मेरी संसद (राष्ट्र मंदिर) यात्रा – अशोक कुमार गौतम | संस्मरण | यात्रावृत्तांत
मेरी संसद (राष्ट्र मंदिर) यात्रा – अशोक कुमार गौतम | संस्मरण | यात्रावृत्तांत
यात्राओं का सुखदायक आनंद हर किसी को भावविभोर कर देता है और रोचक यात्राएँ तो आजीवन मन में रची-बसी रहती हैं। भ्रमणशील यात्राओं से अनेक देशों, राज्यों, धर्मों, रीति-रिवाजों , सभ्यताओं, संस्कृतियों आदि की महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती हैं साथ ही यात्राएँ भौगोलिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, राजनीतिक आर्थिक रूप से अति महत्वपूर्ण होती हैं। अखण्ड भारत में एकता का संचार होने लगता है। जीवन का सबसे महत्वपूर्ण क्षण.. स्वच्छंद प्रवृत्तियों से लबरेज़, बनने बिगड़ने का समय, हरफनमौला जीवन विद्यार्थी की किशोरावस्था होती है। मैं युवराज दत्त स्नातकोत्तर महाविद्यालय लखीमपुर खीरी सत्र 2004-05 में शिक्षक-शिक्षा विभाग का विद्यार्थी था। मेरे गुरु प्रोफ़ेसर कर्ण सिंह कुशवाह, प्रोफेसर प्रह्लाद राम वर्मा, डॉ० विशाल द्विवेदी, डॉ० सत्यनाम थे। जिनका आशीर्वाद और सानिध्य हर कदम पर हमें मिलता रहता था। विभागाध्यक्ष डॉक्टर कर्ण सिंह कुशवाह से गुरु-शिष्य इतना गहरा सम्बन्ध हो गया था कि अक्सर शाम की चाय उन्हीं के यहाँ होती थी।
एक दिन हम कई सहपाठी गुरु जी के घर गए, तो उन्होंने शैक्षणिक भ्रमण का महत्व और पाठ्यक्रम से सम्बंध के विषय में बताना शुरू किया, मानो क्लास उनके घर मे ही चालू हो गयी। अंत मे निष्कर्ष निकाला गया कि यात्रा का उद्देश्य राजनीतिक और आध्यात्मिक दोनों तरह पूर्ण हो सके, क्योंकि धर्म और राजनीति का गहरा सम्बन्ध सनातन काल से चला आ रहा है। अगले दिन क्लास में कर्ण सिंह गुरु जी ने शैक्षिक भ्रमण की बात रखी। सभी सहपाठियों ने तालियों की गड़गड़ाहट से सहमति दी। उसी क्षण गोला गोकर्णनाथ, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली, खुर्जा, आगरा, मथुरा आदि जाने की रूपरेखा बन गयी। हम सभी ने अनुमानित धनराशि आपस में एकत्रित करनी शुरू की। लगभग 5 दिन में सभी साथियों की धनराशि गुरु जी के पास जमा हो गयी। मन में उत्साह बार बार हिंलोरे ले रहा था। कभी-कभी हम सब सशंकित भी हो जाते थे, क्योंकि डॉ० कर्ण सिंह जी कड़क थे। सभी सहपाठियों के लिए लग्ज़री बस, एवं गुरुजनों के लिए बुलेरो गाड़ी बुक की गई। हम लोगों ने दिनांक 19 फरवरी सन 2005, दिन शनिवार को सर्वप्रथम लखीमपुर जनपद में ही छोटी काशी नाम से विश्वविख्यात गोला गोकरन नाथ में भगवान शिव के दर्शन किया।
