कवियों की कलम से दूर आज भी मजदूर | श्रवण कुमार पान्डेय,पथिक

कवियों की कलम से दूर आज भी मजदूर | श्रवण कुमार पान्डेय,पथिक

बहुत से कवियों की कलम से दूर आजभी मजदूर है,
मजदूर के घर पैदा हुआ नर आज भी बना मजदूर है,
01

व्यवस्था घोषणायें करती पर फलक पर कुछ न दिखे,
कवि अली कली,प्रियतम से बचे तब मजदूर पर लिखे,
02

आजादी के बाद से अब तक मजदूर रात दिन हलकान है,
समझ से परे यह बात किस बात पर भारत वर्ष महान है,?
03

बड़ी ,बड़ी मिलें,कल ,कारखाने एक एक कर बंद होते रहे,
धरे के धरे रह गये धरना प्रदर्शन,बेचारे मजदूर रोते रोते गए,
04

सीमा पर जवान, खेतों में किसान,शेष जगह मजदूर हैं,
व्यवस्था चला रहे हैं अंधे,व्यवस्था में भरे पड़े बेशऊर हैं,
05

बीत गए पछत्तर साल,आमजन तो आज भी मजबूर है,
उदरम्भर कर रहे मौज,मजदूर से तरक्की अभी भी दूर है,
06

भून्ख से अभाव से जूझ जूझकर पीढियाँ बीतती जातीं,
इस देश के राजपुरुषों को अब कभी शर्म भी नहीं आती,
07

कभी आवो देखो जमीनी हालात देखते रहते ऊपर ऊपर,
कभी देखो आकर इनके घर को क्या बीत रही मजदूर पर,
08

पीडित का दर्द जब उमडता डंडे पर झंडे नहीं लहरते,
चुनाव चिह्न वाले कलंदरो ,संभल जाओ समय के रहते,
09
श्रवण कुमार पान्डेय,, पथिक,

आदमी बनाने की दवा

गुमराह आदमी को आजतक यह नही पता कि उसे चाहिए क्या,,?
आजतक नहीं इजाद हो पाई आदमी को आदमी बनाने की दवा,।।
01

पशु पक्षी भी मिल्लत से बसर कर लेते हैं, पर आदमी कभी नहीं,।
आदमी,आदमी की तरह जिये तो जिंदगी जीना बहुत कठिन नहीं,।।
02

आदमी धन के लिये,कोमल तन के लिए भागता फिरता भरसक,।
रंक हो या राजा किसी के लिये स्वर्ग से विमान न आया आजतक,।
03

सकल वांगमय से उदासीनता ने रचे हैं समाज में अनय के फलक,।
चार दिन की जिंदगी बहुतों को शांति से बितानी न आई आजतक,।।
04

बड़े बड़े योद्धा,योगी,भोगी अन्ततः जग से खाली हाथ ही जाते दिखे हैं,
किन्तु जो जिये मानवीयता उनके सुयश कवियों ने बड़े मन से लिखे हैं,।
05

जाने कितना धन चाहिए,हवश का पुतला बनकर फिर रहा आदमी,।
पाल रहा है व्यसन तन ,मन मे राम जाने सुधरता क्यो नहीं आदमी,,?
06

जो प्राप्त है वह पर्याप्त है,इस मूलमंत्र पर अमल करता नहीं आदमी,।
नाहक के द्वंद, संघर्ष भला किस काम के समझता क्यों नहीं आदमी,,?
07
श्रवण कुमार पान्डेय ,पथिक