एक समीक्षा | पुस्तक अठारह पग चिन्ह | पुष्पा श्रीवास्तव ‘शैली’ | रश्मि लहर

एक समीक्षा
पुस्तक अठारह पग चिन्ह
लेखिका** आदरणीया रश्मि लहर जी
पृष्ठ*95 मूल्य ₹150/
प्रकाशन * बोधि प्रकाशन
Isbn:9789355367945
सी *8,इक्षुपुरी कॉलोनी,लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
मो• 917565001657

‘अठारह पग चिन्ह’

“तुम्हे देखा नहींं लेकिन नज़र में बस गए हो तुम,
ये सच है हॅंसी की सुरमई सी लालिमा हो तुम।”

बड़ी रोचक बात है कि हमने एक-दूसरे को अभी तक देखा नहीं है ,लेकिन विश्वास की नदी का प्रवाह गति के साथ अविरल है।
पंक्तियाॅं उकेरते हुए मन आह्लादित हो उठा।

मेरी प्रिय सखी रश्मि ‘लहर’ जी का कहानी संग्रह ‘अठारह पग चिन्ह’ हाथ में आते ही अथाह प्रसन्नता हुई।

जीवन-लहरों से अंजुरी भर अनुभवों को बटोरते हुए, शब्दों के माध्यम से कागज पर उकेरते हुए, हृदय पर अंकित कर देने का अद्भुत प्रयास कहानीकार की लेखनी को शीर्ष पर विराजमान कर देता है।

‘अठारह पग चिन्ह’ नाम को सार्थकता प्रदान करते हुए हर पग पर जीवन का एक चित्र मिलता है। इस यात्रा में कहानीकार और पाठक के बीच का अन्तर समाप्त होता महसूस किया हमने।

आदरणीय माया मृग जी का ये वक्तव्य कि
“ये आपकी कहानियाॅं हैं, सिर्फ कहानीकार की नही” अक्षरशः सत्य सिद्ध होता है।

यात्रा प्रारंभ करते ही ‘लव यू नानी’
पत्र के माध्यम से बड़ा ही मजबूत संदेश देती हुई कहानी मन को भाव विभोर कर जाती है।

‘करवा चौथ’ जैसी कहानी मानवता के दायित्व का निर्वहन दर्शाती है।आगे बढ़ते हुए पुनः जीवन के बीच से उभर कर मन को आह्लादित कर देती है।

कहानी ‘प्रेम के रिश्ते’ में पर शोएब चचा कोरोना जैसी महामारी को भी अपने दायित्व के बीच नहीं आने देते। मानवता की मशाल जलाते हुए यह कहानी समाज को एक सीख दे जाती है।

‘बावरी’ को पढ़ते हुए ऑंख भर आती है, स्वतः एक चित्र मस्तिष्क पर खिंच जाता है।हृदय चीख उठता है।

अनुत्तरित प्रेम के दीप के रूप में ‘अनमोल’
कहानी निरंतर मद्धम लौ की तरह प्रकाशित होते रहने का पर्याय है।

ममता का सिंधु समेटे समाधान के साथ खड़ी हो जाती हैं ‘अम्मा’।

‘अचानक’ कहानी को पढ़ते वक्त मन तीन स्थान पर ठहरता है।

पहला कि नकारात्मकता गुंडो के रूप में समाज में अवसर मिलते ही हावी हो जाती है।
दूसरा दादी के रूप में दूसरे की पीड़ा को न समझने वाले लोग। और तीसरा संकल्प और संकल्प की माॅं ,जो रूढ़ियों को तोड़ते हुए सुलभा की पीड़ा में दुखी हैं, और सुलभा से विवाह करने के लिए अड़े हुए हैं। यह कहानी समाज के बीच पथ प्रदर्शिका का कार्य करती है। कहानीकार और लेखनी दोनो को
साधुवाद।

‘असली उत्सव’, ‘अद्भुत डॉक्टर’, ‘तेरी बिंदिया रे’ सभी कहानियाॅं पाठक को बाॅंधें रखने में समर्थ हैं।