इस पावन भूमि का नाम व मंदिर की स्थापना के पीछे भगवान शिव और शिवभक्त लंकापति रावण की भक्ति व वरदान से जोड़कर देखा जाता है। वैसे तो लखीमपुर खीरी के ओयल कस्बा में बना मेढ़क मंदिर, देवकली में अद्भुत प्राकृतिक छटाओं के बीच बना शिव मंदिर, दुधवा नेशनल पार्क, शारदा बैराज, मैलानी का कई किलोमीटर तक फैला सागौन का जंगल आदि देखकर मन प्रफुल्लित हो जाता है।
गाज़ियाबाद के होटल में रात्रि विश्राम के बाद अगले दिन 20 फरवरी 2022 रविवार को सुबह वहीं पर कैलाश पर्वत की आकृति पर बना मोहन मंदिर का दर्शन करने के उपरांत दिल्ली की ओर कूच कर चुके थे। दिल्ली की चकाचौंध व भागमभाग करती जिंदगी, मेट्रो ट्रेन की सीटी के साथ सरपट स्पीड, श्यामलता लिए हुए यमुना की अविरल धारा, तो यमुना के दूसरी छोर पर मुगल बादशाह शाहजहाँ द्वारा निर्मित लालकिला के कई गुम्मद, फौलादी दीवारें आदि… सब दृश्य नेत्रों के सामने था। सभी का मन भारत की राजधानी और भारत का दिल दिल्ली की ओर खिंचा चला जा रहा था।
कुछ साथी बस की खिड़कियों से मेट्रो ट्रेन को अपलक देख रहे थे। हलांकि मेट्रो ट्रेन में मैं काफी पहले सफर कर चुका था। इसलिए मैं मेट्रो की टिकट, प्लेटफॉर्म पर प्रवेश-निकास, सामान व बैग की स्कैनिंग जाँच, स्वचालित सीढ़ियों आदि की जानकारी सभी को साझा कर रहा था। इस तरह 20 फरवरी रविवार व 21 फरवरी सोमवार 2005 को अमर ज्योति, इंडिया गेट, राज घाट, किसान घाट, कुतुबमीनार, लालकिला, लोटस टेम्पल आदि स्थानों की बारीकियों के साथ जानकारी एकत्रित करते हुए भ्रमण किया। सोमवार को राष्ट्रपति भवन जनता के लिए बंद रहता है, इसलिए 21 फरवरी को हम लोग राष्ट्रपति भवन (रायसीना हिल) नहीं देख पाए थे।
दिनाँक 22 फरवरी सन 2005, दिन मंगलवार ! गाज़ियाबाद की उसी होटल निकलने के बाद खाते-पीते, मौज-मस्ती के साथ सफर करते-करते भारत के हृदय स्थल संसद भवन के समीप पहुँच चुके थे। इस घड़ी का बेसब्री से सभी को इंतजार था। काफी दूर से ही संसद भवन की भव्यता सबको अपनी ओर प्रेमडोर से खींच रही थी। देश के कर्णधारों/जनप्रतिनिधियों का भारत के मतदाताओं द्वारा निर्वाचन, सुख सुविधाओं आदि के विषय में सोंचकर, अनेकों प्रश्न हमारे मन मे उठ रहे थे।
संसद के आसपास काफी सन्नाटा पसरा था, यदि आवाजें आती थी तो सिर्फ बूटों के कदम ताल की..।
लगभग 2 किलोमीटर पैदल चलने के बाद आ पहुंचे थे संसद भवन के मुख्य द्वार। वहाँ दूर से ही दिख रहे थे वॉचिंग टॉवर पर खड़े अत्याधुनिक आग्नेयास्त्रों से लैश भारत माँ के अनेक जाबांज़ वीर सपूत। बाउंड्री के चारों तरफ सुरक्षा व विद्युत करंट दौड़ाने के लिए मोटे तार लगे थे। सुरक्षा से जुड़े सीनियर अधिकारियों ने बाहर से ही पूँछतांछ करके संतुष्ट होने के बाद, हमारा सारा सामान, साथियों के कुछ कैमरे, व गिनती के दो चार मोबाइल आदि क्लार्क रूम में सुरक्षित व निःशुल्क रखवा कर स्वागत कक्ष में बैठने का आदेश दिया। अंदर से हरी झंडी मिलने के बाद अधिकारियों ने हम सभी को लंबी कतार बनाने को कहा। गुरु-शिष्य परम्परा का निर्वहन करते हुए सबसे आगे समस्त गुरुजन, उनके पीछे हम लोग। हम सभी की विभिन्न प्रकार से सघन जांच करने के बाद एक-एक कर संसद परिसर में प्रवेश कराया गया।
