अंतिम मुगल सम्राट : बहादुर शाह जफर, जिनको भोजन में फिरंगियों ने बेटों के सिर परोसा

भारत में सत्तावनी स्वाधीनता संग्राम की क्रांति में किसी क्षेत्र या धर्म विशेष के लोगों ने अपनी कुर्बानियां नहीं दी, अपितु संपूर्ण भारत के सभी धर्म व सभी जातियों के लोगों ने खुशी-खुशी अपने प्राणों को निछावर कर दिया था। तत्कालीन परिस्थितियों में न हिंदू, न मुसलमान, न सिक्ख। स्वाधीनता संग्राम में जो भी शामिल था, वह सिर्फ सच्चा हिन्दुस्तानी, देश प्रेमी और भारत माता का रखवाला था। फिरंगियों ने भारतीयों पर जबरन अत्याचार, शोषण शुरू कर दिया। बच्चे औरतें भी अंग्रेजों के शोषण से बच नहीं सकी। फिर भी भारतीय वीर सपूत लड़ते रहे, तब अंत में भारत स्वतंत्र हुआ।
ऐसे ही वीर सपूत बहादुर शाह ज़फ़र थे।
बहादुर शाह ज़फ़र का जन्म 24 अक्टूबर सन 1775 में पुरानी दिल्ली में हुआ था। पिता का नाम मुगल सम्राट अकबर शाह द्वितीय और माता का नाम लालबाई था। जिन्होंने दिल्ली में कुशल शासक की भूमिका निभाते हुए होनहार बालक को जन्म दिया था। आप मशहूर शायर और मुगलकालीन शासन के अंतिम सम्राट थे। मुगल सम्राट अकबर शाह द्वितीय की मृत्यु के बाद 29 सितंबर सन 1837 को बहादुर शाह जफर ने दिल्ली के सिंहासन पर विराजमान होकर भारत पर शासन करना प्रारंभ किया। जिसके साथ ही भारत से फिरंगियों को खदेड़ना आपका मुख्य उद्देश्य बन चुका था। आपने अंग्रेजों के खिलाफ जंग-ए -आजादी का ऐलान कर दिया। स्वाधीनता संग्राम में मुगल मुगल शासक जफर ने भारतीय सिपाहियों का नेतृत्व करते हुए 1857 का विद्रोह शुरू कर दिया और स्वयं भी जंग के मैदान में कूद पड़े। इस महासंग्राम को सिपाही विद्रोह, भारतीय विद्रोह आदि की संज्ञा दी गई थी। बहादुर शाह जफर के नेतृत्व में सशस्त्र सिपाहियों का अंग्रेजों के विरुद्ध 2 वर्ष युद्ध चला। विद्रोह का श्रीगणेश ब्रिटिश सरकार की छोटी-छोटी छावनियों से प्रारंभ हुआ था। बहादुर शाह जफर की सेना छावनियों में गोलाबारी करके ब्रिटिश हुकूमत को तहस नहस करने में लगी थी। ऐसे समय में मंगल पांडेय ने शूद्र सफाईकर्मी गंगू मेहतर द्वारा की गई यथार्थवादी तल्ख टिप्पणी सुनकर मेरठ छावनी के विद्रोह की लौ जलाई थी, जो संपूर्ण भारत में धीरे-धीरे बढ़ने लगी थी। ब्रिटिश सरकार में मंगल पांडेय सिपाही और गंगू मेहतर जमादार के पद पर कार्यरत थे।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, मशहूर सूफी विद्वान फजले हक खैराबादी ने दिल्ली स्थित भारत की सबसे बड़ी जामा मस्जिद से अंग्रेजों के विरुद्ध फतवा जारी कर दिया और इस फतवे को अंग्रेजों के खिलाफ जिहाद का रूप दे दिया था। अब फिरंगियों में भय का माहौल था। अपनी कुर्सी डगमाती देख अंग्रेजों ने हजारों भारतीय उलेमाओं को सरेआम पेड़ों से लटका कर फांसी दे दी। इतना ही नहीं, अंग्रेजों ने अनेक वीर सपूतों को तोपों से भी उड़वा दिया, तो हजारों भारतीयों को काला पानी की आजीवन सजा भी दी। इस प्रकार अंग्रेजों का जुल्म और सितम बढ़ता गया है। फजले हक खैराबादी से अंग्रेज बहुत घबराते थे, इसलिए उन्हें रंगून (म्यांमार) में काला पानी की सजा देने के बावजूद भी मृत्युदंड दिया था।
