पूर्वजों का स्मृतिकाल पितृपक्ष

अश्विन (क्वांर) मास की कृष्ण पक्ष की प्रथमा तिथि से अमावस्या तक पितृपक्ष मनाया जाता है। पितृपक्ष का शाब्दिक अर्थ है- पिता का पक्ष, अर्थात पूर्वजों का पखवाड़ा। “श्रद्धया इदं श्राद्धम”, अर्थात जो कार्य श्रद्धा से किया जाए, वही श्राद्ध है। इसी अन्तःमंन भावना से पूर्वजों (पितरों) को जल देकर स्मरण किया जाता है, उनसे परिवार की खुशहाली के लिए आशीर्वाद लिया जाता है। माता-पिता और पूर्वज ही असली परमात्मा और प्रथम गुरु हैं। इनका अनादर करने वाली संतानों को कभी मानसिक और आध्यात्मिक संतुष्टि नहीं मिलती है। हिंदू धर्म में मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष में पूर्वज आशीर्वाद देने आते हैं, जिनके लिए हम विधि-विधान से उनकी पुण्यतिथि को पूजा अर्चन करके स्मरण करते हैं।

जीवनशैली साधारण हो जाती, नई सामग्री कपड़े आदि नहीं खरीदते हैं जो कहीं न कहीं फिजूलखर्ची को रोकता है। प्रातःकाल सूर्य की तरफ़ देखकर पूर्वजों को जल देते हैं, यह समय सूर्य से विटामिन डी लेने का संकेत भी है, जो यह सिद्ध करता है कि शरद ऋतु का आगमन हो चुका है। वहीं अगर विज्ञान और आत्मज्ञान को केंद्र में रखकर चिंतन करें, तो हम पाएंगे कि आत्मा नहीं मरती बल्कि शरीर नश्वर है। इसलिए कोई पूर्वज मृत्युपरांत भोजन जल आदि ग्रहण करने नहीं आता है, फिर भी जिन्होंने हमें जन्म दिया, सजाया, सँवारा, खून पसीना एक करके हमें काबिल इंसान बनाया है। उनकी स्मृतियों को संजोये रखने के लिए पितृपक्ष मनाया जाता है।

ऐसे महान पूर्वजों को हम न भूल पायेंगे और न ही उनका कर्ज उतार पाएंगे। इसलिए पितृपक्ष में उन्हें स्मरण करके अपनी दिनचर्या शुरू करना ही वास्तविक श्रद्धा है। फिर भी आस्था विज्ञान पर सदैव भारी रही है। अश्विन मास में मौसम में अनेक बदलाव आने लगते हैं। यह पखवाड़ा ग्रीष्म ऋतु का समापन और शरद ऋतु का आगमन का संकर काल है, जो स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद नहीं है। मौसम प्रतिकूल रहता है। इसी मास में खरीफ की फसलें जैसे ककड़ी, चावल, ज्वार, उड़द, मूंग का आदि पकना और कटना शुरू हो जाता है, जो हमें सात्विक भोजन करने के लिए प्रेरित करता है। पितृपक्ष में तामसी भोजन (मांसाहारी) निषिद्ध है, कबीरदास ने भी मांसाहारी भोजन और पशुबलि का विरोध किया है। हमें अपने पूर्वजों की स्मृतियों को चिरस्थाई बनाये रखने के लिए उनकी यादों और उनके सत्कर्मो से भी स्नेह बनाये रखना चाहिए।

डॉ० सोनिका, अम्बाला छावनी, हरियाणा।

अशोक कुमार गौतम असि०प्रोफेसर, रायबरेली

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