी पढ़ाई में बाधा नहीं उत्पन्न की, जिससे वह राजकीय इंटरमीडिएट कॉलेज में नौकरी पा जाती है। गिरजा शंकर अपने तीनों पुत्रों को कानपुर शहर में पढ़ने के लिए भेज देता है, वे सरकारी हॉस्टल में रहने लगते हैं। कोचिंग में पढाने के लिए गिरिजा शंकर के पास रुपए ना थे, इसलिए तीनों पुत्र कानपुर के फूलबाग स्थित राजकीय पार्षद पुस्तकालय में जाकर पढ़ाई करते थे। सभी बेटे बेहद संस्कारवान और पढ़ाई में अव्वल हो गए थे। कुछ समय बाद मँझला बेटा अंकित बुरी संगत में फंस गया, जिसके कारण उसका मन पढ़ाई से हटकर कुमार्ग पर चलने लगा था। अन्य दोनों भाइयों ने खूब समझाया पर वह नहीं माना। मयंक को केंद्रीय विद्यालय में प्रवक्ता की नौकरी मिल गई और पहली नियुक्ति अम्बाला में हुई। अब गिरजा शंकर के सिर पर कुछ भार कम पड़ गया। फिर भी वह अपनी मेहनत में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ता था। छोटा पुत्र दिलीप कद-काठी में लंबा चौड़ा और पढ़ने में अव्वल तो पहले से ही था, इसलिए उसे दारोगा की नौकरी मिल गई। इस परिवार को कभी पद-प्रतिष्ठा पर घमंड न था। मंझला बेटा वापस अपने गाँव देवकली आकर छोटी मोटी दलाली करने लगा था। बारी बारी से तीनों लड़कों का विवाह भी योग्य और सुशील कन्याओं से हो गया। गिरजा शंकर की तीनों बहुओं में आपसी लगाव, स्नेह और संस्कारों की चर्चा पूरे गाँव में होती थी। सोनिका, मयंक और दिलीप मिलकर तन-मन-धन से अपने भाई अंकित की हरसंभव मदद करते थे। अब तो गिरजा शंकर को आसमान में उड़ना चाहिए था, किंतु गिरजा शंकर और उसके तीनों पुत्रों ने जमीन से नाता नहीं छोड़ा.. अर्थात किसी में भी रंच मात्र का अहंकार न था। संयुक्त परिवार होने के कारण कोई विरोधी भी फटकने नहीं पाता था, न ही बाहरी व्यक्ति किसी प्रकार की हानि पहुँचा पाता था। अब तो गाँव वालों की आँखों में गिरजा शंकर और उसका परिवार खटकने लगा था।

ग्रामीणों ने षड्यंत्र के तहत अंकित को गाँव की राजनीति में उतरने के लिए खूब भड़काया और वोट तथा सत्ता सुख का लालच दिया। विभिन्न सुख-दुःख को सहन करते हुए जो परिवार सागर की तरह शांत रहता था आज उस परिवार में अंकित राहु बनकर खड़ा हो गया। दोनों भाइयों से चुनाव लड़ने के लिए धन एवं प्रचार हेतु समय माँगने लगा, जो कि संभव न था। मयंक, दिलीप और सोनिका ने समझाते हुए कहा कि चुनाव लड़ना मानो ओखल में सिर डालने जैसा है। इसलिए परिवार में शांत रहकर जीवन यापन करो। बहन-भाइयों की यह संस्कारी बातें अंकित के हृदय में भाला की नोक की तरह चुभ रही थीं। ग्रामीणों की मंशानुरूप अब अंकित के मन में परिवार के प्रति विद्रोह की भावना जागृत हो गई। उसने परिवार से विघटन करने तक की सोच लिया। गिरजा शंकर औऱ प्रिया ने आँखों में आँसू लिए अंकित को खूब समझाया कि परिवार के साथ मिलकर चलोगे तो किसी के सामने हाँथ नहीं फैलाना पड़ेगा।

ईर्ष्यालु अंकित के जीवन में गाँव वालों ने जो आग लगाई थी वह जाग्रत ज्वालामुखी की तरह भड़क रही थी। आखिर में अंकित वट वृक्ष रूपी परिवार से अलग हो गया और गाँव में हर तरफ अपने ही परिवार की बुराई करने लगा। धीरे-धीरे हंसते-खेलते परिवार में विघटन हो गया। आँगन में नफरत की दीवाल खड़ी हो गई और दो चूल्हे जलने लगे। गिरजा शंकर चौधरी इस असहनीय दुःख को बर्दास्त न कर पाने के कारण कुंठाग्रस्त जीवन व्यतीत करने लगा था।

अन्य पढ़े :