अनुतरित / रत्ना भदोरिया

दिल्ली से जयपुर जा रही बस अक्सर मेरे अस्पताल के सामने से निकलकर मेरे घर की तरफ जा रहे रास्ते से जाती। मैं हमेंशा उसी बस में चढ़ जाया करती सिटी बसों का इंतजार नहीं करती। अक्सर मेरी छुट्टी के समय वो आ ही जाती । आज भी वही हुआ ज्यों ही अस्पताल से निकली की लाल बत्ती के उस पार बस खड़ी थी मैं दौड़कर बस स्टैंड पर पहुंच गयी‌। बस चालक लगभग पहचाननें लगा था। बस रूकी और मैं ज्यों ही चढ़ी तो बस चालक ने मुस्कुराते हुए कहा -नमस्ते सिस्टर। क्योंकि सफ़ेद कपड़ों से साफ पता चलता था कि मैं पेशे से नर्स हूं।

मैंने भी हल्की सी मुस्कान के साथ – जी भइया नमस्ते बोल कन्डेक्टर से टिकट लेकर बैठ गई। सारी सीटें भरी हुई थी। अधिकतर सब अपने अपने फोन में लगे थे जो नहीं लगे थे वे या तो इधर उधर देख रहे थे या फिर उनके साथ कोई न कोई था तो उससे बातें कर रहे थे। मैं अकेली तो थी लेकिन फोन में बैट्री न होने की वजह से इधर उधर देख रही थी। तभी एक नवजवान युवक आकर सामने खड़े हो गए।

वेशभूषा से पढ़ा- लिखा और अच्छे घराने से लग रहा था। लेकिन नजरें काफी छोटी और लगता था कि इंसानियत भी बहुत ही छोटी थी। ऐसा मैं इसलिए कह रही हूं कि उसकी नजर बार -बार बस में बैठी लड़कियों की तरफ जा रही थी।हर लड़की की तरफ एक ही नज़र से घूर रहा था। मेरे सामने बैठी उस लड़की की तरफ देखने की तो हद ही हो गयी। हम सब पच्चीस के ऊपर के थे लेकिन वो तो अभी अट्ठारह -बीस की रही होगी। वो डर के मारे सीट में चिपकी जा रही थी। दुर्भाग्य की बात तो यह हैं कि वहां पर मौजूद सभी पुरुषों में कोई मुस्कुरा रहा था तो कोई बुदबुदा रहा था तो कोई आपस में कह रहा था कि इसका आशिक होगा तभी तो यूं देख रहा है।

एक बात और थी जिसको लेकर आजकल खूब धड़ल्ले से सुनाया जाता है कि छोटे कपड़े पहन रखे हैं इसलिए तो घूर रहा है। दुर्भाग्य की बात तो ये है कि जो औरतें अभी उसकी क्रुर नजरों का शिकार हुई थी वो भी उन्हीं पुरुषों में शामिल हो गयीं जैसे ही उस नवयुवक ने अपनी क्रुर नजर इस लड़की पर जमाई। मैंने पीछे से उसका कंधा दबाया तो एकदम से चौंक गयी। कुछ नहीं कुछ नहीं परेशान मत हो कहां तक जाओगी। उसने पीछे मुडकर कहा -बहुत दूर तक जाना है ‘,जयपुर ‘। अच्छा कहकर चुप हो गयी। मेरा भी स्टैंड आने वाला था समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं?लग नहीं रहा था कि ये घर तक सुरक्षित पहुंच जायेगी।

मैंने उस लड़की से पूछा कि सुनों रात काफी हो गयी है और अकेले ऐसे में जाना ठीक नहीं है,आज तुम हमारे घर रुक जाओ सुबह पांच बजे मैं तुमको बस पर बिठा दूंगी तब चली जाना। ठीक है दीदी शुक्रिया लेकिन मेरे घर पर एक बार आप बात कर लो वरना मेरे पापा -मम्मी ————-।

ठीक है घर चलकर बात करते हैं मैंने कहा। कुछ ही छड़ में हमारा घर आ गया हम दोनों उतर गये। उतरते -उतरते उस नवयुवक ने दो -चार फब्तियां कस ही दिया था लेकिन अब हम निडर थे। बातें करते हुए घर की तरफ बढ़ने लगे। स्टाप से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर था आटो के पच्चास रुपये लगते थे इसलिए पैदल ही आया जाया करती। आज भी पैदल ही चल पड़े।तनिक दूर चलने के बाद ऐसा लगा कि कोई पीछा कर रहा है फिर मैंने सोचा रोज ही तो आती हूं मेरा ही भ्रम होगा, आगे बढती गयी ।

कुछ छड़ बाद फिर लगा और ज्यों ही पीछे मुड़ी तो देखा वही नवयुवक दो लोगों के साथ चला आ रहा है,जब तक हम दोनों अपनी चाल तेज करते -करते तब तक वो सबके सब हमारे ऊपर कुत्ते की तरह झपट पड़े और फिर ——।जब होश आया तो जो देखा उसने मेरे शरीर को शून्य कर दिया था । मेरे साथ की वो लड़की मृत पड़ी थी और मैं खून से लथपथ। थोड़ी देर में पुलिस आ गयी थी उसके सवालों के जवाब भी दे दिया था। लेकिन उस लड़की के सवालों से अनुत्तरित थी और मन में बार बार यही आ रहा था कि ——-काश!