book review /अञ्जुरी भर प्यास लिये-डॉ. त्रिलोकी सिंह
पुस्तक-समीक्षा
(book review )
कृति : अञ्जुरी भर प्यास लिये
[ गीत-संग्रह]
गीतकार : डाॅ०रसिक किशोर सिंह ‘ नीरज ‘
शिक्षा : एम०ए०,पी-एच०डी०,जी० डी०एम०एम०,एल०एल०बी०
प्रकाशक : आरती प्रकाशन,साहित्य सदन,इन्दिरा नगर-2,नैनीताल।
पृष्ठ संख्या – 120 , मूल्य – 250/=
समीक्षक : डाॅ. त्रिलोकी सिंह
book review : लगभग डेढ़ दर्जन उच्चकोटि की अनुपम कृतियों के प्रणेता डॉ० रसिक किशोर सिंह ‘नीरज’ के विशिष्ट एवं स्तरीय गीतों का संग्रह है- “अञ्जुरी भर प्यास लिए” इस संग्रह में समाविष्ट उनके गीतों में जीवन के विविध रंग दृष्टिगोचर होते हैं, जिनके अवलोकनोपरान्त यह सहज ही कहा जा सकता है कि कृतिकार के उरोदधि में प्रवहमान भावोर्मियाँ गीतों में ढलकर जनमानस की तृषा-तृप्ति हेतु पर्याप्त सक्षम हैं। उन्होंने जीवन के उतार-चढ़ाव, जीवनानुभूतियों, सामाजिक विसंगतियों,परिवार-समाज की विघटनकारी स्थितियों एवं घनिष्ठ सम्बन्धों के मध्य उत्तरोत्तर बढ़ते अन्तराल को बखूबी अपने गीतों में उतार दिया है,जिससे ये गीत पाठकों को मानव-मन की वेदनाओं-संवेदनाओं, कुंठाओं, मनोवृत्तियों की अनुभूति अवश्य कराते हैं। डॉ०नीरज के गीतों में प्रेम है, तो प्रेम की चुभन भी है ; निराशा- हताशा के बीच आशा का संचार भी है; मिथ्या के बीच सत्य का उद्-घाटन भी है; विप्रलम्भ की असह्य वेदना है तो सुखद संयोग का अपरिमित आनन्द भी है; और जीवन-पथ में चुभने वाले शूल हैं तो सुवास विकीर्ण करके अन्तस्तल को प्रमुदित एवं आह्लादित करने वाले सुगन्धित प्रसून भी हैं। इस प्रकार डॉ०नीरज जी के गीत अयस्कान्त की भाँति पाठकों को अपनी आकर्षण-शक्ति से खींच लेते हैं। इतना ही नहीं,हृदयोद्भूत उनके गीत अंतर को तोष व आनन्द प्रदान करने की शक्ति रखते हैं।
वास्तव में डॉ०नीरज जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी तो हैं ही,एक सशक्त, स्तरीय एवं विशिष्ट गीतकार भी हैं, जिन्होंने अपने गीतों के माध्यम से समाज में एक अभिनव जागृति लाने का सार्थक प्रयास किया है। वे समाज की समस्याओं को रेखांकित कर उनका समाधान भी प्रस्तुत करते हैं। उन्होंने जीवन के आदर्श पक्ष को प्रत्यक्षाप्रत्यक्ष रूप में व्यक्त करने का सफल प्रयास किया है, जिससे मनुष्य दुःखों से उबर कर सुख का अनुभव कर सकता है। कभी उनका भावुक हृदय प्रकृति-क्रोड में क्रीड़ा करने लगता है तो कभी प्रकृति के विनाशकारी कोप से क्षुब्ध हो जाता है। सत्शास्त्रों के अध्येता डॉ०नीरज जी को अनेक भगवत्परायण सन्त- महात्माओं का सान्निध्य प्राप्त होने के कारण उनके गीतों में अध्यात्म का सुखद संस्पर्श भी है मिलता है। उनके कतिपय गीतों में दार्शनिकता के भी दर्शन होते हैं।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ०रसिक किशोर सिंह “नीरज” के सद्यः प्रकाशित आलोच्य गीत-संग्रह-“अञ्जुरी भर प्यास लिये” में विभिन्न विषयों पर केंद्रित कुल 61 गीत और 111 दोहे संगृहीत हैं। परम्परानुसार वाग्देवी सरस्वती-वन्दना के अनन्तर जन-जागरण हेतु वे संकल्पबद्ध होकर नई पीढ़ी को प्रेरित- प्रोत्साहित करते हुए कहते हैं-
