साहित्य और चिकित्सा क्षेत्र का अनमोल रत्न : भगिनी रत्ना सिंह

गाँव के नाम से तो लगता है कि नदी, झील, पहाड़, पर्वत, झरनें आदि की अति विशिष्टता हिमालयी प्राकृति की गोद में रची बसी होगी, क्योंकि नाम ही ऐसा है- पहाड़पुर।
वास्तविकता को देखा जाय, तो इक्कीसवीं सदी में भी उस गाँव की समतल भूमि पर सामान्य यातायात की व्यवस्था व सुविधा नहीं है। व्यक्तिगत संसाधन ही आवागमन का सहारा हैं। सरकारी सुविधाओं से तो पहाड़पुर गाँव का दूर-दूर तक नाता नहीं है।

न जाने कितनी निरीह लड़कियों की पढ़ाई का सपना अधूरा रह गया। क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में पुराने खयालात के लोगों की मानसिकता वैसे भी लड़कियों की पढ़ाई एवं रोजगार को लेकर सकारात्मक नहीं रही है।
घर की दहलीज से कदम निकाल कर जब रत्ना ने गाँव की सरहदें लाँघकर लगभग 1 मील पैदल चलकर राष्ट्रीय राजमार्ग 24B पर आती थी, तब ऑटो टैक्सी का यातायात के रूप में उपयोग करते हुए उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए शहर की ओर रुख किया , तो न जाने गाँव वालों के कितने हास्य-व्यंग्य सहने पड़े। तत्कालीन परिस्थितियों में निश्चित रूप से रत्ना सिंह के अंदर संघर्ष वाहिनी के रूप में सिंह वाहिनी विराजमान हो गयी होंगी, क्योंकि उनके माता-पिता का सहयोग हर कदम पर मिलता रहा और आज भी मिल रहा है। उनका नाम रत्ना सिंह किसी रत्न से कम नहीं है।


डॉ० संतलाल, भाषा सलाहकार, पर्यावरण सचेतक रायबरेली कई बार मुझसे वरिष्ठ साहित्यकारों की चर्चा करते समय बताया करते हैं कि रत्ना सिंह कम उम्र में ही मन्नू भंडारी जी वरिष्ठ कथा लेखिका के सानिध्य में 4 वर्ष रही हैं। आदरणीया मन्नू भंडारी और रत्ना सिंह का साथ में कुछ छायाचित्र देखकर ऐसा लगता है मानो, दोनों माँ बेटी हैं। परन्तु दुर्भाग्य से मन्नू जी इस नश्वर संसार से विदा होकर अनंत में लीन हो गयी हैं।


रत्ना सिंह सशक्त लघुकथा लेखिका बन चुकी हैं। हो भी क्यों न..। अंतरराष्ट्रीय लेखिकाओं के साथ रहने वाला कोई भी आम मानव नहीं हो सकता। हर स्तर, हर कदम पर साहित्य की कल्पनाशीलता बनाने व लिखने की अद्भुत शक्ति माँ वीणावादिनी ने रत्ना सिंह को दी है।


एक दिन रत्ना द्वारा लिखित लघुकथा hindirachnakar.com के माध्यम से प्रकाशित हुई थी, जिसे मैंने फेसबुक पर पढ़कर कुछ पल के लिए आत्ममंथन और आत्मचिंतन किया। मुझ बेसबरे से रहा न गया, उसी लघुकथा को पुनः मैंने पढ़ा। उसके बाद मैंने टिप्पणी लिखा कि बहन रत्ना सिंह, उम्र में भले ही कम हो, किंतु आपका लेखन और शब्द चयन देखकर मुझे लगा रहा है, वास्तव में आप मन्नू भंडारी, ममता कालिया जैसी विदुषी साहित्यकारों के पदचिन्हों पर चल रही हो। बहुत आगे तक जाओगी। उनका भी उत्तर उस पावन रिश्तों की कड़ी को मजबूत करते हुए आया। उस दिन से दो अजनबियों को नया रिश्ता मिल गया। जो अखिल विश्व का सबसे पावन रिश्ता है- भइया बहन।