गोलाकार भव्य इमारत, मोटे, मजबूत, गोल, चिकने खंभे, जगह-जगह नक्काशी सबका मन मोह रही थी। यह सब देख हम ईश्वर को धन्यवाद दे रहे थे कि जिस पावन स्थल पर बड़े-बड़े उद्योगपति नहीं पहुँच पाते, वहाँ हम सब लोग विद्यार्थी जीवन में ही पहुँचकर एक साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े थे। सैकड़ों की संख्या में लाल और नीली फ्लेसर बत्ती लगी गाड़ियाँ खड़ी थी। हम सभी सहपाठियों, और गुरुजनों का दल लगभग 62 सदस्यीय था, जिनकी सुरक्षा और पथप्रदर्शन के लिए संबंधित अधिकारियों व सैनिकों का 6 सदस्यीय साथ चल रहा था। मुख्य परिसर में प्रवेश से पहले अधिकारियों ने हम सबको कुछ दिशा निर्देश दिया। तत्पश्चात सर्वप्रथम संसद के उस स्थान को दिखाया, जिसे देखकर हमारी आँखों में क्रोध की ज्वाला के साथ दुःख के आँसू टपक पड़े। उस स्थान पर अंदर जाने के लिए बड़ा सा दरवाजा, जिसके दाएँ व बाएँ ओर लगभग 5×5 फ़ीट के चौकोर खंभे।
इसी स्थान पर 13 दिसंबर सन 2001 को 5 आतंकवादियों ने संसद की कड़ी सुरक्षा व्यवस्था को तोड़ते हुए एम्बेसडर कार से परिसर के अंदर घुसकर ताबड़तोड़ गोलियाँ बरसानी शुरू कर दी थी। भारत के वीरों ने तत्काल मोर्चा संभाला। उस हमले में हमारे 9 सैनिक/सिपाही शहीद हुए थे और कुछ देर बाद पाँचों आतंकी ढेर हो गए थे। हमले के समय भारतरत्न स्व० अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार का शीतकालीन सत्र चल रहा था। लन्च टाइम होने के कारण अधिकतर सांसद परिसर से बाहर जा चुके थे। फिर भी श्री लालकृष्ण आडवाणी सहित लगभग 200 सांसद संसद के अंदर उपस्थित थे। आतंकियों की गोलियों के निशान उन खंभों में आज भी मौजूद हैं। परिसर के अंदर ही अलग-अलग स्थानों पर चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, सुखदेव, राजगुरु, डॉक्टर भीमराव अंबेडकर, डॉ० राजेंद्र प्रसाद, महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरु, वीर सावरकर आदि की भव्य और सुन्दर प्रतिमाएँ लगी हुई थी, मानो बोलने वाली हैं।
