आखिर कब तक / रत्ना भदौरिया

आखिर कब तक / रत्ना भदौरिया

पिछले एक महीने से बिस्तर पर पड़ी थी तो फोन छुआ ही नहीं अभी दो दिन पहले थोड़ा तबियत में सुधार आया तो सोचा कि फोन उठाऊं और देखूं कि क्या हो रहा है देश दुनिया में जैसे ही फेसबुक खोला ही था कि अपने आप फेसबुक बंद हो गया और शरीर कांपने लगा, अनेकों सवाल दिमाग में कौंधने लगे कि आखिर कब तक ——? मैं मणिपुर में हुए जघन्य अपराध की बात कर रही हूं ।

सोशल मीडिया भरा पड़ा है मणिपुर की घटना को लेकर मैं तो कहती हूं कि क्या सोशल मीडिया जब तक बेटियों को न्याय नहीं मिल जाता तब तक भरा रहेगा या फिर दो चार दिन के बाद दूसरे मुद्दे पर जा गिरेगा ये घटना रद्दी की टोकरी में जा गिरेगी।

मैं आप लोगों से पूछती हूं क्या आप लोग तब तक खड़े रहेंगे जब तक उन बेटियों को न्याय न मिल जाए तब तक या फिर फालोवर्स बढ़ाकर चुप हो जायेंगे। मैं उन लोगों से पूछती हूं जो विपक्ष में बैठकर सवाल उठा रहे हैं सत्ता पक्ष से क्या आप लोग तब तक सवाल उठाते रहेंगे जब तक न्याय न मिल जाए या फिर सत्ता में आते ही कुर्सी पर जम जायेंगे आज की सत्ता की तरह । मैं पूछना चाहती हूं उन सब लोगों से जिन्होंने लिखा है क्या आप इसे हर जगह पढ़ेंगे या फिर लिखकर छोड़ देंगे।

मेरा अनुभव और उम्र दोनों कम है लेकिन देश में बहुत ही महान वरिष्ठ ज्ञाता मौजूद हैं जो उम्र और अनुभव दोनों में वरिष्ठ हैं आप सब बताइये कि क्या आपने कभी महिलाओं को चैन की नींद सोते देखा है घर से लेकर बाहर तक का काम और फिर इस धरती का निर्माण उसके बदले में आप सब क्या दे रहे हैं? जहां तक मुझे याद है कि जब से स्त्री इस धरती पर आयी तब से उसका इस्तेमाल होता रहा और देखो न इतना गिर गये कि जिस स्त्री ने तुम्हें बनाया आज उसी को नंगा कर के सड़कों पर घुमाया छी: है मैं तो ऐसा शब्द ढूंढ रही हूं वर्णमाला में मिल ही नहीं रहा जिसका इस्तेमाल कर सकूं। इतने जघन्य अपराध के लिए वर्णमाला भी शर्मसार हो गया होगा कि आखिर ऐसा अपराध करने वालों के बारे में लिखे कैसे? मैं दो पंक्तियों के माध्यम से अपनी बात कहूंगी –

जो आज जगे या जो सो रहें अभी ,

उनको बता दूं औरत नहीं हुई नंगी। पूरा देश हुआ है नंगा।

किसका संबल गहे द्रोपदी, टूटा हर कंधा। खींच रहा चीर दुशासन राजा है अंधा, ऐसे में कैसे कह दें है वक्त भला चंगा।।