हिमाचल प्रदेश की बुलबुल हज़ार दास्तान- राजेंद्र नाथ रहबर

हिमाचल प्रदेश की बुलबुल हज़ार दास्तान- राजेंद्र नाथ रहबर

 

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आशा शैली

आशा शैली उर्दू शायरी को हिमाचल प्रदेश का एक गरांकद्र अतिया हैं

मोहतरमा आशा शैली साहिबा हिमाचल प्रदेश की कोहस्तानी बुलंदियों से अपनी ताज़ाकारी, खुश शगुफतगी, लहजे की तवानाई और शगुफ्ता बयानी के ज़रिये उम्दा उर्दू शायरी के नमूने पेश करके एक मुद्दत से दिलो-दिमाग फरहती और तस्कीन का सामान मुहैया फरमा रही हैं। इन का कलाम पढ़ कर नये रास्ते खुलते हुए महसूस होते हैं और कारी ये महसूस करता है कि वह खुली फिज़ाओं और ताजा हवाओं में साँस ले रहा है और ऐसा होना एक कुदरती अमर है। शायरी का तअलुक माहौल से है। आशा शैली हिमाचल परदेश के एक दूर अफतादह, पसमान्दा मगर खूबसूरत और कुदरती मनाज़र से मालामाल इलाके की रहने वाली हैं। बर्फ़ से ढकी हुई पहाड़ियों की फलक बर-दोष चोटियाँ, सुबक सिर नदियाँ, बरसात में भीगने हुए देवदारों के घने स्याह जंगल, दूर-दूर तक फैले हुए सिलसिला हाय कोह, पत्थरों से सर फोड़ते पुरशोर पहाड़ी नदी-नाले, नागिन की तरह बलखाती लहराती हुई शबनम आलूद पगडंडियाँ और इनसे लिपटते हुए सर सब्जी पेड़ों के साये, साँस लेती हुई जिन्दा-जावेद सबीही हाथों में हज़ार आइने लिए साफ़ शफ़ाफ़ मुतरनम झरने, रंग-बरंगे पंछियों के दिल आवेज़ कहकहे, अतरबेज़ हवायें, शामों के झुटपुटे और घरों को लौटते हुए पंछियों की लम्बी कतारें, फूलों से लदी हुई हसीन शादियाँ, मन को मोह लेने वाले कुदरती मनाज़र, सादा सरिश्त कोही मख़लूक और दूर किसी चरवाहे की बांसुरी से निकलती हुई दर्द भरी लय से गूँजती हुई घाटियाँ आशा शैली की शायरी के लिए मवाद फराहम करती हैं और इनके फिक्र की तितली के परों पर रंग बिछा देते हैं। जदीद मआशरे की तेजी से तब्दील होते हुए हालात मआशी व तहजीबी ग्लोबलाईजेशन चारहाना मादीयत और सैटलाइट मीडिया के बायस रोनुमा होने वाली तब्दीलियों ने अभी उनके दामने कोह में बसी हुई बस्ती पर यलगार नहीं दी है और उनकी शायरी पर बसों और कारखानों की चिमनियों के स्याह धुएँ की परतें नहीं जमी हैं। सच तो यह है कि आशा शैली उर्दू शायरी को हिमाचल प्रदेश का एक गरांकद्र अतिया हैं। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि वो सिर्फ हिमाचल प्रदेश ही की हैं। पंजाब की सोंधी मिट्टी के साथ भी इनका रिश्ता उस्तवार है। इन्होंने शायरी का आग़ाज़ किया है तो पंजाब के एक बुजुर्ग और क्लासिकी रंग के उस्ताद शायर जनाब रघुबीर सहाय साहिर सयालकोटी साहब मरहूम के आगे ज़ानुए तलम्मज़ता किया। जिनका यह शेर है

महफिल में जज़ीरे मिरे हुस्ने बयान के
हर शख्स पूछता है ये हज़रत कहाँ के हैं

क़िबला साहिर साहब जालन्धर के रहने वाले थे। जब तक बकैद-ए-हयात रहे, आशा शैली जी को बराबर अपने कीमती मश्विरे और इसलाह से फ़ैजयाब फरमाते रहे। जनाब जिगर जालंधरी और जनाब आर डी शर्मा तासीर साहब भी जनाब साहरि के दामने-फ़ैज असर से बाबस्ता थे। इस तरह वो मोहतरमा शैली के ख्वाजा ताश ठहरे। साहिर साहब की वफ़ात के बाद शैली पंजाब के रंगे-जदीद के नामवर शायर प्रोफेसर मेहर गेरा के दामने फ़ैज से वाबस्ता हो गयीं। मेहर गेरा साहब पंजाब की जदीद उर्दू शायरी के मैमारों में से एक हैं। इनका जिक्रे खैर आते ही उनका शेर याद आ जाना एक कुदरती अमर है,

तमाम उम्र रहा उसको अब्र का अहसास
न जाने कौन सी रुत में वो शख्स भीगा था।

आशा शैली का पंजाब की सरज़मीन के साथ तअलुक का जिक्र

आशा शैली का पंजाब की सरज़मीन के साथ तअलुक का जिक्र आ ही गया है तो ये भी अर्ज कर दूँ कि पंजाब के जिला मोगा के दो-तीन देहातों में इन की ज़मीनें थीं, जो अब ग़ालिबन इन्होंने फरोख्त कर दी हैं। पंजाब में मुनक्कद होने वाले मुशायरों में भी वो तशरीफ़ लाती रही हैं।
हाँ तो मैं ज़िक्र कर रहा था कि आशा शैली को एक तरफ़ जहाँ क्लासिकी रंग के एक उस्ताद कमाल से फ़ैजयाब होने का मौका मिला वहीं दूसरी तरफ उन्हें रंगे जदीद के एक ताबनाक चराग़ों से अपनी शायरी का चिराग़ रोशन करने का मौका मिला। इस तरह इन के कलाम में दोनों असातज़ा के रंग कलाम का हसीन अमतज़ाज मिलना एक कुदरती बात है। आशा शैली के कलाम की जदीदियत रवायत की तौसीअ ही से आलमे वजूद में आई है। मै इसे अनहराफ का नाम नहीं देता क्योंकि जदीद तरीन जदीदियत की जड़ें भी रवायत के मख़ज़ गोशों में मिल जायेंगी। वैसे भी मेरी दानिस्त में अनहराफ का तअलुक नाख़ल्फ़ी से और तौसीअ का तअलुक सआदतमंदी से है। शैली जी के कलाम में मौसम, पत्थर, शहर, धूप, जाड़ा, किरचें, रुत, जंगल, जज़ीरा वगैरह अल्फ़ाज़ का मिल जाना जदीदियत की तरफ़ उनके बढ़ते हुए कदमों की निशानदेही करता है।

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