खुद पर करो भरोसा तो ही सारी दुनिया जीतोगे

काव्य-
*खुद पर करो भरोसा तो ही सारी दुनिया जीतोगे*

खुदगर्ज़ी नातों और आस्तीनी साँपों से दूर रहो।
खुद का करो निर्माण,व्यर्थ के प्रलापों से दूर रहो।
‘डूबे हुए सूरज को’ यारों!
अँधियारा खा जाता है,
जगत्-रीति है जग ‘उगते सूरज’ को शीश झुकाता है।

सत्य की राह चलो, न छलो,
सबका ही सदा सम्मान करो।
दान बड़ा ही पुण्य किन्तु सुपात्रों को ही दान करो।
समुद्र में ‘वर्षा’ का कोई अर्थ नहीं रह जाता है।
जगत्-रीति है जग उगते सूरज को शीश झुकाता है।

‘पर-हित सरस धरम नहिं कोई’
यथाशक्ति उपकार करो।
झूठे,लोभी,पाखण्डी,
अन्यायी का पर ‘उपचार’ करो,
दुष्टों का पालन करना जग में अधर्म कहलाता है।
जगत्-रीति है जग उगते सूरज को शीश झुकाता है।

खुद पर करो भरोसा तो ही सारी दुनिया जीतोगे,
कितना भी हो मुश्किल लक्ष्य किन्तु तुम उसको पा लोगे।
कठिन क्षणों में अपना साया भी नहीं साथ निभाता है ।
जगत् रीति है जग उगते सूरज को शीश झुकाता है।

‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’
भाँति-भाँति के ज्ञान मिले।
जब जीवन हो कठिन डगर तब कोई नहीं संज्ञान मिले।
जिस पर करो भरोसा ज्यादा
वो ही पीठ दिखाता है।
जगत् रीति है जग उगते सूरज को शीश झुकाता है।

आरती जायसवाल प्रतिष्ठित साहित्यकार,रायबरेली