प्रकृति परिवर्तन कहें या दूषित खानपान या अनियमित दिनचर्या। मैं बीमार हो गया। बुखार भी थर्मामीटर में 102 ℃, तब रत्ना सिंह (स्टॉफ नर्स) अपोलो अस्पताल इंद्रप्रस्थ, नई दिल्ली से ही मोबाइल द्वारा मुझे औषधियों और कई जाँचों के विषय मे व्हाट्सएप के माध्यम से बताती रही। कुछ दिनों में ही मैं स्वस्थ हो गया। मुझे ऐसा लग रहा था कि वो सिर्फ नर्स ही नहीं, मानो वरिष्ठ चिकित्सक भी हैं।

बातों-बातों में रत्ना ने बताया कि नौकरी के साथ मेडिकल नर्सिंग की पढ़ाई कर रही हूँ, भविष्य में अपने विभाग से अनुमति लेकर पीएचडी भी करूँगी। तब एक पल के लिए मेरे मन मस्तिष्क में वो ग्रामीण परिवेश में पली बढ़ी लडक़ी और अंतरराष्ट्रीय स्तर के चिकित्सालय में नौकरी, निरन्तर शिक्षा ग्रहण करना, साथ ही ये उच्च स्तरीय विचारधारा। गर्व के साथ कह सकता हूँ कि आप महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत और पथप्रदर्शक के रूप में मील का पत्थर हो।


डॉ० संतलाल गुरुदेव ने कई बार मुझे बताया कि हंस पत्रिका में रत्ना के कई लेख प्रकाशित हो चुके हैं। इससे ही सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि हंस पत्रिका में छोटे मोटे साहित्यकारों के लेख प्रकाशित नहीं होते हैं।


एक दिवस मैंने कुछ चिकित्सीय कार्य हेतु रत्ना सिंह को कॉल लगाया, तो एक पल के लिए मुझे लगा कि ये 10-11 वर्षीय लड़की की पतली सी प्यारी आवाज क्यों आ रही है। शायद रांग नम्बर लग गया। कुछ देर तो अचंभित रहा, उसके बाद वार्ता करते-करते मेरी समझ मे आया कि पक्का ये ही रत्ना सिंह हैं। अब मैं तो खुले मंच से कह सकता हूँ कि रत्ना, आवाज से नन्हीं बालिका, उम्र में युवा उत्साह, अनुभवों व विचारों में अति वरिष्ठता की श्रेणी में स्थापित हो चुकी हैं।


अब तक उनसे प्रत्यक्ष मुलाकात नहीं हुई थी। होती भी क्यों ? लगभग 600 किलोमीटर का जो फाँसला। पर कहावत है कि जहाँ चाह, वहाँ राह…
परम् पिता परमेश्वर की कृपा और सन्तलाल जी के आशीर्वाद से उनसे मुलाकात साहित्यिक कार्यक्रम के दौरान हो गई। प्रथम मुलाकात में मुझे लग रहा है कि रत्ना सिंह के लिए सुंदर, सुशील, शालीन, धीर, वीर, गम्भीर, चिकित्सा और साहित्य पथ में परिपक्व … जैसे विशेषण भी कम पड़ जाएँगे। साहित्य तो सागर से भी गहरा है।
ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि आप अनेक बाधाओं को पार करते हुए निरन्तर प्रगतिपथ पर बढ़ती रहो। आपका भविष्य उज्ज्वल रहे, दीर्घायु हों। चिकित्सा विभाग में भी रहकर समाजसेवा करती रहो।
हर कदम पर आपके साथ, आपका भ्राता…

अशोक कुमार गौतम
असिस्टेंट प्रोफेसर
शिवा जी नगर, रायबरेली यूपी
मो० 9415951459