रत्ना सिंह की लघुकथा | लघुकथा | short story in hindi
रत्ना सिंह की लघुकथा | लघुकथा | short story in hindi
इन्सानियत_रशमी को रह रहकर बहुत दर्द था उसके घर में नया मेहमान जो आने वाला है ।घर की बहू जो ठहरी ,घर के सारे काम काज निपटाने में लगी थी। पांच साल की जानवी भरसक घर के कामकाज में मां का हाथ बंटाती। लेकिन उतनी मदद नहीं कर पाती जितनी मां को ज़रुरत होती। फिर भी उसे लगता कि वह क्या न कर दे, अपनी मां के लिए कूड़ा फेंक आती,कपड़े तहाकर रखती,छोटा सा डोलू ले फुदक-फुदकर नल से पानी ले आती।दो कमरे वाले बंद -बंद से घर में अमित का परिवार रहता था। उसके साथ उसकी पत्नी बेटी के अलावा विधवा मां भी रहती थी।घर के पास छोटा सा आंगन उसमें शौचालय भी, दोनों तरफ बड़े बड़े कूड़ेदान रखे थे, जिसमें आस-पास के सभी लोग कूड़ा बच्चों के सूसू पोटी के हगीज डालते।अगर एक दिन भी मेहतर न आए तो भयंकर बदबू आने लगती।जानवी सुबह उठकर ज्यों ही पानी लेने गयी तो देखा उसकी दादी (पिता की मां)बाहर कह रही थी कि ये कद्दूभर की छोरी पता नहीं कितना काम करवाती है मैं तो सोचती हूं कि ये न करे तो इसकी मां को पता चले। जानवी को सबसे ज्यादा बुरा तो उस बात का लगा जब दादी कह रही थी कि मुझे तो यही डर है कि फिर न बेटी ही पैदाकर दे। फिर भी जानवी ने यह बात अपनी मां रश्मि को नहीं बताई।वह अंदर ही अंदर इस बात को ढकेलती रही और यही सोचती रही कि कभी उसका समय आयेगा तो वह जवाब जरूर देगी। जब वह पानी लेकर चलने लगी तभी दादी ने आवाज लगाई ये छोरी (जानवी)तेरा बाप कहां है?सुबह से दिखा नहीं वरना वो तो पांच बजे से ही घुड-घुड़ करने लगता है।
जानवी ने डबडबाई आंखों से कहा,”दादी जी पापा गये है दाईं को बुलाने , दादी प्लीज़ आप भी चलकर एक बार मां को देख लीजिए वह दर्द से कराहते हुए काम निपटा रही है। मैं नहीं जाऊंगी जब तेरा बाप गया ही है दाईं को बुलाने तो वह खुद ही आकर देख लेगी ।जा तू भी उसी की साड़ी में घुस जा । पता नहीं तेरी मां———। और मुंह बिचकाते हुए चली गई। जानवी घर आकर देखा कि उसकी मां का दर्द और बढ़ गया वह जाकर बिस्तर पर लेट गई,इतने में दाईं भी आ गई। रश्मि ने सारी चीजों का प्रबन्ध पहले से ही कर (तोलिया , कपड़े गर्म पानी )रखा था। थोड़ी हीदेर में रश्मि ने एक सुंदर सी कन्या को जन्म दिया । अमित और जानवी ने उसे बहुत प्यार किया जानवी तो उससे चिपक कर बैठ गई दादी से रहा नहीं गया वह पूछने आई (महज ये जानने की आखिर सिर तो बेटी नहीं.(महज ये जानने कि आखिर फिर तो बेटी नहीं हुई) क्या हुआ? अमित के बोलने से पहले ही जानवी बोल पडी मेरे एक और बहन हुई है, और पता है दादी मुझसे भी ज्यादा सुंदर अब हम दोनों बड़े होकर खूब काम करेंगे। जानवी बोले ही जा रही थी लेकिन दादी को कोई भी बात पसंद नहीं आई अंदर ही अंदर जलकर राख का ढेर बने जा रही थी जानवी कह भी तो इसलिए रही थी कि दादी को बुरा लगे।