धीरे-धीरे कदम रखते हुए ‘लव यू गौरव’ और ‘गुलगुले’ पर ठहरना पड़ जाता है।

मां की ममता और संवेदना की लहर थामे नहीं थमती है। कहानी समाप्त होते-होते नेत्रों का बाॅंध टूट जाता है, और ऑंसू रूपी गुलगुले बिखर जाते हैं।

प्रणाम करती हूॅं कहानीकार की अंजुरी को जिसमें भावनाओं के पुष्प एक गुच्छ के रूप में एक साथ समाहित हैं।

‘अतीत के दस्तावेज’ में आज के स्वार्थी संतानों की लालची और विकृत मानसिकता को उधेड़ने का सार्थक प्रयास करते हुए नज़र आती है लेखनी।

‘शिरीष’, ‘संयोग’ और ‘कैसे-कैसे दु:ख’ के माध्यम से जीवन के बड़े नाज़ुक पहलुओं को छूने का प्रयास किया है कहानीकार ने।

एक के बाद एक सभी कहानियाॅं भावनात्मकता का सजीव निर्वाह करती हैं।प्रवाहमयता के साथ-साथ पाठक को अपने में डुबा लेने का अद्भुत सामर्थ्य है इन कहानियों में।

ये समाज के बीच ज्वलंत प्रश्नों को उठाती हैं, और समाधान भी प्रस्तुत करती हैं तथा अंत में उद्देश्य परक संदेश प्रेषित करते हुए सार्थकता को पोषित करती हैं।

मैं ‘अठारह पग चिन्ह’ कहानी संग्रह की सफलता की कामना करती हुई प्रिय मित्र रश्मि ‘लहर’ जी की लेखनी और भावों की सरिता का आचमन करते हुए प्रणाम करती हूॅं।

पुष्पा श्रीवास्तव ‘शैली’
रायबरेली

अपमान और लाचारी के आँसू | लघुकथा | रश्मि लहर

अपमान और लाचारी के आँसू | लघुकथा | रश्मि लहर

“संपादक महोदय?”
लखनऊ कार्यालय के एक बड़े से कमरे में पहुँचते ही नीरजा ने किताब पढ़ते हुए व्यक्ति से पूछा।
“जी कहिए …!”उसने चश्मे के भीतर से टटोलती निगाहों से नीरजा को देखते हुए कहा।
“सर, मुझे अपनी कहानी छ्पवानी है, आपके प्रतिष्ठित अखबार में …” नीरजा ने आत्मविश्वास भरे भावों से संपादक से कहा।
संपादक थोड़ा सीधा हुआ …
“कहाँ की पृष्ठभूमि है ?”
“जी मैं! महोना गाँव की हूँ, किसान परिवार की ग्रेजुएट। मेरी कहानी ….”कहते हुए नीरजा ने कुछ पेपर आगे बढ़ाए |
“यहाँ..लखनऊ में किसी को जानती हैं?” संपादक ने पेपर लेने में कोई दिलचस्पी न दिखाते हुए कहा।
“जी नहीं …..मैं गाँव से आ रही हूँ..आपके अख़बार का साप्ताहिक परिशिष्ट बहुत अच्छा लगता है, उसी में अपनी ये कहानी छपवाना चाहती हूॅं। ये मेरी कहानी आधुनिक परिप्रेक्ष्य की है …आपको बहुत पसंद आएगी सर!” कहते हुए उसने कागज फिर आगे बढ़ाये।
“क्या मैडम ! ऐसे थोड़े छ्पता है ….न …न!
अरे किसी ने संस्तुति दी है आपकी ? कोई लेखक है आपके गाँव में ? किसी को जानती हैं आप ?”
“अरे सर , भले मैं इस शहर में किसी को नहीं जानती पर कृपया आप मेरी कहानी पढ़ तो लीजिए …आपको अविस्मरणीय लगेगी। एकदम सटीक, यर्थाथवादी कहानी है सर” कहते हुए नीरजा लगभग रोने सी लगी।
सहसा संपादक ने घंटी बजाई…
“इनको बाहर भेजो” चपरासी से कहते हुए उसने नीरजा की ओर इशारा किया
“और हाँ ……यूॅं ही हर किसी को मेरे कमरे में न भेज दिया करो …” कहते-कहते संपादक ने अपनी कुर्सी पीछे की और अपनी अलमारी की तरफ झुक गया।
अपनी आँख में अपमान और लाचारी के आँसू भरे नीरजा! थके-थके कदमों से घर के लिए लौट पड़ी।

