मेरी चार कवितायेँ -आनन्द सिंघनपुरी
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*दीप जलाएं*
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जला लें दीप कोनो में,
कही सूने मकानों में।
सजा ले फूल बागों में,
कभी फीके नजारों में।।1।।
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लगे चाहें तुझे सालों,
कभी सौंदर्य बिखरा लो।
जहाँ गोता लगा पाले,
सुखी आनंद बीता ले।।2।।
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नही सोये दिखाई दे,
सुनें गाये दुहाई दे।
फिरे झूमें बगानों में,
बिताये यूँ तरानों में।।3।।
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हिय हिलोरे हुलास भरे,
चिकट कष अरि अमत निकरे।
अभूरि अमल अमिय पी ले,
कुछ अमिष सुख अयुग जी ले।।4।।
*अंतर्व्यथा*
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व्यथित मन के घेराव से, ना कही पर ठाँव,
थमते क्यों नहीं हमारे, दोनों हाथ पाँव।
आशा रूपी बाणों से, ले कपोत उड़ाय,
धुँधली सपन को देखकर, मन हि मन मुस्काय।
यथार्थ सेअनभिज्ञ होय , बनते क्यों अज्ञान,
ना सोचें ना ही समझे, चकित अंतर्ज्ञान ।
अंतर्जाल में फंस पड़े, इसका नही भान,
काल से जीत पाया हैं, लिप्त हो अभिमान ।
हम केवल दिये हैं तुझे, जीवन भर विलाप,
अन्तस की पीड़ाओं को, सह लेती चुपचाप।
सहृदय कल्पना सँजोकर, गाये सुखद गान,
मधुरता भरे लहरों से, होता नित विहान।
*दूजा न कबीरा*
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पुण्य सरोवर में, हर उपवन में,
आकाशी इस आँगन में ।
लिए पसार प्रीत, अनुबंध गीत,
क्षणिक क्षुब्ध सी वेदना में।
पुलक भये शरीर,ना हो अधीर, ल
हो चुप दग्ध पुकार सुनो।
मग्न हो जयकार, करें स्वीकार,
हे मानव तनिक तो गुनों।
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पाकर बड़भागी,अति अनुरागी,
अनुरंजन अनुवर्तन करें।
निद्रित अंधजाल,हमको निकाल,
दह में भी संवर्धन करें।
धन्य धर्ता धाम,कबीर सुनाम,
संभूति सुज्ञानी मिले।
सत्कीर्ति सत्कार्य,जग स्वीकार्य,
सत्संगी जगत को मिले।
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परीक्षा की घड़ी(जनक छंद)
जरा संभल कर चलिये,
हर डगर बिछा शूल है,
मिलकर सुगम पथ गढ़िये।
धैर्य से विमुख मत हो,
अविराम बढ़ते चल तू,
अथक परिश्रम करते रहो।
डिगे न कदम अड़िग बढ़े,
हर क्षण दृढ़ संकल्प से,
सदा नव सोपान चढ़े।
निज कर्म से बन सकता,
उपल भी वारि जान लो,
है मंत्र यही सफलता ।
राह दुश्वार हो लगे,
सरलता तलाश करना,
चाहे कई बरस लगे।
है प्रेरणा असफलता ,
जो इसे है समझ लिया,
उसके लिए क्या विफलता।
अनुभव कि कड़वाहट में,
अगम उद्देश्य साध ले,
हारे न कभी जनम में।
आनन्द सिंघनपुरी,छत्तीसगढ़ की स्वरचित रचना है आशा करते है| पाठक लेखक’ की रचना को प्यार और आशीर्बाद सोशल मीडिया के माध्यम से शेयर करके देंगे |वेबसाइट dmca protected है ,लेखक के बिना आज्ञा के इस रचना को पुनः प्रकाशित करने पर क़ानूनी कारवाई की जायेगी लेखक का सचल-९९९३८८८७४७