नया ओज लेकर सुपथ पर बढ़ें हम
नई सीढ़ियाँ नित प्रगति की चढ़ें हम
नया भाव मनुजत्व का ओजमय हो
बढ़े नव सृजन का नया स्वर गढ़ें हम
( ‘नया जागरण हो नयी रोशनी हो’ गीत से)
भाई-भाई के घनिष्ठ सम्बन्धों में दिन-प्रतिदिन बढ़ रही दूरी एवं मनोमलिनता की झाँकी डॉ०नीरज जी के “भाई ने भाई के तोड़े” शीर्षक गीत में द्रष्टव्य है-
अरमानों को रहे सँजोते,जीवन भर अपने।
भाई ने भाई के तोड़े,क्षण भर में सपने।
अपने एक दोहे में भी वे इसी भाव को व्यक्त करते हुए कहते हैं-
भाई-भाई में ठनी,घर-घर में है द्वन्द्व।
सत्य दिखे कैसे भला,मन के दृग हैं बन्द।।
वास्तव में गीतों में अर्थवत्ता तो होनी ही चाहिए,अन्यथा वे अन्तस्तल का संस्पर्श करने में समर्थ नहीं हो सकते। भावशून्य गीत ना तो मन को तोष प्रदान कर सकते हैं और ना ही जीवन में सकारात्मक परिवर्तन। ठीक इसी भाव पर केंद्रित अपनी निम्नांकित पंक्तियों में डॉक्टर नीरज जी यह सन्देश देते हैं कि गीतों के अर्थ एवं रिश्तो में प्रेम का होना अत्यावश्यक है अन्यथा इनका कोई मूल्य नहीं-
जिन गीतों का अर्थ नहीं कुछ,
व्यर्थ उन्हें फिर गाना क्या?
जिन रिश्तो में प्रीत नहीं उन,
रिश्तों को अपनाना क्या ?
( “जिन गीतों का अर्थ नहीं कुछ”- गीत से उद्धृत)
एक सच्चे प्रेम-पिपासित की भूमिका का निर्वहन करते हुए डॉक्टर नीरज जी ने अपने गीत- “सचमुच प्यार करो” में लिखा है-
तेरे पीछे परछाईं हूँ, मत प्रतिकार करो
जितना प्यार किया है मैंने,उतना प्यार करो।
गीतकार का मन अपनी प्रेयसी के सौन्दर्य में इतना निमग्न हो जाता है कि उसकी प्रेम-पिपासा बढ़ती ही जाती है। गीतकार के शब्दों में-
देख तुम्हारी सुन्दरता को,बढ़ जाती है प्यास
और अधिक अभिलाषाओं की, जग जाती है आस
(“नील गगन की चन्दा जैसी”- शीर्षक गीत से उद्धृत)
डॉक्टर नीरज जी के गीत- “परहित कर कुछ” में स्वहित की संकीर्ण मानसिकता से ऊपर उठकर परोपकार करने की प्रेरणा तो दी ही गई है, साथ ही जीवन में स्वावलम्बी बनने पर भी बल दिया गया है। इतना ही नहीं,इसी सारगर्भित गीत में दुःख का यथार्थ कारण और उसका निवारण भी है-
अपना और पराया ही तो,दुख का कारण है
दूरी रखना जग से केवल, दुःख निवारण है
डॉ०नीरज राष्ट्रभक्ति की भावना से ओतप्रोत हैं। वे एक स्वाभिमानी शूर की भाँति देश पर कुदृष्टि डालने वाले पाक को चेतावनी देते हुए कहते हैं-
सुनो पाक अब नहीं खिलायेंगे तुमको हम खीर
शेर यहाँ अब दिल्ली में हैं,सेना में हैं वीर
लेके रहेंगे पाक अधिकृत, पूरा ही कश्मीर
राजाओं की शक्ति देख लो, बनकर यहाँ वज़ीर
‘नीरज’ हर अभिमान मिटा दें, टूटेगा यदि धीर
बम भी अपने पास यहाँ पर,हैं अर्जुन के तीर।
(“बँटवारे की झेली हमने पीर”- शीर्षक गीत से उद्धृत)
“जिन्दगी तमाम हुई” शीर्षक गीत में डॉक्टर नीरज जी ने जीवन की तीनों अवस्थाओं-बचपन,यौवन और वार्द्धक्य का यथार्थ चित्रण किया है-
खेल-खेल में बचपन बीता
रंग जवानी में
चढ़ा अनोखा रूप रंग
मन की मनमानी में
गाढ़े दिन दे गया बुढ़ापा
नींद हराम हुई
