कालजयी तस्वीर / सत्यम शर्मा

‘हिन्दी रचनाकार’ और ‘कविता घर’ के समामेलन और एकीकरण में करायी गयी ‘रेलवे स्टेशन की कुर्सी लेखन प्रतियोगिता’ में आपका भाग लेना सराहनीय है और दोनों साहित्यिक परिवार की तरफ से आपको हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं.

 कालजयी तस्वीर

आज भगतराम को एक प्रतिष्ठित अखबार का दफ्तर जॉइन किये 3 ही दिन हुए थे कि विश्व में फैली महामारी की वजह से उसे अपने आदर्श फ़ोटो जर्नलिस्ट के साथ शहर छोड़ रहे मज़दूरों पर रिपोर्टिंग करने भेज दिया गया था। उन्हें बताया गया कि वो मज़दूर राज्य छोड़कर जा रहे थे पर दूसरे राज्य की तरफ से अभी अनुमति नहीं मिली। अतः पर्याप्त चैकअप किये बिना कहीं भेजना सरकार के लिए खतरे से खाली नही था। भगतराम बहुत खुश था क्योंकि उसे ढेर सारी चीजें सीखने को मिलनी जो थीं। आज वो फ़ोटोग्राफी का हर एक फ़न सीखने की कोशिश करने वाला था, जो उसे साथी जर्नलिस्ट प्रकाश की तरह पुरस्कार और पहचान दिला दे। गाड़ी सड़क पर अपनी रफ्तार में थी और उससे भी तेज़ थी भगत के रोमांच की रफ्तार। गाड़ी में बैठे-बैठे प्रकाश ने कहा,”आज तुम देखना और सीखना, कैमरे पर फ़ोटो उतारने की बारीकियां।”

दोनों वहां पहुंच कर देखते हैं उस जगह का माहौल एक शरणार्थी शिविर की तरह लग रहा है। चारों ओर छोटे बच्चे बिलख रहे हैं। पर उनकी मरियल सी आवाज़ें कुत्तों के क्रंदन के नीचे दब जा रही हैं। 

“देख रहे हो, ये नज़ारे वरदान साबित हो सकते हैं तुम्हारे कैरियर के लिए,बस देखने भर की नजर चाहिए”, प्रकाश ने गर्व भरी मुस्कान बिखेरते हुए कहा। 

“किसी से बात मत करना वरना हाथ कांपने लगेंगे, ये कैमरे को होल्ड करने में दिक्कत करेगा। फ़ोटो धुंधला जाएगी।” 

प्रकाश आगे चलता हुआ इधर उधर कुछ तलाश रहा था। उसके चेहरे पर मुस्कान दौड़ गयी मानो जो चाहता था वो मिल गया हो।

“इधर आओ जल्दी, अभी इस बूढ़े के घरवालों के जो आंसू गिर रहे हैं, जैसे ही ये पलकों की कोर से छलकें, इनका एक क्लोज़ शॉट ले लेना। वरना इन्हें फिर रुलाना कठिन काम है। भूखे हैं तो आंसूओं का भरोसा नही कब सूख जाएं।”

भगतराम का कलेजा कांप गया,पास ही एक बूढ़े आदमी की लाश पड़ी थी। जिसके आस पास कुछ अधनंगी स्त्रियां थी, चीथड़ों में लिपटे कुछ बच्चे और एक दो आदमी। बच्चे सहमे सहमे देख रहे थे। स्त्रियों की हिचकियाँ बंध रही थी। अब उनकी आवाज़ भी नही निकल रही थी। 

“माइक थोड़ा पास रखो उनके ताकि सिसकियों की आवाज सुनाई दे, साउंड इफ़ेक्ट होना कितना जरूरी है। इससे वीडियो में जान आ जाती है। कोशिश करो कि नेचुरल साउंड आये वरना कंप्यूटर से इफ़ेक्ट डालने पर उतना असर नहीं रहता।” प्रकाश, भगतराम को समझाते हुए बोला।

भगतराम ने उसके कई एंगल से शॉट लिए और एक शॉर्ट वीडियो क्लिप बनाई।

अब तक उनके हाथों में कैमरा और साथ में एक बड़ा सा बैग देखकर उनके आस पास एक भीड़ सी लग गयी। 

“देखो भगत! जब भी कोई इफेक्टिव फ़ोटो लेनी हो तो बच्चों से बेहतर कोई ऑब्जेक्ट नहीं हो सकता। इन्हें समझ आये कि हम खाना बांटने नहीं आये, उससे पहले ही 7-8 शॉट ले लो। इस गोद मे बच्चे वाली औरत की फ़ोटो पोर्ट्रेट मोड सेट कर के लेना। बस फोकस इसी पर रहे, समझे!” 