हमारा कारवां पहुँच चुका था लोकसभा (निम्न सदन) के अंदर। जहाँ देश के सांसद (लोकसभा सदस्य) भारत की दशा और दिशा तय करते हैं। वो कभी-कभी जनमानस को दिखाने के लिए तू-तू, मैं-मैं भी कर लेते हैं। अर्ध-चंद्राकार गोलाई में लगी हुई चमचमाती मेज-कुर्सियाँ, उनके मध्य में कुर्सी थी लोकसभा अध्यक्ष की। जब हम लोग 22 फरवरी 2005 को गए थे तो, उस समय डॉ० मनमोहन सिंह सरकार का शुरू होने वाला ग्रीष्मकालीन सत्र का संसद में रिहर्सल चल रहा था, इसलिए सुरक्षा अधिकारियों का आदेश पाकर लोकसभा का रिहर्सल देखने के लिए हम लोग दर्शक दीर्घा में लगी सुंदर कुर्सियों बैठ गए। उसी भवन का लाइव टेलीकास्ट हम अपने घरों में टेलीविजन के माध्यम से देखते और रेडियो के माध्यम से सुनते हैं। अंदर का कितना मनोरम दृश्य, जिसका वर्णन कर पाना आसान नहीं है।
लोकसभा घूमने के बाद हम लोग पहुँच चुके थे राज्यसभा। राज्य सभा अर्थात उच्च सदन तो लोकसभा से भी मनोरम है। भारत के किसी भी कोने में पंखें छत से लटकते हुए मिलेंगे। परंतु आम स्थानों के विपरीत राज्यसभा हाल में मजबूत सुनहरे रंग की गोल अनगिनत पाइप फर्श में जड़ी हुई मजबूती के साथ खड़ी हैं, जिनके ऊपरी छोर पर पंखे लगे हैं। जिन्हें देख कर ऐसा लग रहा था, मानो हेलीकॉप्टर के पंखे हैं। फरवरी में शीत ऋतु होने के कारण पंखे तो बंद, फिर भी देखने में बहुत आकर्षक थे। अर्ध-गोलाई में लगी सुंदर मेज कुर्सियाँ व सभी कुर्सियों के सामने छोटे-छोटे पतले माइक मेज से जड़े थे, जिससे इन्हें कोई उठा न सके। मध्य में राज्यसभा के सभापति, उप राष्ट्रपति की सिंहासन रूपी विशाल कुर्सी लगी है। बड़े-बड़े हाई क्वालिटी के कैमरे व टेलीवीजन लगे हैं, जिनके माध्यम से लाइव प्रसारण जनमानस के लिए किया जाता है। लोकसभा की ही तरह राज्यसभा हाल की दर्शक दीर्घा में लगभग 25 मिनट तक हम लोग बैठकर कुछ सांसदों की वार्ताएं रिहर्सल रूप में सुन रहे थे।
अब हमारा कारवाँ पहुँच चुका था संयुक्त सदन। यहाँ भारत के सभी अधिनियम पास होकर संवैधानिक रूप ले लेते हैं। इस सदन की अध्यक्षता महामहिम राष्ट्रपति महोदय करते हैं। यहाँ लोकसभा व राज्यसभा, दोनों सदनों के मनोनीत व निर्वाचित सांसद सदस्य बैठते हैं। इस विशालकाय भवन की शोभा अद्भुत व अकल्पनीय थी। सदन के चारों तरफ भित्तियों पर अखंड भारत के महान क्रांतिकारियों, साहित्यकारों, महापुरुषों, भिन्न-भिन्न क्षेत्रों की जानी-मानी हस्तियों आदि के छायाचित्र लगे हुए थे। उसी हाल में बैठकर सुरक्षा अधिकारियों ने हमें संसद सत्र की शुरुआत, सत्र समापन, विधेयक, चर्चाएँ, प्रश्नकाल आदि के विषय में विस्तृत जानकारी प्रदान की।
दोपहर ढल गई थी। हल्की धूप निकल चुकी थी, जो जाड़ा को परास्त करने के लिए नाकाफी थी, फिर भी रगों में देशप्रेम के लिए रक्त उबाल मार रहा है। बीच-बीच में हम लोग जय हिंद, वंदे मातरम का जयघोष कर रहे थे, तो सुरक्षा अधिकारी शान्ति बनाये रखने की अपील करते-करते डाँटने भी लगते थे।
