संस्मरण | हिंदी साहित्य | आशा शैली

संस्मरण | हिंदी साहित्य | आशा शैली

पिछले दिनों हिमाचल प्रदेश के चर्चित उपन्यासकार प्रोफेसर गंगाराम राजी का सद्य प्रकाशित ऐतिहासिक उपन्यास एक थी रानी खैरागढ़ी हाथ आया। उपन्यास था, वह भी एक प्रोफेसर का लिखा हुआ, तो रोचकता भी होनी ही चाहिए। सो, उठते-बैठते पढ़ डाला।
मण्डी रियासत की रानी रही है यह रानी खैरागढ़ी सो उपन्यास मण्डी रियासत की तत्कालीन व्यवस्था के बखिए अच्छी तरह उधेड़ता पाया गया। उपन्यास का हर पात्र कमोबेश मंडयाली भाषा का प्रयोग करता दिखाई देता है जो स्वाभाविक भी है और आवश्यक भी।
रानी खैरागढ़ी हिमाचल के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में यदि झांसी की लक्ष्मी बाई नहीं तो उससे कम भी नहीं रहीं पर इनके बारे जानकारी बहुत कम उपलब्ध है क्योंकि इनकी फाइलें ब्रिटश सरकार ने जला दी हैं।
इनका नाम ललिता था किन्तु खैरागढ़ से सम्बंध होने के कारण ये रानी खैरागढ़ी पुकारी जाने लगीं। प्राप्त जानकारी के अनुसार रानी ने क्रान्तिकारियों की हर तरह से सहायता की है। रानी घोड़े पर सवार होकर रियासत के चक्कर लगाती थी। यह मण्डी रियासत के राजा भवानीसेन की पत्नी थीं अतः भवानीसेन की विवाह पूर्व घटनायें उपन्यास में बहुतायत में होना स्वाभाविक है।
अच्छी बात यह है कि इस उपन्यास में न तो घटनाक्रम के साथ और न ऐतिहासिक तथ्यों के साथ छेड़छाड़ की गई है। बल्कि उन सब को तिथि सहित ज्यों का त्यों रखा गया है। सत्ता हथियाने के लिए क्या-क्या छल प्रपंच महलों में चलते हैं उन सब को भी उपन्यास में दर्शाया गया है परन्तु उपन्यास का अधिकांश भाग रियासत के भ्रष्ट अधिकारियों, जनता एवं अन्य विद्रोही क्रान्तिकारियों की गतिविधियों से भरा है। रानी के बारे में कम उल्लेख हुआ है, जबकि और अधिक उल्लेख रानी का हो सकता था। हालांकि यह सब आवश्यक भी था जो रानी के व्यक्तित्व का परिचय देता है, फ़िर भी रानी के व्यक्तित्व को और अधिक स्थान मिलना चाहिए था।
प्रोफेसर गंगाराम राजी ने उपन्यास में रानी को मैदानी भाग की कन्या बताया है जबकि मेरे विचार से यह सही नहीं है।
वर्तमान उत्तराखण्ड के गढ़वाल मण्डल में खैरागढ़ पहाड़ी रियासत रही है। रानी खैरागढ़ी के परिचय में उनकी एक पूर्वजा की चर्चा आती है जिन्होंने बहुत कम आयु में बहुत से युद्ध जीते थे।
इतिहास पर दृष्टिपात करें तो हमें पता चलता है कि हिमाचल के राजपरिवारों के गढ़वाली राजपरिवारों से सम्बंध रहे हैं। गुरु गोविंद सिंह जी के समय में राजा भीमचन्द के बेटे का विवाह गढ़वाल के राजा फतेहशाह की बेटी से हुआ था। इस तरह ईसवी सन् 1661 में गढ़वाल मण्डल की खैरागढ़ रियासत के सामन्त की बेटी तीलू या तिल्लोत्तमा एक वीर रमणी हुई हैं और इतिहास में अपना नाम उसी तरह लिखवाने में सफल हुई हैं, जिस प्रकार महारानी लक्ष्मी बाई ने अंग्रेज सरकार से दो दो हाथ करके लिखवाया था।
इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए रानी खैरागढ़ी का सम्बंध गढ़वाल के पहाड़ी क्षेत्र से होना अधिक उचित लगता है, मैदान से नहीं। इतना ही नहीं, इन पहाड़ी रियासतों में और भी वीरांगनाओं के नाम मिलते हैं जिनके शौर्य के सामने शत्रु पानी मांगते दिखाई देते थे। ऐसी ही एक गढ़वाली रानी कर्णावती हुई हैं जिन्होंने मुगल सैनिकों के नाक काटे थे, इसलिए उन्हें नाककाटी रानी कहा जाने लगा था।
कुल मिलाकर एक अच्छे प्रयास की सराहना की ही जानी चाहिए। सबसे अच्छी बात यह है कि प्रोफेसर राजी ने इतिहास को ज्यों का त्यों परोसने की पहल की है, इसके लिए वे बधाई के पात्र हैं।