तेरा सुंन्दर रूप सुहाना | नरेन्द्र सिंह बघेल

तेरा सुंन्दर रूप सुहाना | नरेन्द्र सिंह बघेल

तेरा सुंन्दर रूप सुहाना ,

अच्छा लगता है ।

धीरे-धीरे यूँ मुसकाना ,

अच्छा लगता है ।।

मन की बातें तुम जब भी,

कह के ना कह पाते हो ।

धीरे-धीरे होंठ कंपाना ,

अच्छा लगता है ।।

धीरे-धीरे यूँ मुसकाना ,

अच्छा लगता है ।।1।।

खुलीं नज़र जब उठतीं गिरतीं ,

पलकों संग जुंबिश करतीं ।

चुपके-चुपके नज़र चुराना ,

अच्छा लगता है ।।

धीरे-धीरे यूँ मुसकाना ,

अच्छा लगता है ।।2।।

राह में चलते-चलते जब भी ,

सामने तुम आ जाते हो ।

पलट-पलट कर नज़र मिलाना ,

अच्छा लगता है ।।

धीरे-धीरे यूँ मुसकाना ,

अच्छा लगता है ।।3।।

ख़तों किताबों की चुप भाषा ,

दबे फूल ने कह दी सब ।

यारा तेरा ये नज़राना ,

अच्छा लगता है ।।

धीरे-धीरे यूँ मुसकाना ,

अच्छा लगता है ।।4।।

मिलने और बिछुड़ने की यह ,

रीत बनी है सदियों से ।

जीवन का यह ताना-बाना ,

अच्छा लगता है ।।

धीरे-धीरे यूँ मुसकाना ,

अच्छा लगता है ।।

तेरा सुंन्दर रूप सुहाना ,

अच्छा लगता है ।।5 ।।

(जुंबिश=हरकत,कंपन,उठना-गिरना)

नरेंद्र सिंह बघेल