श्रीरामचरितमानस की चौपाई का अर्थ
गोस्वामी तुलसीदास कृत श्रीरामचरितमानस एक विश्व प्रसिद्ध प्रबंध काव्य है ,जिसमें श्री राम, श्री लक्ष्मण ,श्री भरत जी ,श्री दशरथ जी आदि के पुरुष चरित्र के साथ ही साथ माता कौशल्या ,सीता, सुमित्रा आदि महिला पात्रों के चरित्र का जीवन्त चित्रण किया गया है । श्रीरामचरितमानस की चौपाई का अर्थ उधर विपक्ष के रावन ,खर -दूषण, मेघनाथ आदि पुरुष पात्रों के साथ शूर्पणखा ,मंदोदरी जैसी नारी पात्रों की भी योजना की गई है ।इन्हीं पात्रों के मध्य महाराज दशरथ की रानी कैकयी का भी चरित्र प्रदर्शित किया गया है ।वह अपनी दासी मंथरा के कहने से दो वरदान मांगती है- प्रथम में राम के राज्याभिषेक के स्थान पर अपने पुत्र भरत का राज्याभिषेक चाहती है। दूसरे वरदान में वह राम को 14 वर्ष का वनवास मांगती है ।वह राम को राजकुमार अथवा राजाराम से उठाकर उन्हें भगवान राम बना देती है ।
राम के वनवास के पीछे के अनेक कारण हैं ।
एक तो यह कि कैकेयी अपने चारों पुत्रों में से राम को ही एक ऐसे समर्थ पुत्र के रूप में देखती है जो उसके समस्त शत्रुओं का नाश कर सकता है और उसकी बानगी उसे विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा तथा धनुष यज्ञ की शिव धनुष भंग के रूप में मिल चुकी थी ।
जैसा कि प्रमाण मिलता है कि कैकेयी महाराज दशरथ के साथ युद्ध भूमि में उनके रथ संचालन हेतु जाया करती थी ।एक बार वह रावण से युद्ध के समय महाराज दशरथ का रथ हाँक रही थी ।उस समय उनकी हार हो जाने से रावण ने उनका उपहास करते हुए कहा कि रघुवंशी में इतना साहस नहीं है कि वह मेरे जैसे महान योद्धा का सामना कर सके।
यह बात माता कैकई को बहुत चुभ गई और उसने वही रावण को जवाब दिया था कि रघुवन्शियो के द्वारा ही तुम्हारे वंश का नाश होगा। अपने इसी वचन को पूरा करने के लिए कैकई ने राम को 14 वर्षों का वनवास मांगा था ।वनवास का वरदान मांगने के समय उसका पुत्र भरत अयोध्या में नहीं था ।यही उपयुक्त अवसर था जब वह राम का वनवास मान सकती थी। वनवास के वर माँगने के बाद अयोध्या वासियों ने, राह के लोगों ने उसके इस कार्य की भर्त्सना की लेकिन कैकई अपने निर्णय पर अटल रही ।हालांकि उसके इस निर्णय के कारण राजा दशरथ को प्राण गंवाने पड़े ।यह तो होना ही था क्योंकि उन्हें श्रवण कुमार के अंधे माता पिता का श्राप था । राजा दशरथ ने इस वनवास के कारण पत्नी कैकेयी का परित्याग कर दिया और मृत्यु को प्राप्त हो गए।
ननिहाल से लौटे भरत ने भी उसकी कम निंदा नहीं की ।उन्होंने भी माता कैकई का परित्याग किया, जिसकी निंदा भगवान राम ने भरत से ही की ।भगवान राम अपनी माता कैकई को अन्य दोनों माताओं से अधिक चाहते थे। माता कैकेई भी चारों पुत्रों में से राम को अधिक चाहती थी जिसका प्रमाण दशरथ जी स्वयं देते हुए कहते हैं कि तुमने हमेशा राम की सराहना की है ।आज क्या हो गया है जो कि राम के प्रति ऐसी निष्ठुर हो गई हो ।
