जिन्दगी | अवधी कविता | इन्द्रेश भदौरिया
जिन्दगी | अवधी कविता | इन्द्रेश भदौरिया
रंग कइसा देखावत हवै जिन्दगी।
रंक राजा बनावत हवै जिन्दगी।
आजु आये हवौ काल्हि जइहौ चले,
एकु दिन सबका बोलावत हवै जिन्दगी।
जबै चाभी भरै तो खेलउना चलै,
जानी का? का? करावत हवै जिन्दगी।
जउनि दुस्मन रहे मेलु उनते करै,
मेली दुस्मन बनावत हवै जिन्दगी।
जिनका पहिले धरा पर गिराइसि रहै,
आजु उनका उठावत हवै जिन्दगी।
कुछौ हम ना करी कुछौ तुमना करौ,
काम सबकुछ करावत हवै जिन्दगी।
काम अच्छे करौ नेक इंसान बन,
यहै सबका बतावत हवै जिन्दगी।
हमतौ वहै बकेन जउन जानत रहेन,
नहीं आगे बतावत हवै जिन्दगी।
इन्द्रेश भदौरिया रायबरेली