Karwa Chauth 2021 | करवा चौथ और आरती

‘करवा चौथ और आरती’

कार्तिक माह का आगमन हो चुका था..आरती मन ही मन बहुत परेशान थी, दो दिन बाद ही करवा चौथ का व्रत होगा..पहली बार अकेले सबकुछ करने की सोच से ही वो उदास थी.. चौबीस वर्ष वो संयुक्त परिवार के स्नेहिल माहौल में रही थी, पर इस वर्ष कुछ ऐसा घटित हुआ कि पतिदेव ने घर छोड़ देने का फैसला किया..वो धक से रह गई.. असंभव लगा उसको आगे जी पाना.. सबसे इतना प्रेम था उसको कि मायका भी भूल गई थी वो..उसको नये घर में शिफ्ट हुए दस माह हो चुके थे, पर पुराने झगड़े जस के तस दिमाग पर कब्जा किये थे.. उसने दिमाग को झटका और तैयारी करने लगी..याद कर-कर के सामान जुटाने लगी.. फिर अचानक फूट-फूट कर रो पड़ी.. “हे भगवान! ये क्या हो गया.. मैं कैसे जी पाऊंगी बिना अम्मा लोगों के..” ये सोच कर वो फिर तनावग्रस्त हो गई..तब तक प्रवेश आ गया..”अरे! तुम फिर रोने लगी? कहकर उसको गले लगा लिया” उसकी ऑंख भी भरी थी, पर छलकने नहीं दिया उसने..”चलो, बाजार हो आते हैं” कहकर वो गाड़ी निकालने लगा..मन से वो भी बहुत अशांत था, पर आरती के सम्मान के लिए उसको ये बड़ा निर्णय लेना पड़ा..उन दोनों के कोई बच्चा नहीं था..पर उनको छोटे भाई के बच्चे अपने ही लगते थे.. उसके दिमाग में उस दिन की वो कड़वी बात फिर उलझ गई.. किचकिच होना तो आम बात थी, पर छोटे भाई का ये कहना कि “मेरे बच्चों को अपना समझना छोड़ क्यों नहीं देते ये लोग..जब इनके अपने बच्चे नहीं हैं तो नहीं हैं, फिर काहे हर समय बड़ी मम्मी बनी फिरती है ये बाॅंझ”..
भाई ने अपनी पत्नी से कहा था..जीने उतरते समय प्रवेश ने जैसे ही ये शब्द सुने धक से रह गया वो! उसको यकीन नहीं हुआ..जो उसके कानों ने सुना..आरती का निश्छल प्रेम.. समर्पण सब व्यर्थ? छि: ..इतनी गिरी हुई सोच थी छोटे की, सहसा उसको घिन आई अपने रिश्ते पर, और तो और माॅं-बाबूजी भी चुप थे.. उसने तुरंत निर्णय ले लिया और .. ..तब तक आरती ने उसका हाथ दबाया.. “क्या सोचने लग गए आप, चलिए ना..”
“ओह! चलो -चलो” कहकर उसने गाड़ी निकाली..
आज करवा चौथ था..
सजी-धजी आरती उसको बहुत प्यारी लग रही थी.. प्रवेश ने प्यार से उससे पूछा “क्या क्या बनेगा आज , सब मैं बनाऊंगा ..तुम बस बता देना”
तभी कालबेल बजी..”मैं देखता हूॅं..”कहकर प्रवेश दरवाजा खोलने बढ़ा..
प्रवेश की “सुनो” की आवाज सुनकर आरती बाहर आई.. “अरे अम्मा..”खुशी से आरती की आवाज थरथरा गई.. सामने अम्मा-पापा खड़े थे! आरती दौड़ कर अम्मा के गले लग गई और फूट-फूट कर रो पड़ी..
“रोते नहीं है आरती, इतने सालों से तुमने बिन कुछ कहे अपनी सारी जि़म्मेदारी निभाई है, तुम्हारे वहाॅं से आने के बाद हम दोनों ने बहुत विचार किया और फिर तुमको अपने घर वापस ले चलने के लिए आ गये..”
“नहीं अम्मा, अब वहाॅं नहीं जाएंगे हम, आप छोटे के साथ ही रहिए वहां.. “प्रवेश ने बहुत खिन्नता से कहा..
“बेटा.. छोटे को दस दिन पहले ही हम लोगों ने घर से निकाल दिया है, तुम लोगों के जाने के बाद से वो बहुत बदल गया था, शराब पीकर ऊटपटांग बोलता था, एक दिन आरती के लिए कुछ ऐसा कहा कि तुम्हारे पापा अपना आपा खो बैठे और उसको घर से निकल जाने को कह दिया..”बताते बताते अम्मा हाॅंफ सी गईं और उन्होंने आरती का हाथ कस के पकड़ लिया..”आप अंदर चलिए अम्मा..सारी बातें दरवाजे पर ही कर लेंगी क्या?” कहते हुए आरती ने दोनों के पैर छुए और दोनों को अंदर लेकर चल दी..
दस महीने बाद अपने घर में पूजा करने बैठी आरती ने अम्मा के साथ चंद्रमा का दर्शन किया और प्रवेश को साज-श्रंगार किये हुए अम्मा के साथ, हॅंसते खिलखिलाते देखकर सहसा भावुक हो गई.. “कितने दिन बाद प्रवेश इतना खुश दिख रहा है”, सोचते हुए आरती.. अपनी अम्मा के साथ करवा चौथ की पूजा संपन्न करने बैठ गई।

