राम लौट घर आये हैं। हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’हरीश
आओ मिल-जुल खुशी मनायें,
राम लौट घर आये हैं,
चलो अवध सन्देशा लेकर,
घर-घर अक्षत आये हैं।टेक।
गहन निशा की मिटी कालिमा,
दुर्दिन सारा बीत गया,
नये भोर की अगवानी को,
बरस पॉच सौ रीत गया।
रात अंधेरी गुजर गई अब,
नव प्रभात फिर आये हैं।
आओ मिल-जुल खुशी मनायें,
राम लौट घर आये हैं1।
विध्वंसक भाव विचारों की,
हो गई पराजित बर्बरता,
सत्य-न्याय का बिगुल बज रहा,
चहॅक उठी है मानवता।
राष्ट्र-धर्म के गीत सुनाते,
अधर सुधा छलकाये हैं।
आओ मिल-जुल खुशी मनायें,
राम लौट घर आये हैं।।2।
क्षिति-जल-अम्बर जगत देखता,
दसों दिशायें , दनुज , देवता।
शेष विधर्मी राह झॉकते,
चाह रहे कुछ मिले नेवता।
विश्व-पटल पर कौतूहल के,
मेघ सनातन छाये हैं।
आओ मिल-जुल खुशी मनायें,
राम लौट घर आये हैं।3।
निरख नियति की व्यग्र भावना,
करते कोटिक कंठ साधना।
राम हमारे सभी राम के,
कौन अभागा जिसे चाव ना।
धन्य सुपावन भूमि अवध की,
हनुमत शीश नवाये हैं।
आओ मिल-जुल खुशी मनायें,
राम लौट घर आये हैं।4।
रचना मौलिक,अप्रकाशित,स्वरचित,सर्वाधिकार सुरक्षित है।
हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’हरीश;
रायबरेली (उप्र) 229010