सविता चड्डा की रचना धर्मिता एक अमूल्य निधि है – डा पुष्पा सिह बिसेन
साहित्य जगत में अपनी लेखनी के माध्यम से अपना स्थान एवं अपनी पहचान को जिस प्रकार से बनाने में सविता जी सफल हुई है वह बहुत ही कठिन है। बहुत ही कम आयु में नौकरी प्राप्त करना और वैवाहिक बंधन को आत्मसात करते हुए ,एक सफर की शुरुआत, जिसमें जीवन साथी के साथ साथ अनेक रिश्ते भी होते हैं। अपना परिवार एवं दफ्तर, सभी तरह से सामंजस्य और सत्य के साथ ,साहस से समाज के सरोकारों की बातें, स्त्री की स्थिति के संदर्भ में अनेक समस्याओं को उद्धृत करते हुए, अपनी बात को सरल शब्दों में रखने का हुनर सभी में नहीं दृष्टिगत होता । इनकी अनेक पुस्तकों के अवलोकन से यह बात साबित हुई है कि लेखिका एक मंजी हुई साहित्यकार तो है ही साथ ही विदुषी स्त्री भी हैं। अपने अनेक प्रिय कार्यों में लेखन इन्हें अति प्रिय है।
अपने अनेक करीब 10-12 वर्षों के मुलाकात में हम लगभग 10-12 बार ही सविता जी से मिल पाए हैं लेकिन सविता जी के व्यक्तित्व की बात करें तो इनकी व्यवहार कुशलता, स्नेह और आत्मीयता का कोई जवाब नहीं। ” मैं और मेरे साक्षात्कार” पुस्तक को पढ़ने से इनकी अनेक प्रकार की खूबियों को जानने का मौका मिला। अनेक प्रश्न जटिल भी है लेकिन इतनी सहजता से उनके उत्तर को विस्तार पूर्वक देना, ज्ञान के भंडार की वह विशेषता है जो कम लोगों में पाई जाती है ।
मैं प्रोफेसर नाम नामवर सिंह और आचार्य निशांत केतु जी के सानिध्य में 25 वर्षों से रही । महिला रचनाकारों में सविता चड्ढा जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से बहुत ही ज्यादा प्रभावित रही । मैंने महिला साहित्यकारों में कृष्णा सोबती, प्रभा खेतान एवं बुशरा रहमान को समग्र पढ़ी हूं। अनेक समस्याओं के संग ,जो भी इन सभी की लेखन धर्मिता है, उससे अलग हटकर, अनेक विधाओं में जो पठनीय सामग्री सविता जी ने साहित्य जगत को दी है, वह अद्भुत दिव्यतम है। साहित्य भी एक ऐसा सरोवर है कि जिस में डुबकी लगाकर हम सार्थक साहित्य लेखन को आत्मसात करते हुए उसके मर्म को समझ सकते हैं।
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अनेक सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं ने इन्हें इनके लेखन के लिए सम्मानित किया है। सविता जी को अगर मैं साहित्य रतन कहूं तो यह गलत नहीं होगा । सविता जी मैं जन्मजात अनेक विलक्षण प्रतिभाओं के बीज अंश मौजूद रहे होंगे जिन्हें समय-समय पर वात्सल्य की उर्जा ने अंकुरित कर पल्लवित पोषित किया होगा । यहां अगर मैं उनके पति भाई श्री सुभाष चंद्र जी की बात ना करूं तो यह अन्याय होगा क्योंकि एक साहित्य वटवृक्ष को उनके प्रेम और सानिध्य ने विशाल बरगद का स्वरूप दिया है
हां, सविता दीदी अपने साहित्य सृजन के साथ-साथ अपने मधुर व्यवहार एवं मितव्ययता के लिए भी प्रसिद्ध है । उनमें जो सहजता एवं सरलता का संसार है वह बहुत ही दुर्लभ है । द्वेष, ईर्ष्या का लेश मात्र भी समावेश नहीं है । सभी से अथाह प्रेम करती हैं और अपने व्यक्तित्व की जो छाप लोगों के दिलों में छोड़ती हैं वे सभी जानते हैं ।
