दो तन में बस प्राण एक हो | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’
दो तन में बस प्राण एक हो | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’
तुम दरिया हो तुम सागर हो,
मुझ निर्धन की तुम गागर हो।1।
तुमसे जीवन धन्य हो गया,
प्रिय सरलमना नय नागर हो ।,2।
दे दो सरल स्नेह उर पावन,
अनुपल उर तव चाकर हो।3।
स्नेह-सुरभि बिखराओ जग में,
प्रिय सुरभित मलयज आगर हो।4।
प्राण चलो तुम साथ सुपथ पर,
तिमिर-नाश उर-अन्तर हो।5।
दो तन में बस प्राण एक हो,
जीवन सहज सुधाकर हो।6।
भुज-पॉशों का नेहिल बन्धन ,
प्राणेश्वरि तेरा जिस पर हो।7।
न तड़पन न दर्द व्यथा का,
बोझ कोई इस दिल पर हो।8।
हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’,
रायबरेली (उ प्र) 229010
9415955693