कैकेयी तो जानती थी कि मैं राम को उनके कर्तव्य को पूरा करने में उनका साथ दे रही हूं अन्यथा उनका जन्म लेना ही व्यर्थ हो जाता है। राजकुमार से राजाराम ही हो पाते। उसने वनवास देकर उन्हें संपूर्ण सत्य से अवगत कराया ।सभी प्रकार के मानव से मिलाया ।यहाँ तक महाराज सुग्रीव, नल ,नील ,अंगद तथा हनुमान से मिलाया और उत्तर से लेकर दक्षिण तक के संपूर्ण भारत को एक सूत्र में बांधने का कार्य कराया ।
माता कैकई रावण की सौंदर्य प्रियता को भी जानती थी। उसे यह भी पता था कि उपवन में सीता को किसी पक्षी के द्वारा कहा गया था कि इसे रावण चुराकर लंका ले जाएगा। किसी बहाने रावण वन से सीता का अपहरण करेगा तब राम और उनकी वानरी सेना द्वारा रावण के वंश का समूल नाश किया जाएगा ।
एक किवदंती और भी है कि राजा दशरथ का मूल मुकुट जो उन्हें वंश परंपरा से प्राप्त हुआ था। बाली ने उसे हराकर प्राप्त कर लिया था। उस मुकुट को भी अयोध्या वापस लाने की क्षमता भी वह राम में ही देखती थी जैसा कि बाद में बाली वध के बाद हुआ भी ।
इस प्रकार महारानी कैकई ने अपने एक ही वरदान के कारण महाराज दशरथ के पुत्र प्रेम ,भरत का राम के प्रति भ्रातृ प्रेम एवम् सेवक भाव , लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न के भ्रातृ प्रेम ,महारानी कौशल्या के धैर्य, उर्मिला की प्रेम परीक्षा,और यही नहीं संपूर्ण अयोध्या के नर -नारियों के राम प्रेम को दर्शाने का अवसर प्रदान किया। राम को भी विभिन्न साधू सन्यासियों और संतों के दर्शन करने, उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का सुनहरा अवसर प्रदान किया।जिस कारण से राम जन्म हुआ था अर्थात पृथ्वी का भार उतारने का कार्य करने का भी अवसर राम को माता कैकई के वरदान से ही प्राप्त हुआ ।राम को सब के प्रति समभाव दर्शाने का मौका भी वनवास के द्वारा ही प्राप्त हुआ।
अहिल्या जैसी निरपराध नारी जो अपने ही पति से शापित हुई थी उसका उद्धार ,शबरी जैसी नारी का उद्धार ,ऋषि मुनियों की रक्षा का कार्यभार भी माता कैकई के कारण ही पूर्ण हुआ ।यही नहीं तमाम राक्षस योनियों में उत्पन्न ऋषि मुनियों का भी उद्धार राम के वन गमन से ही पूर्ण हुआ ।
यही कारण था कि राम ने माता कैकई को कहीं भी अपमानित नहीं होने दिया ।उनकी दृष्टि में मां कैकयी अन्य दोनों माताओं से कहीं अधिक श्रेष्ठ थी ।उसका प्रमाण उन्होंने वन से वापस आने पर दिया ।
“प्रभु जाना कैकई लजानी,
प्रथम तासु गृह गये भवानी।”
इस चौपाई से स्पष्ट हो जाता है कि राम ने माता कैकई के सम्मान की सदैव रक्षा की और वह ऐसा क्यों न करते क्योंकि वह संपूर्ण पात्रों को अपने अपने चरित्रों को व्यक्त करने का शुभ अवसर प्रदान करने में सक्षम थी।
अंत में समग्र विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि जिस प्रकार स्वर्ण को अपनी शुद्धता व्यक्त करने के लिए कसौटी पर कसा जाता है अथवा उसे तपा कर उसकी शुद्धता की जांच की जाती है ,उसी प्रकार रामचरितमानस के सभी पात्रों की शुद्धता की जांच महारानी कैकयी की कसौटी पर खरा उतरने के बाद या उनकी अग्नि में तपने के बाद ही हो पाती है।
अतः उक्त माता कैकेयी को कोटिशः नमन -अभिनंदन एवं उनके आशीर्वाद की शुभेच्छा।
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