janamdin ka uphar-रूबी शर्मा
जन्मदिन का उपहार
कल खुशी का जन्मदिन है लेकिन वह आज ही बहुत प्रसन्न और उत्साहित है ।उसकी खुशी का ठिकाना न था क्योंकि उसके जन्मदिन में हर वर्ष उसे बहुत अच्छे-अच्छे अनेक उपहार ,कपड़े व अन्य वस्तुएं मिलती थी। बुआ ,मम्मी-पापा, दादा- दादी, चाचा -चाची ,मौसी ,मामा सब उसके लिए कुछ न कुछ लाते थे। घर में खाने के लिए बहुत अच्छी-अच्छी चीजें बनती थी ।उस दिन सब उसे बहुत स्नेह करते थे ।
यह उसका दसवां जन्मदिन था। जन्मदिन के दिन वह सवेरे उठी और तैयार होकर मम्मी -पापा के साथ भगवान का आशीर्वाद पाने के लिए शिवजी के मंदिर गई ।
घर वापस आई तो देखा घर में मेहमान आने लगे थे। सब तरफ चहल पहल थी ।बुआ ,मौसी ,मामा धीरे-धीरे सब लोग आ रहे थे ।
शाम को बड़े ही धूमधाम से खुशी का जन्मदिन मनाया जा रहा था। सब ने उसे अनेक सुंदर-सुंदर उपहार दिए। उसके पापा और मम्मी ने भी सुंदर सा उपहार दिया जिसे देखकर वह बहुत खुश थी ।
तभी मम्मी ने कहा ,”बेटी !हम तुम्हें एक और उपहार देंगे जो तुम्हारे लिए तो बहुत अच्छा होगा ही साथ साथ ही साथ दूसरों के लिए भी हितकारी होगा ।
अच्छा मम्मी !आप मुझे कौन सा ऐसा उपहार देने वाली है जो दूसरों के लिए हितकारी होगा।
मम्मी खुशी को घर के पीछे वाले मैदान में ले गई ।वहां लगे पांच छोटे-छोटे आम के बच्चों को दिखाया और कहा ,”खुशी !ये वृक्ष ही मेरी तरफ से तुम्हारे लिए जन्मदिन का उपहार है। आज से अब तुम इनकी देखभाल करोगी। भविष्य में ये वृक्ष तुम्हारे लिए बहुत ही लाभदायक सिद्ध होंगे ।”
खुशी बोली,” मम्मी! सच में आपका यह उपहार बहुत ही अच्छा है। ऐसा उपहार कभी किसी ने न दिया होगा। मैं भी संकल्प करती हूं कि अब हर जन्मदिन पर मैं पांच वृक्ष जरूर लगाऊंगी ।उनकी देखभाल करूंगी।”
समय बीतने के साथ खुशी ने ऐसा ही किया ।अब वह बीस वर्ष की हो गई थी ।उसके खेत में बहुत से वृक्ष उसके लगाए हुए थे ।कुछ वर्षों में तो फल भी लगने लगे थे ।
इधर खुशी ने स्नातक की परीक्षा अच्छे अंकों से उत्तीर्ण ली थी। उसकी आगे की पढ़ाई रुकने वाली थी क्योंकि उसके पापा की अब अधिकतर तबीयत खराब रहती थी। कंपनी कार्य करने भी नहीं जा पा रहे थे ।
घर की आर्थिक स्थिति कमजोर हो रही थी ।इधर खुशी का नाम भी ला की मेरिट लिस्ट में आ गया था परंतु उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह उसके लिए फीस कहां से लाए गए। वह उदास थी ।उसकी मम्मी ने उसे उदास देखा तो पूछा ,”खुशी क्या बात है ।तुम इतना उदास क्यों हो। मुझे बताओ शायद मैं किसी भी प्रकार से तुम्हारी मदद कर सकूं।”
खुशी के चेहरे पर उदासी छा गई वह रुआसे स्वर में बोली ,”मम्मी !अब मेरी आगे की पढ़ाई कैसे होगी ।मेरे कैरियर का क्या होगा। पापा के पास तो पैसे नहीं है ।मैं ला की पढ़ाई कैसे कर पाऊंगी ।”
मम्मी ने समझाते हुए कहा ,”बेटी! चिंता न करो ।सब ठीक हो जाएगा और फिर तूने तो अपने आप को पहले से ही इतना मजबूत कर लिया है तो अब चिंता किस बात की।” खुशी मम्मी की बात समझ नहीं पाई ।उसने तुरंत पूछा,” मम्मी! मैंने किस प्रकार से अपने आप को मजबूत किया है।
आप क्या कह रही हो ।मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है।”
अरे तूने इतने वृक्ष लगाए हैं ।उनके फलों को बेचकर तुम्हारी पढ़ाई अच्छे से हो सकेगी ।पैसे कम हुए तो दो- चार वृक्ष बेंच देंगे । मम्मी की बात को सुनकर खुशी की खुशी का ठिकाना न था ।उसे अपना वकील बनने का सपना पूरा होता नजर आने लगा । समय की मांग के साथ उन लोगों ने वैसा ही किया ।वृक्ष एवं उनके फलों को बेचकर खुशी के पापा ने खुशी को ला करवा दिया ।कुछ ही दिनों में वह वकील बन गई ।अपनी मेहनत और बुद्धि के बल पर वह बहुत ही कम दिनों में श्रेष्ठ वकीलों की पंक्ति में आ गई ।
उसके घर की आर्थिक स्थिति में भी सुधार हो गया। पापा का उसने अच्छे डॉक्टर से इलाज करवाया। वह पूरी तरह स्वस्थ हो गए ।वह भी कंपनी में कार्य करने वापस जाने लगे । खुशी ने मम्मी से कहा ,”मम्मी! आज अपने घर में सब कुछ ठीक है तो आपकी वजह से ।मम्मी सच में आपके उपहार ने मेरा ही नहीं अपने पूरे परिवार का भविष्य बदल दिया।”