भारतीयता की पोषक हिन्दी और इसका वैश्विक स्वरूप/ रश्मि लहर

भारतीयता की पोषक हिन्दी और इसका वैश्विक स्वरूप/ रश्मि लहर

प्राचीन काल में भारत में प्रमुख रूप से आर्य परिवार एवं द्रविण परिवार की भाषाएं बोली जाती थीं । उत्तर भारत की भाषाएं आर्य परिवार की तथा दक्षिण भारत की भाषाएं द्रविण परिवार की थीं । उत्तर भारत की आर्य भाषाओं में संस्कृत सबसे प्राचीन है जिसका प्राचीनतम रूप ऋग्वेद में मिलता है, इसी की उत्तराधिकारिणी हिन्दी है ।

आज हम जिस भाषा को हिन्दी के रूप में जानते हैं वह आधुनिक आर्य भाषाओं में से एक है । हिन्दी वस्तुतः फारसी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है हिन्दी या हिंद से सम्बंधित । हिन्दी शब्द की निष्पत्ति सिन्धु-सिंध से हुई है क्योंकि ईरानी भाषा में ‘स’ को ‘ह’ बोला जाता है। इस प्रकार हिन्दी शब्द वास्तव में सिन्धु शब्द का प्रतिरूप है । कालातंर में हिंद शब्द सम्पूर्ण भारत का पर्याय बनकर उभरा है । इसी ‘हिंद’ शब्द से हिन्दी बना ।

आधुनिक आर्य भाषाओं में, जिनमें हिन्दी भी है, का जन्म 1000 ई. के आस पास ही हुआ था किन्तु उसमें साहित्य रचना का कार्य 1150 ई. या इसके बाद आरंभ हुआ । हिन्दी भाषा का विकास अपभ्रंश के शौरसेनी, मागधी और अर्ध मागधी रूपों से हुआ है।

