कितना प्यारा कितना सुंदर मेरा गाँव -प्रदीप त्रिवेदी दीप

कितना प्यारा कितना सुंदर मेरा गाँव
लहराती गेहूं की बाली
बौरो से लदी आम की डाली
महुओ के पुष्पों की सोंधी
गंध उठ रही मतवाली
अच्छी लगती है बरगद की छांव
कितना प्यारा कितना सुंदर
मेरा गांव पीपल के पत्तों की फर फर
हवा बसंती चलती सर सर
धूल उड़ाती गलियारों में
लिपेपुते मिट्टी के घर
पोखर और नदी में बोझा ढोती नाव
कितना प्यारा कितना सुंदर मेरा गांव
मिश्री घोल रही बागों में
कोयल कूक भरी कानों
पपीहा गाते मोर नाचते
खोए सब मधुरिम तानो में
कभी गर्म तो कभी सर्द का लगता रहा अलाव
कितना प्यारा कितना सुंदर मेरा गांव
प्रदीप त्रिवेदी दीप