वहाँ के कुछ फ़ोटो और क्लिक करने के बाद दोनों आगे बढ़ते हैं। “भगतराम तुम कहते थे ना कुत्ते की पूंछ कभी सीधी नही हो सकती, वो कुत्ता देखो, कितनी सीधी पूंछ है उसकी!”

“पर वो इतना मरियल क्यों है? किसी अच्छे घर के कुत्ते की पूंछ मैंने अब तक सीधी नहीं देखी है सर”। भगत बोला।

“अबे यार तुम दो चार ऐसी वैसी जगह घूम लोगे न फिर देखकर ही समझ जाओगे। भगत जी भूख अच्छे अच्छे कुत्तों की पूंछ सीधी कर देती है। वैसे ये कुत्ता थोड़ा हृष्ट पुष्ट सा होता तो कितना क्यूट लगता ना…हाहाहा।” प्रकाश ने भगत के भोलेपन पर ठहाके मारते हुए कहा। 

“अच्छा अब ऐसा करो इस क्यूट कुत्ते और इस बच्चे की एक फ्रेम में फ़ोटो लो। एक बच्चा और होता तो बेहतर था। ये फोटोग्राफी का ऑड रूल है। धीरे धीरे सब सीख जाओगे।”

तभी एक औरत थके मांदे कदमों से उनकी ओर आयी। “साहब!इसकी फ़ोटो ले लो,बदले में बस कुछ खाने को दे देना। कल से मैं भी भूखी ही हूँ । पैदल चलते चलते तक गए हैं। आज तो स्तनों में दूध भी नहीं उतर रहा। इसकी फ़ोटो खेंच लो साब”! महिला गिड़गिड़ाई।

“इसे मेरे टिफ़िन में से एक रोटी लाकर दे दो” प्रकाश ने भगत से कहा।

“और तुम इसे यहां कुत्ते के बगल में खड़ा कर दो ताकि हम अपना काम कर सकें” प्रकाश ने उस औरत से कहा ,”और भगत राम कैमरा मुझे दो। ये फोटो अबकी बार मैं किसी इंटरनेशनल फोटोग्राफी कॉन्टेस्ट के लिए भेजूंगा। पिछली बार वो हरामी श्रीवास्तव सड़क पे धूप से बेहोश हुए एक मजदूर की फ़ोटो खींचकर इनाम छीन ले गया मुझसे। पर ये बच्चा तो ठीक से खड़ा भी नहीं हो पा रहा है,कितना लड़खड़ा रहा है। इसके तो पैरों में भी सूजन है। ऐसा करो वहीं लिटा दो इसे और अब देखना क्या कमाल का शॉट लेता हूँ।”

 फ़ोटो ली जाती है और प्रकाश के मनमाफिक ही आती है। तभी भगत रोटी ले आता है और उस औरत को देने लगता है।

“ये लो तुम्हारा इनाम!”प्रकाश अपने पीले पड़ चुके दांत चिरयाते हुए बोला। 

“अरे वापस दो ये रोटी, एक आईडिया आया है। कितना भुलक्कड़ हूँ यार। इतने अच्छे अच्छे आईडिया हमेशा देर से ही क्यों आते हैं मुझे,” प्रकाश खुद पर अफसोस जताते हुए बोला। 

फिर प्रकाश ने उस औरत से कहा, “देखो!अगर ये बच्चा थोड़ा सा मुस्कुरा दे तुम्हारी गोदी में तो समझो दुनिया में छा जाएगी ये फोटो। दुख में भी मुस्कान की एक अलग ही कहानी कहेगी। लोगों को सकारात्मकता सिखाएगी, देखना तुम। अब इसे गोद मे लो और ये मुस्कुरा क्यों नहीं रहा।” 

ऐसा करो गाड़ी में एक चॉकलेट रखी है वो लेकर आओ।” चॉकलेट आती है । बच्चा उसे देखकर हल्की सी कूंक देता है। 

“सर पता ही नहीं चल रहा ये हंस रहा है या रो रहा है, आंसू बहते तो पहचानना थोड़ा आसान हो जाता।”भगत आश्चर्य से बोला। 

