जिम्मेदारी | रत्ना सिंह
जिम्मेदारी | रत्ना सिंह
अभी कुछ दिनों पहले ही मैं अपनी मरीज डॉक्टर सुरभि अग्रवाल के घर अपनी मां को मिलवाने ले गयी। डाक्टर सुरभि मुम्बई के एक मल्टीनेशनल अस्पताल में सर्जन थी। दिल्ली अक्सर आया करती। उन्होंने बताया कि दिल्ली से उनकी बहुत सी यादें जुड़ी हुई हैं। आखिर उनका पालन- पोषण दिल्ली में ही हुआ यही से उन्होंने अपनी बारहवीं तक पढ़ाई पूरी की आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने दिल्ली छोड़ा।
हाल ही के दिनों में वे दिल्ली आयीं और दुर्भाग्यवश एक काली रात ने उन्हें हार्ट अटैक की बीमारी के मुंह में झोंका और फिर क्या अस्पताल के आई सी यू में पहुंच गयी। वहां पर सर्जरी हुई और ठीक होने लगी। आई सी यू से जब उन्हें कमरे में सिफ्ट किया गया तो उनकी देखभाल की जिम्मेदारी मुझे सौंपी गई। जितने डाक्टर सुरभि अस्पताल में रहीं उतने दिन मैने पूरी ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारी निभाई।
जब वे घर जाने लगी तो भी मुझे जिम्मेदारी सौंपते हुए अस्पताल में बात की कि कामिनी घर पर भी मेरी देखभाल करेगी।अगले दिन मैं डाक्टर सुरभि के घर जाने लगी। कई दिनों के बाद मैंने उनसे पूछा कि आपके घर में कोई और नहीं है। हैं बेटा जो अस्पताल में एक लड़का आता रहता था वो बेटा है पति दो साल पहले छोड़कर चले गए। बहू और पोते पोतियों को देखें बरसों गुजर गये।
अच्छा छोटा सा उत्तर देकर मैं भी चुप हो गई।तभी डाक्टर सुरभि ने दुबारा पूछा कामिनी बेटा आप यहां अकेले रहती हैं। जी मैडम मैंने जवाब दिया। लेकिन कल मेरी मम्मी यहां घूमने आ रही हैं। अच्छा यहां भी लाना उनको डाक्टर सुरभि ने कहा। अगले दिन जब मैं मम्मी आयी तो मैं उन्हें लेकर गयी। मम्मी और डाक्टर सुरभि आपस में बात कर रही थी उनकी बातों को ज्यादा नहीं सुन पायी क्योंकि मेरा ध्यान डाक्टर सुरभि की दवाई और डाइट पर टिका था ।
एक बात ने जरुर अपनी ओर ध्यान खींचा,जब डाक्टर सुरभि ने मम्मी से कहा कि कामिनी को अपने पास रखना चाहती हैं क्योंकि उनकी पोती की झलक इसमें दिखायी देती है और इसलिए कामिनी को देखकर उनको खुशी और सुकून मिलता है। मम्मी ने कहा कि इसी हालत में वो भी गुजर रही हैं बेटा विदेशी बाबू हो गया कभी नहीं आता , ये बेटी ही हमारी खुशी है ।
मैं कुछ क्षण के लिए आश्चर्यचकित हुई लेकिन इस आश्चर्य को दूर करती हुई एक संतोष देने वाली बात सुनाती पड़ी,जब डाक्टर सुरभि ने मम्मी से कहा कि हम दोनों ऐसा करते हैं कि दिल्ली को अपना बना लेते हैं। और फिर कुछ दिनों के बाद दिल्ली में दोनों और दोनों के बीच में मैं पूरे सुकून और शान्ति के साथ