पत्रकारिता दिवस पर विशेष – सविता चडढा और हिंदी पत्रकारिता

पत्रकारिता दिवस पर विशेष

सविता चडढा और हिंदी पत्रकारिता

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हिंदी पत्रकारिता दिवस पर मुझे याद आ गया है एक नाम श्रीमती सविता चड्ढा का। जब वह हिंदी पत्रकारिता का डिप्लोमा करने के लिए एक बहुत ही प्रतिष्ठित कॉलेज में गई थी और इंटरव्यू के दौरान उन्हें बताया गया कि यहां पर केवल अंग्रेजी में ही पत्रकारिता पढ़ाई जाती है लेकिन सविता जी तो हिंदी में लिखा करती थी । हालांकि इंटरव्यू के दौरान उनके विरोध पर बाद में उन्हें उस कॉलेज में भी दाखिला दे दिया गया था। हिंदी की दशा पर उस दौरान सविता जी को बहुत ही कष्ट हुआ था और बाद उनके प्रयास के बाद एक ऐसे कॉलेज में उन्होंने दाखिला ले लिया था
जहां से वे पत्रकारिता हिंदी में कर सकती थी ।
सविता जी ने एक बहुत ही खूबसूरत बात मुझे बताई, उन्होंने कहा

” मुझे आज लगता है कि जब हम आहत होते हैं तो हमारे भीतर एक प्रकाश पुंज भी स्थापित हो जाता है । वह हमें रास्ता भी दिखा सकता है और हमें जलाकर खाक भी कर सकता है। यह व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह आहत होने के पश्चात मस्तिष्क में व्याप्त इस प्रकाश पुंज का प्रयोग कैसे करता है।”

जिन दिनों वे डिप्लोमा कर रही थी बहुत खोजने के पश्चात भी उन्हें हिंदी में पत्रकारिता पर कोई मार्गदर्शक पुस्तक नहीं मिली थी जिससे नए पत्रकार मार्गदर्शन प्राप्त कर सकें।

पत्रकारिता पर 10 पुस्तकें प्रकाशित होने की यात्रा 

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पत्रकारिता का डिप्लोमा पूरा करने के बाद सविता जी ने , परीक्षा के लिए उस समय जो भी नोटस तैयार किए थे उन सब को इकट्ठा किया और उनकी पहली पुस्तक प्रकाशित हुई ” नई पत्रकारिता और समाचार लेखन ।” यह पुस्तक तक्षशिला प्रकाशन ने 1989 में प्रकाशित की थी। पुस्तक प्रकाशित होते ही उसे दिल्ली विश्वविद्यालय के पत्रकारिता पाठ्यक्रम में सहायक ग्रंथ के रूप में रख लिया गया और बाद में इस पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद भी श्री उमेश चंद्र बहुगुणा जी ने वर्ष 1998 में किया। ये अनुवाद भी तक्षशिला प्रकाशन ने ही करवाया था । बाद में यह पुस्तक विदेशों में भी पहुंच गई थी । 1992 में सविता जी की एक और पुस्तक प्रकाशित हुई थी तक्षशिला से जिसका शीर्षक था ” नामी उर्दू पत्रकार ।” बताते हुए बहुत अच्छा लग रहा है कि इसके बाद उनकी 1995 में पुस्तक आई “हिंदी पत्रकारिता सिद्धांत और स्वरूप “ यह पुस्तक भी समय-समय पर पुनरमुद्रित होती रही।
महावीर एंड संस से पत्रकारिता पर उनकी एक किताब “हिंदी पत्रकारिता अध्ययन और आयाम “ प्रकाशित की 2009 में। इस पुस्तक ने भी बहुत ही सम्मान और प्यार पाया। इसके बाद राज सूर्य प्रकाशन ने हिंदी पत्रकारिता पर उनकी चार पुस्तकें प्रकाशित की पहली पुस्तक, 2003 में “आजादी के 50 वर्ष और हिंदी पत्रकारिता प्रकाशित की , 2003 में ही “पत्रों की दुनिया “ , 2004 में ” इतिहास और पत्रकारिता”, 2012 में “दूरदर्शन का इतिहास और टेली फिल्में” प्रकाशित की। राज सूर्य से प्रकाशित उनकी 2 पुस्तकें भी विभिन्न विश्वविद्यालयों में पत्रकारिता पाठ्यक्रम में संस्तुत हैं।
पत्रकारिता पर 10 पुस्तकें प्रकाशित होने के पश्चात सविता जी मानती है ” मुझे अब तक जो ज्ञान था, वह सब मैंने पत्रकारिता में पदार्पण करने वाले अपने उन मित्रों को दे दिया है जो पत्रकारिता में पदार्पण करना चाहते हैं। अगर मुझे कभी मौका लगा तो मैं हिंदी पत्रकारिता पर अपने जीवन के और अनुभव लिखकर एक और ग्रंथ देने का प्रयास करुंगी।”

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