यह क्रूरता अंग्रेजों पर ही भारी पड़ती जा रही थी। सम्राट बहादुर शाह जफर किसी भी कीमत पर पीछे हटने को तैयार न थे। अंग्रेजो ने कई संधि प्रस्ताव जफर के पास भेजा, किंतु सच्चे हिंदुस्तानी राष्ट्र प्रेमी जफर ने अंग्रेजों के सामने नतमस्तक होना कबूल नहीं किया, बल्कि फिरंगियों के खिलाफ और अधिक मुखर हो गए। तब फिरंगियों ने हजारों मुसलमानों को दिल्ली के लाल किला गेट पर गोली मार दी, सैकड़ो लोगों को वहीं पर फांसी भी दे दी। हजारों भारतीयों के बहते लहू का गवाह दिल्ली स्थित लाल किला के एक विशाल दरवाजे को आज भी ‘खूनी दरवाजा’ नाम से जाना जाता है। कुछ समय बाद लखनऊ में भी बेगम हजरत महल ने अंग्रेजों के विरुद्ध बिगुल फूंक दिया था।
डरे सहमे अंग्रेजों ने भारत में हर ‘तरफ फूट डालो, राज करो’ एवं छल-कपट की कूटनीति भी जारी रखी। ब्रिटिश सरकार का मेजर हडसन दिल्ली में ही उर्दू भाषा भी सीख रहा था। एक दिन मेजर हडसन को मुन्शी जब अली और मिर्जा इलाही बख्श से खुफिया जानकारी प्राप्त हुई कि बहादुर शाह जफर अपने दो पुत्रों मिर्जा मुगल व खिजर एवं पोता अबूबकर सुल्तान के साथ पुरानी दिल्ली स्थित हुमायूं का मकबरा में छिपे हैं। वहां मेजर हडसन ने पहुंचकर जफर को गिरफ्तार कर लिया था | क्योंकि बहादुर शाह जफर के दोनों पुत्रों और पोते ने अंग्रेजो के बीवी बच्चों का कत्ल करने मे हिस्सा लिया था| बहादुर शाह जफर और अन्य टीमों को गिरफ्तार करने के बाद मेजर हडसन ने शायराना अंदाज में कहा कि-
“दमदम में दम नहीं है, खैर मांगो जान की। ऐ जफर ठंडी हुई अब, तेग हिंदुस्तान की।।”
सम्राट, शायर बहादुर शाह ज़फ़र ने मेजर हडसन की इस बात पर क्रोधित होकर बुलंद आवाज में फिरंगियों को उत्तर देते हुए कहा–
“गाजियो में बू रहेगी, जब तलक ईमान की, तख्त-ए-लंदन तक, चलेगी तेग हिंदुस्तान की।।”
बाद में स्वाधीनता संग्राम के युद्ध में अंग्रेजों से बहादुर शाह जफर को पराजय का सामना करना पड़ा। अंग्रेजों ने बहादुर शाह जफर व उनके पुत्रों को गिरफ्तार कर लिया। पुत्रों को दिल्ली में फांसी दे दी गई और जफर को म्यांमार स्थित रंगून में काला पानी की आजीवन सजा दी और वहीं 7 नवंबर सन 1862 में बहादुर शाह जफर की मृत्यु हो गई।
कहा जाता है अंग्रेज कितने कितने निर्दयी थे, इसका अंदाजा लगाने मात्र से ही भारतीयों की रूह कांप उठेगी। जब बहादुर शाह जफर और उनके दोनों पुत्रों को दिल्ली हुमायूं का मकबरा में गिरफ्तार किया गया, तो पुत्रों को पहले फांसी दे दी गई। बहादुर शाह जफर कई दिनों से भूखे प्यासे थे, उन्होंने भोजन मांगा तब क्रूर अंग्रेजों ने जफर के सामने थाली में उनके पुत्रों का सिर परोस कर दिया। सोचों उस पिता के दिल पर क्या बीती होगी। उसके बाद भी बहादुर शाह जफर ने पराधीनता स्वीकार नहीं की। सच्चे हिंदुस्तानी का धर्म निभाते हुए भारत माता की रक्षा के लिए शहीद हो गए।

अशोक कुमार गौतम
असिस्टेंट प्रोफेसर, साहित्यकार,
रायबरेली यूपी
मो० 9415951459