ज़्यादा संघर्षशील है-डॉ. सम्पूर्णानंद मिश्र

डॉ. सम्पूर्णान्द मिश्र की कविता “ज़्यादा संघर्षशील है” ये सन्देश देती है मानव जीवन में किस तरह संघर्ष की पराकाष्ठा चरम पर है कैसे ईमानदार आदमी आज सबसे ज़्यादा संघर्षशील है मानवता बस नाम मात्र की रह गयी है लोकतंत्र की वारांगनाएं अपने ग्राहकों को लुभा रही हैं यह कैसा वक्त है यह देश गतिशील है या प्रगतिशील हैं वर्तमान प्रगतिशील युग में प्रजातीय भेदभाव राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक आदि क्षेत्रों में कानून के रूप में व व्यवहार में जातीय भेदभाव के रूप में विद्यमान है। प्रजातीय संघर्ष कहीं सरकारी नीतियों से पुष्ट है तो कहीं प्रच्छन्न रूप में, जिससे विभिन्न वर्गों के बीच विषमता पायी जाती है। राजनैतिक क्षेत्र में विश्व के किसी भी देख में प्रजातीय भेदभाव को मान्यता नहीं है परन्तु राष्ट्रों में वहां की नीतियों व दशाओं के कारण सभी लोगों का मत देने, सरकारी सेवा में प्रवेश पाने एवं सार्वजनिक पदों के लिए चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं है। आर्थिक क्षेत्र में प्रजातीय भेदभाव के परिणाम से कुछ विशेष प्रजाति के लोग कम वेतन पर मजदूर के रूप में सदैव उपलब्ध रहते हैं। प्रजातीय भेदभाव सार्वजनिक स्थल, स्वास्थ्य व चिकित्सा सम्बन्धी सुविधाओं, सामाजिक सुरक्षा व पारस्परिक सम्बन्धों में भी देखा जा सकता है। सांस्कृतिक क्षेत्र में जातीय भेदभाव जीवन स्तर की विभिन्नता से जन्म लेता है। वर्तमान समय में हर प्रजाति अपने को श्रेष्ठ व सुरक्षित बनाए रखना चाहती है इसलिए इस आधार के संघर्ष होते रहते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले संघर्षों का एक प्रमुख कारण यह भी है।

ज़्यादा संघर्षशील है*

 

यह कैसा वक्त है !

कि‌ बेइमानी फल रही है

कई‌ पांवों से चल रही है

ईमानदारी को उसने

लंगड़ा कर दिया है

उसके मुंह पर

जोरदार तमाचा जड़ दिया है

अब वह रिघुर- रिघुर

कर जी रही है

सही होते हुए भी

गरल पी रही है

यह कैसा वक्त है कि

छली आज सरेआम घूम रहे हैैं

लोकतंत्र की वीथिकाओं

में  लोग आज

उनको ही चूम रहे हैं

यह कैसा वक्त है कि

लोकतंत्र की वारांगनाएं

अपने ग्राहकों को लुभा रही हैं

बेझिझक अपना रेट बता रही हैं

यह कैसा वक्त है !

मानवता  बदनाम हो रही है

उसकी इज्जत नीलाम हो रही है

यह कैसा वक्त है!

यह देश गतिशील है

या प्रगतिशील है

लेकिन इतना जरूर है कि

ईमानदार आदमी

आज ‌सबसे ज़्यादा संघर्षशील है

यह कैसा वक्त है!

देश की आधी आबादी

क्रिया में है

आधी प्रतिक्रिया में है

बेइमानी फल रही है

कई पांवों से चल रही है

यह कैसा वक्त है कि

ईमानदार आदमी आज

सबसे ज़्यादा संघर्षशील है

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डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र

डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र

प्रयागराज फूलपुर