इसी तरह से तो अपनी
जिन्दगी तमाम हुई ।
सनातन धर्म एवं सत्शास्त्रों में अटूट विश्वास होने के कारण डॉक्टर नीरज जी भी यह स्वीकार करते हैं कि कर्म ही मानव का भूत,वर्तमान और भविष्य निर्धारित करता है। सुकर्म से सुगतिऔर निन्दनीय कर्म से दुर्गति की प्राप्ति होती है।अर्थात् धर्मसम्मत कर्म से जीवन सुखमय होता है तो पाप- कर्मों से मनुष्य दुःख पाता है। इन्हीं भावों पर केन्द्रित उनकी पंक्तियाँ मनुष्य को पाप-कर्म से विरत होने और धर्मयुत् कर्म में रत होने की सत्प्रेरणा देती हैं-
सदा धर्मयुत् कर्म करें हम
तो जीवन है सुखमय होता
पाप-कर्म करने से नीरज
सदा-सदा ही दुख में रोता
धर्म शास्त्र की बातें अपनी
हैं जानी पहचानी
कर्म सजा ले प्राणी ।
(“समरसता आसव को पी ले”- शीर्षक गीत से)
सामाजिक उच्चादर्शों एवं मानवीय मूल्यों के पोषक एवं पक्षधर डॉ०नीरज जी ने सत्य, दया, करुणा, परहित, प्रेम आदि सद्भावों को अपने गीतों में इस प्रकार पिरोया है कि इनसे मानव के अन्तर्मन को एक नई ऊर्जा प्राप्त होती है और वह कलुषता एवं मनोमालिन्य का त्याग कर जीवन- मूल्यों को अपने जीवन में अपनाकर जीवन को कृतकृत्य करने की दिशा में सचेष्ट हो जाता है। वे जन-जन को प्रबोधित करते हुए कहते हैं-
‘नीरज’ अब खुद ही करो चिन्तन और विवेक
मानवता यदि मर गयी क्या सोचोगे नेक?
पाश्चात्य सभ्यता को करें न अंगीकार
सादा जीवन हो यहाँ ऊँचे सदा विचार
book review :निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि “अञ्जुरी भर प्यास लिये” गीत- संग्रह में डाॅ० रसिक किशोर सिंह ‘नीरज’ ने अपने उच्चकोटि के स्तरीय गीतों का संग्रह किया है। उनके सभी गीतों में भावपक्ष की प्रधानता तो है ही,कलात्मक सौष्ठव भी कम नहीं है। भावानुकूल शब्दों के प्रयोग में डॉक्टर नीरज जी पूर्ण दक्ष हैं। उनके भावमय गीतों में तत्सम शब्दों के साथ आवश्यकतानुसार तद्भव व देशज शब्द भी प्रयुक्त हैं ,जिनसे गीतों में सहजता एवं स्वाभाविकता आ गई है। उनके गीत मानव को सन्मार्ग पर अग्रसर होने की प्रेरणा तो देते ही हैं, जीवन को संस्कारित भी करते हैं। उनके गीतों में अभिव्यक्त लौकिक और अलौकिक प्रेम की पावन सरिता में अवगाहन कर पाठक आत्मविभोर एवं तृप्त हो जाते हैं। अनुप्रास, उपमा, उत्प्रेक्षा एवं रूपकादि अलंकारों की सुन्दर छटा से उनके गीतों की महनीयता में स्वाभाविक रूप से वृद्धि हुई है। इस महार्घता के युग में सुन्दर एवं नयनाभिराम आवरण-पृष्ठ के साथ ग्लेज कागज पर मुद्रित 120 पृष्ठीय विवेच्य कृति का निर्धारित मूल्य अधिक नहीं कहा जा सकता।
अन्त में हम पूर्ण आशान्वित हैं कि डॉक्टर नीरज जी यावज्जीवन ऐसी ही सार्थक कृतियों का प्रणयन कर हिन्दी साहित्य के कोष में अभिवृद्धि करते रहेंगे । हम ऐसे शीर्षस्थ साहित्यकार डॉ०रसिक किशोर सिंह “नीरज” के स्वस्थ व सुदीर्घ जीवन की प्रभु से मंगलकामना करते हैं।
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समीक्षक — डॉ. त्रिलोकी सिंह हिन्दूपुर,करछना,प्रयागराज(उ०प्र०)
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