क्योंकि उसे पता है कि दादी को अच्छा नहीं लगेगा और उसने उस दिन सुना भी तो——। बेटी पैदा करने के सिवा और कर ही क्या सकती है पता नहीं हमारे घर कहां से आ गई वही रीता को देखो उसके दो- दो बेटे हैं दादी उसी दिन से रश्मि की जिठानी रीता के बेटों को लेकर रश्मि को ताने सुनाने लगी। दिन सरकते गए और रश्मि की बेटियां बड़ी हो गई एक तो पढ़ लिखकर कलेक्टर बन गई, दूसरी इनकम टैक्स विभाग में काम करने लगी। इधर रीता के दोनों बेटे भी बड़े हो चुके लेकिन वे सिर्फ उम्र से बड़े ,काम से नहीं। एक तो दवाई की दुकान में काम करने लगा दूसरे को शराब और चोरी की लत लग गई एक दिन उसने किसी बैंक की एटीएम पर हाथ मार दिया लेकिन वो पकड़ा नहीं गया कई दिनों तक पुलिस तलाश करती रही। करीब दो-तीन दिन के बाद पता चला कि पड़ोस के गांव में किसी जमीदार के यहां चोरी हुई सामान तो सब ले गए ही लेकिन उनके घर में तीन लोगों की हत्या भी हो गई। पुलिस मौके पर पहुंची तहकीकात हुई उसमे रीता के बेटे (रश्मि की जेठानी का बेटा)का भी हाथ था। रश्मि की कलेक्टर बेटी उसी एरिया में तैनात थी आरोपी पकड़े गए रीता उसके पति आदित्य अपने बेटे को छुड़ाने के लिए वकील के पास गए वकील ने कहा पहले दस हजार जमा कर दीजिए फिर अपना काम शुरू करेंगे दोनों वापस घर आ गए और सोचने लगे पैसे तो है नहीं अब कैसे क्या हो? सुबह अखबार वाला आया तो उसने कहा अपने अमित की बेटी कलेक्टर बन गई है। अब दोनों सोचने लगे तभी आदित्य ने कहा मां को भेजना ही ठीक होगा मां आप अमित के घर चली जाओ तभी काम बन जाएगा। सुबह-सुबह जाना तभी जानवी (कलेक्टर)मिलेगी । मैं नहीं जाऊंगी किस मुंह से जाऊं जिंदगी भर तो उसकी बेटियों का तिरस्कार किया है कभी गोद में लेकर खिलाया भी नहीं।
आदित्य के बहुत कहने पर दादी गई पीछे -पीछे रीताऔर आदित्य भी। आओ -आओ मां (ये दोनों बाहर ही खड़े थे )। जानवी कहां है? जानवी बेटा देखो तो कौन आया है? पापा अभी समय नहीं है काम कर रही हूं जो भी है उसको इंतजार करने बोलो। बेटा आओ तो सही कहते हुए अमित जानवी के पास गया बेटा तुम्हारी दादी—। अच्छा वही दादी जो——। नहीं बेटा ऐसे नहीं बोलते चलो पापा आती हूं लेकिन हैं दया दिखाने नहीं इंसानियत के रिश्ते से। जानवी बाहर आई नमस्ते दादी कैसी हैं आप?अरे! तू इतनी बड़ी हो गई और ऊपर से नीचे तक देखने लगी।(जब से जानवी कलेक्टर बनी तो उसका परिवार गांव छोड़कर शहर आ गया)। अच्छा जानवी मेरी बच्ची तेरे ताऊ जी का बेटा जेल में बंद है । उसकी थोड़ी मदद कर देना और दादी की आंखों में आंसू आ गए थोड़ी देर चुप रही फिर बोली मेरी बच्ची तेरे ताउजी -ताईजी के पास पैसे नहीं है मेरे पास भी कहां से—। तू चाहेगी तो सब कर सकती है, दादी मैं सजा कम नहीं करवा सकती उसने गलत किया है सजा तो मिलेगी उसे। हां बस पैसे दे सकती हूं और अगर आप सब का मन हो तो मेरे यहां रह सकते हो आप सबको कोई तकलीफ नहीं होने दूंगी। दादी ने जानवी को सीने से लगाकर फफक- फफक कर रो पड़ी ,माफ कर दे मेरी बच्ची। नहीं दादी शायद आप बचपन में ऐसा नहीं करती तो हम लोग भी ताऊजी -ताई जी के बच्चों——। थोड़ी देर के लिए सब शांत थे दादी जानवी को गले से ऐसी चिपकाए हुए थी जैसे उन्हें कई वर्षों से सुकून न मिला हो और अब सुकून पाना चाह रही हो।