“बिना आंसुओं के रोना भी हंसने जैसे ही लगता है यार फिर फ़ोटो में इतना पता ही कहाँ चलता है। ‘मोनालिसा’ पेंटिंग देखी तुमने। रहस्य में भी सुंदरता होती है। यही तो मेरी सफलता का राज है भगत बाबू।” प्रकाश ने गर्वोन्मत्त मुस्कुराहट बिखेरी। 

फ़ोटो ली गयी। प्रकाश फ़ोटो देखकर लगभग उछल ही पड़ा। चोकलेट वापस गाड़ी में रखी गयी आखिर वो उसके साले ने फ्रांस से उसके बच्चों के लिए भेजी थी। रोटी मां को दे दी गयी। बच्चा रोटी पर टूट पड़ा। शायद उसकी भूख, रोटी के आकार से कहीं ज्यादा बड़ी थी। 

अब वो निकल पड़े। औरत, बच्चे ,कुत्ते, बूढ़े की लाश सब कुछ तो क्लिक कर लिया गया था। 

आगे चलने पर देखा कुछ मजदूर और औरतें सुस्ता रहीं थीं। पैरों में पड़े छाले उनके द्वारा नापी गयी दूरियों की खबर दे रहे थे। 

“यहां कुछ खास नहीं दिखाने को। भगत मियां हर एक प्रोफेशन आज एक मार्केटिंग स्किल्स का ही जोड़ है। कोई अपने प्रोडक्ट बेच रहा है। नेता लोग सहानुभूति बेच रहे हैं, कवि कविता के जरिये गम्भीर सामाजिक मुद्दे, न्यूज़ वाले नफरत और हम गरीबी,लाचारी। धंधे का उसूल है भाई क्या करें, बेचना पड़ता है।” 

तभी उनकी नज़र एक पेड़ के नीचे बड़ी सी पोटली पर पड़ी।   पास में ही कुछ मजदूर स्टोव पर शायद खाना बना रहे थे। बदबू की एक लहर सी दौड़ रही थी। प्रकाश और भगतराम ने नाक जोर से भींच ली। पूछने पर पता चला कि रास्ते में सड़क पर एक ट्रक उनके ही गांव के एक साथी को कुचल गया था। पोटली में उसी की लाश के टुकड़े हैं। जिसे बड़ी मुश्किल से  दाह संस्कार के लिए अपने औजारों से कुरेदकर ले आये हैं। ताकि उसका ढाई साल का बेटा उसे गांव में मुखाग्नि दे सके।

प्रकाश बोला,”उफ़्फ़!ये तो बहुत बुरा हुआ। अभी दुनिया मे जितनी भी फ़ोटो ली गयी हैं उनमें आदमी या तो जिंदा है या मुर्दा। कभी देखी है जीवन से मौत की और यात्रा करते किसी आदमी की कोई फ़ोटो। काश! हम अगर वहां होते तो कंटीन्यूअस शॉट क्लिक करके फ़ोटो को अमर बना देते। बिफोर एंड आफ्टर वाला हैशटैग लगाते।

ख़ैर! अब चलने का वक़्त भी हो गया है, एडिटर को रिपोर्ट देकर घर जल्दी जाना है। आज बीवी ने कोई इटालियन डिश बनाने की ख्वाईश जाहिर की है भई। हाहाहा! “

दोनों वापस लौटने लगते हैं। रास्ते में एक दृश्य देखकर ठिठककर खड़े हो जाते हैं। वो औरत जिसके बच्चे की,कुत्ते के साथ वाली फ़ोटो ली गयी थी, वो औरत अब जमीन पर बेजान पड़ी थी। उसके कमर के ऊपरी हिस्से से साड़ी हटी हुई पड़ी है। वो बच्चा उसके ब्लाउज के बाहर से ही स्तन निचोड़कर दूध पीने की नाकाम कोशिश कर रहा है। कुत्ता हल्की आवाज में कभी भौकता है , कभी मुँह ऊपर कर कूंकता है तो बीच बीच में कभी बच्चे का पैर चाट लेता है। अब वहां कुल 5 लाशें हैं, एक पड़ी है बाकी 4 खड़ी हैं। एक भगत की सूरत में मानवता की लाश, एक प्रकाश की सूरत लिए उम्मीद की लाश,एक अदृश्य लाश जो जिंदा होने की अनुभूति देती है, सरकार की है और एक तगड़ी सी लाश जो अब सड़ने से गन्धा रही है,वो हमारे समाज की है। संवेदनशीलता ऊपर से इन सबको देखकर टेंसुए बहा रही है।

कहानी मर जाने तक जारी है…

       – सत्यम शर्मा