मुक्ति का द्वार है | सम्पूर्णानंद मिश्र

मुक्ति का द्वार है | सम्पूर्णानंद मिश्र

स्त्री
हाड़, मांस,
और लोथड़े से निर्मित
सिर्फ़ एक देह नहीं है

जिसके लोथड़े को
नोंच लिया जाय
जब चाहे
और उसकी हड्डियों को
गली के
अन्यान्य कुत्तों के लिए
छोड़ दिया जाय

वह
एक आत्मा है
जो मुक्कमल शरीर में बसती है

जिस दिन
यह निकल जाय
पूरी गृहस्थी रोती है

ओढ़ती है जो
दु:खों की फटी चादर

लेकिन
अपने दु:खों के
आंसुओं के छींटों से
पुत्रों को नहीं भिगोती

उजड़ी
गृहस्थी की सिलाई
वह अपने
संतोष की सूई से करती है

लेकिन
अपनी पीड़ा की उल्टियां
करके
किसी की
दया के जल से अपना
और अपनी संतति का
मुंह नहीं धोती है

स्त्री देह नहीं है
हाड़- मांस का सिर्फ़
एक पुतला नहीं है

वह तो मुक्ति का
एक खुला द्वार है!

सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर वाराणसी
7458994874