खुशबू | संस्मरण | रत्ना भदौरिया
खुशबू | संस्मरण | रत्ना भदौरिया
खुशबू आज भी आयी थी लेकिन आज की खुशबू में हवा ज्यादा थी इसलिए नाक के अंदर प्रवेश करते- करते गुम हो गयी । लेकिन मेरे दिमाग में पुरानी यादों को ताजा कर गयी थी। मेरे हिसाब से यादें पुरानी नहीं होती बस हम नयी यादों में इतना मशगूल हो जाते हैं कि पहले की यादें पुरानी लगने लगती हैं। हां तो अब उस याद पर आते हैं आज से लगभग दस पहले जब हम ज़िंदगी की आपाधापी से कोसों दूर खेलकूद की आपाधापी और त्योहार आते ही उसके उत्साह में व्यस्त रहते। ना कोई थकान होती ना कोई चिंता। आज तो खाने के हर कौर में यही चिंता रहती है की कहीं शुगर न बढ़ जाए या ब्लड प्रेशर बढ़ गया तो क्या होगा?अरे कुछ लोग कहते हैं कि ज्यादा तेल खाने से हार्ट की समस्या आ जाती है।
सब छोड़ो ये बात खूब याद रखो की वजन बढ़ जायेगा इसलिए लाइट खाना खाओ । मुझे ये बात थोड़ी कम जमती और त्योहार आते ही मेरा दिमाग घर में बन रहे पूड़ी,कचौड़ी, पुलाव ,पनीर , मिठाई और होली पर तेल में भुने पापड़ों की तो क्या बात ?जिसे आज के दौर में वजन ना बढ़ाने के लिए भूनकर खाया जाता है मैं तो तेल पापड़ के दौर में पतली थी भुने पापड़ों के दौर में खूब मोटी हो रही हूं पता नहीं क्यों? ये सवाल भी बराबर हिलोरें मारता रहता है। होली और नागपंचमी के त्योहार में हमारे यहां गुझिया बनाने का बड़ा रिवाज है। जोकि हर तबके के लोगों के यहां बनती है चाहे गरीब हो या अमीर।
अब जब अपनी यादों को ताजा कर ही हूं तो आप सबको एक मजेदार बात बताती हूं जब मैं करीब सात -आठ साल की थी तो होली के त्योहार में बनी गुझिया जिन्हें मांगने पर मम्मी एक दे देती और कहती बाद में खाना सब एक साथ नहीं। एक से भला होता नहीं,दूसरी तुरन्त मांगने पर मिलती नहीं थी। एक दिन मैंने और मेरे भाई बहन तीनों ने ज्यादा खाने की योजना बनाई। मम्मी की गुझिया अलमारी में रखी थी जोकि मेरे से ऊंचाई में बड़ी थी। तीनों मेज को सरका कर लें गये आलमारी तक और खूब गुझिया खायी कुछ पाकेट में भी रख ली।
दुर्भाग्य मम्मी खडी -खडी सब देख रही थी। कार्यक्रम खत्म होते ही सबसे पहले मुझे मार पड़ी इन शब्दों के साथ की चोरी घर से सीखते हैं खाना था तो बताया क्यों नहीं ? मम्मी के पिटाई के बाद धीरे-धीरे दिन बीतते गए और मैं नौकरी के सिलसिले में घर से बाहर आ गयी। अब तो अक्सर त्योहार पर बाहर ही रहती हूं। मम्मी फोन पर ही बता देती हैं क्या- क्या बनाया और मैं सुनकर ही पकवानों का आनंद लें लेती हूं। लेकिन गुझिया की बात सुनते ही बचपन की वो पिटाई जरुर याद आ जाती है।
मम्मी ने कल भी बता दिया था कि नागपंचमी का त्योहार है आज पकवान बता दिये मैं फोन से ही आनंद लें रही हूं। जो घर पर हैं वो सौभाग्यशाली हैं की उनकी खुश्बू बराबर नाक में जा रही होगी और देर तक थमी रहेगी । लेकिन जो मेरे जैसे घर के बाहर हैं उनको पकवानों की खुशबु आयी होगी लेकिन चाहे कुछ छड़ के लिए ही गुम हुई हो लेकिन हुई जरुर होगी। मैं तो इसी में खुश हूं कि ख़ुशबू आयी तो सही आप भी——— शुक्रिया।
रत्ना भदौरिया