वैश्वीकरण, ग्लोबलाइजेशन या भूमण्डलीयकरण का अर्थ है विश्व में चारो ओर अर्थव्यवस्थाओं का बढ़ता हुआ एकीकरण। निःसंदेह यह एक आर्थिक अवधारणा है जो आज एक सांस्कृतिक एवं बहु-अर्थों में भाषाई संस्कार से भी जुड़ चुकी है । वैश्वीकरण आधुनिक विश्व का वह स्तंम्भ है जिस पर खड़े होकर दुनिया के हर समाज को देखा, समझा और महसूस किया जा सकता है। वैश्वीकरण आधुनिकता का वह मापदण्ड है जो किसी भी व्यक्ति, समाज, राष्ट्र को उसकी भौगोलिक सीमाओं से परे हटाकर एक समान धरातल उपलब्ध कराता है, जहाँ वह अपनी पहचान के साथ अपने स्थान को मजबूत करता है । इसके प्रवाह में आज कोई भी भाषा और साहित्य अछूता नहीं रह गया है, वह भी अपनी सरहदों को पारकर दुनिया भर के पाठकों तक अपनी पहचान बना चुका है, जिसमें दुनिया भर के प्रबुद्ध पाठक भी एक दूसरे से जुड़ चुके हैं और साहित्य का वैश्विक परिप्रेक्ष्य में मूल्यांकन संभव हो पा रहा है ।

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असंख्य अहिन्दी भाषी क्षेत्रों के विद्वानों ने न केवल हिन्दी को अपनाया वरन उन्होने हिन्दी को राजभाषा और राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित भी कराना चाहा और सभी जगह घूम-घूमकर हिन्दी का बिगुल बजाया साथ ही विदेशों में भी जाकर हिन्दी की पुरजोर वकालत की और अंतराष्ट्रीय परिदृश्य में हिंदी का परचम लहराया । इस सम्बंध में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का योगदान महत्वपूर्ण है । गुजराती भाषी महात्मा गाँधी ने कहा था “हिन्दी ही देश को एक सूत्र में बाँध सकती है । मुझे अंग्रेजी बोलने में शर्म आती है और मेरी दिली इच्छा है कि देश का हर नागरिक हिन्दी सीख ले व देश की हर भाषा देवनागरी में लिखी जाए” गाँधी का मानना था कि हर भारतवासी को हिन्दी सीखना चाहिए। इसी तरह मराठी भाषी लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने एक अवसर पर कहा था “हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी ।” स्वामी दयानन्द सरस्वती, स्वामी विवेकानंद, सुभाषचंद्र बोस, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, केशवचंद्र सेन आदि अनेक अहिन्दी भाषी विद्वानों ने हिन्दी भाषा का प्रबल समर्थन किया और हिन्दी को भारतवर्ष का भविष्य माना । स्वामी विवेकानन्द ने तो सन 1893 ई. में शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में ‘पार्लियामेंट आफ रिलीजन’ में अपने भाषण की शुरूआत भाइयों और बहनों से करके सब को मंत्रमुग्ध कर दिया था । स्वामी दयानन्द सरस्वती ने ‘सत्यार्थ प्रकाश’ जैसा क्रांतिकारी ग्रंथ हिन्दी में रचकर हिन्दी को एक प्रतिष्ठा प्रदान की । कवि राजनेता और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने जनता सरकार के तत्कालीन विदेशमंत्री के रूप में संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी में पहला भाषण देकर इसके अंतराष्ट्रीय स्वरूप और महत्व में अत्यंत वृद्धि की।

14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने हिन्दी को भारतीय संघ की राजभाषा घोषित किया । तब से लेकर अब तक हिन्दी के स्वरूप में उत्तरोत्तर विकास औए परिवर्तन हुआ है । आज हिन्दी भी वैश्वीकरण की बयार से अछूती नहीं है । आज हम यह कह सकते हैं कि हिन्दी भाषा एक बार फिर नई चाल में ढल रही है ।