वह सदैव अपने लेखन से हमारे साहित्य जगत को शिक्षाप्रद साहित्य देती रहती है । कलम की धनी सविता जी सदैव इसी प्रकार अपने आप को गतिमान रखते हुए प्रगति पथ पर अग्रसर रहेगी। साक्षात्कार की इस पुस्तक में अनेक विद्वानों के द्वारा लिए उनके लिए गए साक्षात्कार के जो प्रश्न है वह बहुत ही स्पीक और सार्थक हैं । साहित्य की मर्यादा का ध्यान रखते हुए, सवालों और जवाबों के दायरे में बहुत ही सच्चाई और आत्मीयता का बोध होता है । प्रश्नों की श्रृंखला के बीच यदि स्वयं का स्वयं से तादात्म्य बैठाना और सहजता के साथ उत्तर देना रचनाकार के व्यक्तित्व को अद्भुत बनाता है । आप सभी जानते हैं इन्हें और उनकी साहित्यिक विशिष्टता एवं श्रेष्ठता को पहचानते हैं । तभी तो इस पुस्तक में एक भी विवादित प्रश्न नहीं है। लेखिका अपनी दोनों आंखों मैं परिवार एवं साहित्य को रचाती बसाती है तभी तो आज सफलता के उस मुकाम पर आप प्रतिष्ठित होती हैं जहां ना तो साहित्य को आपसे कोई शिकायत है और ना ही परिवार को कोई रंज । बहुत ही खुशहाल परिवार की बेटी और बहू है सविता जी।
मैं यह दावे के साथ कह सकती हूं कि आज के 21वीं सदी में सविता चड्डा जी के जैसा सामाजिक सरोकार एवं वर्तमान समस्याओं को उद्धृत करते हुए कोई भी नहीं लिख रहा है । साहित्यिक गुट बदियों से दूर स्वयं को रखते हुए इन्होंने अपनी रचना धर्मिता को जो मुकाम दिया है वह एक मील का पत्थर है। अपनी कहानियों,कविताओं से ये समाज से जुड़ती हैं और उन्हें समस्याओं से उभारती भी हैं।
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एक बार आचार्य निशांत केतु जी के यहां साहित्यिक बातचीत के दौरान जब यह बात कही गई थी आज के समय में लुम बहुत ही सार्थक लेखन कर रही हो, तब मैंने कहा कि आचार्य जी ऐसा नहीं है सविता जी का लेखन श्रेष्ठ है। बोले कि नाम तो बहुत सुना हूं लेकिन कोई पुस्तक पढ़ा नहीं हूं, यह मेरा दुर्भाग्य रहा । जबकि नामवर बाबूजी जानते थे सविता जी को और कहते भी थे व्यवसायिकता के दौर में कुछ महिलाएं ही अच्छा लेखन कर रही हैं। मैं स्वयं को सौभाग्यशाली समझती हूं कि मुझे एक ऐसी श्रेष्ठ रचनाकारा का प्यार – दुलार प्राप्त होता रहता है ।
आज के दौर में अगर सविता जी जैसे लोग आपके साहित्य सृजन में है तो समझिए आपको अच्छा और बेहतर साहित्य पढ़ने का मौका मिलेगा। शिक्षाप्रद साहित्य हमारे समाज एवं राष्ट्र के उत्थान में अपना योगदान देते हुए उसके रचनाकार को सदियों सदियों तक जीवंत रखता है।
सविता जी का संपूर्ण साहित्य हमारे साहित्य जगत के लिए अनमोल धरोहर है और हम महिला लेखिकाओं के लिए एक साहित्यिक विरासत जिसे पढ़कर अगली पीढ़ी याद करेगी कि 21वीं सदी की महान विदुषी साहित्यकारा सविता चड्ढा जी की रचना धर्मिता एक ऐसी अमूल्य निधि है जो हमें संभालकर रखनी है सदियों सदियों तक ।