गोधूलि-संपूर्णानंद मिश्र

गोधूलि


रोज़ थका हारा
जब गोधूलि बेला में
लौटकर घर आता हूं
बापू के आंखों में
एक अलग चमक ही पाता हूं
जिस दिन थोड़ी देर हो जाय
बापू के निलयों में
अस्त सूरज पाता हूं
गोधूलि बेला में
लौटकर घर जब आता हूं
बिटिया दौड़ी- दौड़ी आती है
दिन भर की ख़बर सुनाती है
दादू के टूटे चश्में की याद
मुझे दिलाती है
दादा से आज दादी कोहायी हैं
यह भी आकर बतला जाती है
रोज़ थका हरा गोधूलि बेला में

लौटकर घर जब आता हूं
सबकी उम्मीदों की झोली
भरकर ले आता हूं
किवाड़ की ओट में
पत्नी खड़ी हो जाती है
चेहरे पर उसके
उपालंभ की कुछ रेखा
दिख जाती है
जब रोज़ थका हारा आता हूं
तब गोधूलि बेला हो जाती है
अम्मा के सपनों की
झोली भरकर ले आता हूं
बापू के निलयों में
एक अलग चमक ही पाता हूं
जब रोज़ थका आता हूं
तब उम्मीदों की
किरणें लेकर आता हूं

संपूर्णानंद मिश्र
प्रयागराज फूलपुर
7458994874

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