अब हम भूख से भी व्याकुल हो रहे थे। इसलिए अंत में आ चुके थे संसद भवन की कैंटीन। यहॉं की विशेषताओं के विषय में आप जानते ही हैं..। कैंटीन में साफ़-सफाई इतनी ज्यादा थी, कि मानो बिस्तर न होने पर फर्श पर ही लेट सकते हैं। वेटर भी देखने में किसी अधिकारी से कम नहीं लग रहे थे। वहाँ रंग-बिरंगी झालर-झूमर की भव्य सजावट सबका मन मोहित कर रही थी। भारत के सभी राज्यों के प्रसिद्ध व्यंजन स्वादिष्ट नाश्ता/भोजन के रूप में काउंटर पर सजे थे। सबने कुछ न कुछ हल्का-फुल्का खाया, मैंने भी सेब व अनार का जूस पिया था। सभी ने कैंटीन में ही कुछ देर आराम करने के बाद थोड़ा-थोड़ा सादा भोजन ग्रहण किया, क्योंकि संसद भवन से प्रस्थान करते ही आगरा व मथुरा को प्रस्थान करने के लिए हमारे गुरु डॉ० कर्ण सिंह जी का आदेश प्राप्त हो चुका था। भोजन करने के बाद हमने अनुमान लगाया कि हम सब लगभग 4 से 5 घंटा संसद भवन के अंदर भ्रमण कर चुके हैं।
अब हम उदास मन के साथ लौटकर पुनः स्वागत कक्ष और क्लार्क रूम के समीप आ चुके थे। क्लार्क रूम निःशब्द होकर संसद भवन छोड़ने का मूक इशारा कर रहा था। हमारे गुरुजनों और हम सभी सहपाठियों ने सुरक्षाकर्मियों और अधिकारियों को हृदय से धन्यवाद दिया। सभी प्रशासनिक अधिकारियों के व्यक्तित्व और कार्यशैली, देशप्रेम की भूरी भूरी प्रशंसा करते हुए हम अपनी-अपनी जेब में रखें टोकन खोज रहे थे। जिससे सभी सहपाठी अपना अपना सामान प्राप्त कर सकें।
संसद भवन से निकलने के बाद पुनः बार-बार पीछे मुड़कर विशालकाय इमारत को देख रहे थे। तभी पश्चिम दिशा की ओर आकाश में धुन्ध के बीच सूर्य की हल्की लालिमा दिखाई पड़ी, जो सूर्यास्त का संकेत कर रही थी। अब हम लोग पूर्व निर्धारित स्थल पर खड़ी बोलेरो गाड़ी में गुरुजन और लग्ज़री बस में हम सब बैठकर संसद, लालकिला, इंडिया गेट, कुतुबमीनार आदि की बातें आपस में साझा करते हुए पेठानगरी, ताजनगरी, प्रेमनगरी आगरा, श्री कृष्ण की नगरी मथुरा वृन्दावन आदि के लिए प्रस्थान कर चुके थे। ब्रज मण्डल 84 कोस (252 किलोमीटर) फैला है। हम सबने अगले 2 दिवस में लगभग सम्पूर्ण ब्रज मंडल का भ्रमण किया।
वैसे तो मैंने भारत के 16 राज्यों का भ्रमण किया, किंतु सर्वश्री अनूप शर्मा, मनीष शर्मा, कृष्ण मुरारी पाठक, संजय कुमार, अतुल पाण्डेय, कौशलेंद्र सिंह, आफ़ताब आलम, रणंजय सिंह, बालेंदु भूषण वर्मा, सुधांशू स्वरूप, सच्चिदानंद, अनिल रावत, दिग्विजय नारायण, विकास उत्तम पटेल, राजीव कुमार, रमाकान्त द्विवेदी, विनय मिश्र, विनय कुमार सिंह, वीरेंद्र कुमार आदि घनिष्ठ सहपाठियों के साथ भ्रमण करने का जो सुखमय आनन्द मिला, वैसा आनंद कहीं अन्यत्र भ्रमण में न मिला।
असिस्टेंट प्रोफेसर, साहित्यकार
वार्ड नं 10, शिवा जी नगर
रायबरेली उ०प्र०
मो० 9415951459