new year resolution in hindi/संकल्प- बाबा कल्पनेश

संकल्प

(new year resolution  in hindi)


new year resolution  in hindi: नूतन वर्ष अभी आया नहीं। किसी तरह का अच्छा संकल्प लेने में कोई एतराज नहीं।यह मेरा संकल्प ही है कि निज संस्कृति के दायरे में ही रह कर अपना जीवन जीना है।अब एक नया संकल्प और लेता हूँ कि जब तक तन में प्राण रहेगा स्वयं निज संस्कृति-संस्कार को वरीयता दूँगा अपने और इष्ट-मित्रों और नई पीढी को भी प्रेरित करता रहूँगा।
अपनी पहचान खोकर जीवन जीना तो अपने पूर्वजों की गरिमा पर पानी उड़ेलना होगा।जिसने अपनी पहचान को गिरवी रख दिया। युग युगांतर तक उसे धिक्कार ही मिलता रहेगा।हम अपनी स्वजातीय भावना को हेय दृष्टि से देखने लगे थे आज कोरोना काल में दूर से ही नमस्ते करने की परंपरा को पुनः वरीयता प्राप्त हुई। कुछ दूरी बनाकर साथ उठने-बैठने की परंपरा श्रेष्ठ साबित हुई।

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हमको अपने पास -पड़ोस से भी कुछ सीखना चाहिए। केवल दूसरे की मुखापेक्षिता किसी तरह श्रेष्ठ नहीं कही जा सकती।होली पर रंग- अबीर-गुलाल आदि खेलने की परंपरा कब शुरू हुई, यह तो ठीक-ठीक मैं नहीं कह सकता।पर कविताओं और होली के गीतों में भी यह गाया  जाता रहा है।पर आज जो गैर नहीं हैं,अपने ही हैं।जिनके पूर्वज और इष्ट राम और कृष्ण ही हैं। होली के दिनों में वे कहते हैं हमारे ऊपर रंग न पड़े ऐसे हिंदू से मुसलमान बने लोगों की बातें सुनकर हमारे घर-परिवार के कुछ लोग भी कहने लगे हैं कि हमारे ऊपर रंग न पड़े। हम अपने सारे रीति-रिवाज को त्याग कर किस प्रगति की ओर बढ़ रहे हैं, समझ पाना मुश्किल हो रहा है।

कई भाषाओं का ज्ञान हो यह तो गौरव की बात है।

पर अपनी भाषा को त्याग देने के मूल्य पर नहीं ?

यह कदापि श्रेष्ठ कदम नहीं है।

हमारे पुरखे कठिन तपस्या करके जिस सात्विक जीवन पद्धति को अपनाये वही हम में आज हीन बोध जागृत करने लगा है।कोई भी मुसलमान या इसाई कभी प्रणाम सूचक हमारे क्रिया पद्धति को नहीं अपनाता और एक हम हैं कि गुडमार्निंग सर या सलामआलेकुम कहकर ही अपने को प्रगतिशील साबित करने पर तुले हुए हैं।कई भाषाओं का ज्ञान हो यह तो गौरव की बात है।पर अपनी भाषा को त्याग देने के मूल्य पर नहीं ? यह कदापि श्रेष्ठ कदम नहीं है। मुझे बहुत ठाँव देखने को मिला कि छोटे बच्चे अंग्रेजी का वन-टू तो धड़ल्ले से पढ़ते-जानते हैं पर हिंदी की गिनती उन्हें नहीं आती।जनवरी-फरवरी तो वे जानते हैं, पर अगहन-पूस वे नहीं जानते।वे इतना आगे निकल गए हैं कि असंभव लगता है इस राजमार्ग पर चल पाना।

संकल्प करें अपने पुरखों के मूल्यों का गहन अध्ययन की

(new year resolution  in hindi)

शाम के समय यदि वे लौटना भी चाहेंगे तो नहीं लौट पाएँगे।तब तक में दृष्टि इतनी कमजोर हो चुकी होगी कि एक कहावत हासिल होगा बस–अब पछताए होत क्या जब चिडिया चुग गइ खेत।
गाँधी जी के भजन का अर्थ मैं भी जानता हूँ। मैं ही क्या सारे धरती के लोग जानते हैं। पर सारे धरती का मुसलमान इसे नहीं मानता। वह केवल अल्ला को मानता है और अल्ला को मनवाने पर जबरन उतारू है,उतारू था और उतारू रहेगा।उसके इसी कार्य की फल श्रुति है भारत में 33 करोड़ की हिंदू आबादी मुसलमान बनकर रहने को अभिशप्त है।अभिशप्त मैं इसलिए कह रहा हूँ कि जीवन स्तर में कोई परिवर्तन नहीं आया है।केवल मांसाहार अपनाना और मंदिर को ध्वस्त करने की मानसिकता के सिवा कोई परिवर्तन नहीं देखने को मिल रहा है।

33 करोड़ अपने मूल हिंदुस्तानी के नेता के रूप में स्थापित मुश्किल से 5-10 प्रतिशत बाहर मूल के कट्टर और गैरकट्टर दो विभक्तियों में शासन कर हैं हजारों वर्षों से अब जो बलवे आदि हो रहे हैं सब इन्हीं के इशारे पर हो रहा है।
इस समय हमें प्रतिज्ञा लेनी होगी चाहिए स्वदेशी गौरव के उत्थान की।अंग्रेज यहाँ से चले गए पर कुछ ऐसे सूत्र यहाँ छोड़ गए कि जिसे त्यागने में भी हमें पीड़ा होने लगी है।हमारे देश में अंग्रेजों के आने के पहले न तो यहाँ अंग्रेजी थी और न ही यहाँ अंग्रेज़ियत थी।आज हिंदी प्रदेश के बच्चे भी हिंदी गिनती और हिंदी महीनों के नाम भूले जा रहे हैं। क्या कारण है।हम सब को विचार करने का अभी अवसर है।संकल्प करें अपने पुरखों के मूल्यों का गहन अध्ययन की।

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बाबा कल्पनेश