मैं कहना चाहूँगी कि आज हिन्दी भारत के साथ-साथ विश्व भाषा बनने को तैयार है । आज हिन्दी बाजार और व्यापार की प्रमुख भाषा बनकर उभरी है । हिन्दी आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी मजबूत जगह बना चुकी है । अमेरिकी राष्ट्रपति ने स्पष्टतया घोषणा की कि “हिन्दी ऐसी विदेशी भाषा है जिसे 21वीं सदी में राष्ट्रीय सुरक्षा और समृद्धि के लिए अमेरिका के नागरिकों को सीखना चाहिए” । अमेरिका में भी आज हिन्दी भाषा का प्रयोग बढ़ा है । इस प्रकार हम कह सकते हैं आज हिन्दी अंतराष्ट्रीय स्तर पर किसी पहचान की मोहताज नहीं है वरन उसने विश्व परिदृश्य में एक नया मुकाम हासिल किया है ।

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आज अप्रवासी भारतीय पूरे विश्व में फैले हैं । एक आँकड़े के अनुसार इनकी संख्या पूरे विश्व में लगभग 2 करोड़ हैं । जिनके मध्य हिन्दी का पर्याप्त प्रचार प्रसार है । विश्व में हिन्दी शिक्षण को बढ़ावा देने के लिए निजी संस्थाएं, धार्मिक संस्थाए और सामाजिक संस्थाएं तो आगे आ ही रही है, सरकारी स्तर पर विद्यालय एवं विश्वविद्यालय द्वारा भी हिन्दी शिक्षण का बखूबी संचालन किया जा रहा है । उच्च अध्ययन संस्थानों में भी अध्ययन – अध्यापन एवं अनुसंधान की अच्छी व्यवस्था है । इस सम्बंध में अमेरिकी विद्वान डा. शोमर का कहना है कि “अमेरिका में ही 113 विश्वविद्यालयों और कालेजों में हिन्दी अध्ययन की सुविधाएं उपलब्ध हैं । जिनमें से 13 तो शोध स्तर के केंद्र बने हुए हैं ।“ आँकड़े बताते हैं कि इस समय विश्व के 143 विश्वविद्यालयों में हिन्दी शिक्षा की विविध स्तरों पर व्यवस्था है ।

भारत के बाहर जिन देशों में हिन्दी को बोलने, लिखने-पढ़ने तथा अध्ययन और अध्यापन की दृष्टि से प्रयोग होता है उनको अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से निम्न वर्गों में बाँटा जा सकता है –

  1. जहाँ भारतीय मूल के लोग अधिक संख्या में रहते हैं, जैसे पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, म्यामांर, श्रीलंका व मालदीव आदि ।
  2. भारतीय संस्कृति से प्रभावित दक्षिण पूर्वी एशियाई देश जैसे इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड, चीन, मंगोलिया, कोरिया तथा कनाडा ।
  3. जहाँ हिन्दी को विश्व की आधुनिक भाषा के रूप में पढ़ाया जाता है, जैसे अमेरिका, आस्ट्रेलिया, कनाडा और यूरोप के देश ।
  4. अरब तथा अन्य इस्लामी देश जैसे संयुक्त अरब अमीरात (दुबई), अफगानिस्तान, कतर, मिश्र, उजबेकिस्तान, कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान आदि ।

अंत में मैं यह कह्ना चाह्ती हूँ कि भारतीयता की पोषक हिन्दी और इसका वैश्विक स्वरूप आज अपने श्रेष्ठ रूप में परिलक्षित हो रहा है । हिंदी संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बनने के लिए प्रयत्नशील है । 21वीं सदी के पहले दशक में हिन्दी भाषा में जो परिवर्तन हुए हैं वे साधारण नहीं है । आज हिन्दी का स्वरूप ग्लोबल हो चला है । भाषा और व्याकरण में नए प्रयोग किये जा रहे हैं । साथ ही आज हिन्दी का महत्व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी बढ़ रहा है ।