लौट आओ राम-डॉ.संपूर्णानंद मिश्र
लौट आओ राम-डॉ.संपूर्णानंद मिश्र
कहां हो मेरे राम !
लौट आओ तुम एक बार फिर
ज़रूरत है आज सबसे ज़्यादा तुम्हारी
घुट रही है प्रजा
नहीं ले पा रही है
सांस भी ठीक से
चली गयी है वेण्टीलेटर पर भी
दिख रहा है हर पथ पर अंधकार
बिरा रहा है मुंह तम भी आज
एक बहुत बड़ी क़ीमत वसूली है आफ़ताब ने अंधेरों से
अब नहीं डर है अंधेरे को किसी से
अर्जित कर लीं हर तरह की मायावी शक्तियां
भयमुक्त बता रही है वह अब अपने को
नहीं झुकेगा
उस बड़े डीह के सामने जो
वर्षों से लोग माने हुए हैं
जिनके अस्तित्व और शौर्य को
निकाल लीं जायेंगी ऐसी हर आंखों को
ऊंची उठी हुई हो
जिनकी गर्दन सुराही से भी ज्य़ादा
चौखटों में ही समा जायेगी उनकी चींखें
कौन पोंछने आयेगा आंसुओं को उनके
क्योंकि नहीं बर्दाश्त कर पायेंगे
अपने ऐनक से
उन्हें कोई रास्ता दिखाए
डार्बिन के विकासवाद का सिद्धांत समझाए
परित्याग कर दिया तुमने धोबी के कथन पर सतवंती मां सीता का
यह जानते हुए कि वह निर्दोष है
इन निर्दोषों के नयन- नीर पोंछने तुम आ जाओ
लौट आओ राम एक बार फिर !
संपूर्णानंद मिश्र
प्रयागराज फूलपुर